दिल्ली पुलिस का कारनामा: 88 वारदात एक ही FIR में दर्ज की, अपराधियों की बल्ले बल्ले!

,

   

इंद्र वशिष्ठ, दिल्ली में दिनों-दिन अपराध बढ़ रहे हैं पुलिस अपराध और अपराधियो पर अंकुश लगाने में नाकाम हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि पुलिस अपराध और अपराधियो पर अंकुश लगाने की बजाए आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा करने में जुटी रहती है। अपराध के मामलों को सही दर्ज ही नहीं करती है।

पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक के राज़ में पुलिस अपराध कम होने का दावा करने के लिए कैसे कैसे हथकंडे अपनाती हैं। इसका अंदाज़ा डीसीपी मोनिका भारद्वाज के नेतृत्व वाले पश्चिम जिला में चोरी/ ठगी / के इस मामले से आसानी से लगाया जा सकता हैं। चोरी की 88 वारदात को एक ही एफआईआर में दर्ज करने से यह भी पता चलता है कि डीसीपी महिला हो या पुरुष अपराध कम दिखाने के लिए सभी एक जैसे हथकंडे अपनाते हैं।

इस मामले से डीसीपी मोनिका भारद्वाज, संयुक्त पुलिस आयुक्त मधुप तिवारी, विशेष आयुक्त (कानून एवं व्यवस्था) रणबीर कृष्णियां और पुलिस कमिश्नर की काबिलियत और भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता हैं।

88 वारदात पर एफआईआर एक —
मामला तिलक नगर थाने का हैं। 88 लोगों के अकाउंट से लाखों रुपए निकाल लिए गए। लेकिन पुलिस ने इस मामले में सिर्फ एक ही एफआईआर दर्ज की है। जबकि 88 एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए थी। ऐसा करके पुलिस ने एक तरह से अपराधियों की ही मदद की है।

तिलक नगर पुलिस को 10 मई को गौरव सेठी ने शिकायत दी उनके बैंक खाते से पचास हजार रुपए किसी ने निकाल लिए हैं। पुलिस ने गौरव की शिकायत पर धारा 420 के तहत ठगी का मामला दर्ज कर लिया। पुलिस ने इसमें चोरी और इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट की धारा भी नहीं लगाई।

पुलिस ने इस एफआईआर में लिखा है कि इस तरीके से रकम चोरी किए जाने की अनेकों शिकायत पुलिस को मिली हैं। पुलिस ने गौरव सेठी के मामले में दर्ज एफआईआर में ही 87 अन्य पीड़ितों के नाम भी लिख दिए हैं।

एफआईआर में यह साफ लिखा है कि चोरी की वारदात एक मई से दस मई के दौरान हुई हैं।

यह वारदात अलग-अलग एटीएम पर अलग-अलग दिन हुईं। ऐसे में जाहिर सी बात हैं कि जिन लोगों के साथ दस तारीख से पहले वारदात हुईं उन लोगों ने पुलिस में पहले ही शिकायत की थी लेकिन पुलिस ने उसी समय उनकी शिकायतों पर एफआईआर दर्ज नहीं की थी।

पुलिस अगर चोरी की वारदात की सबसे पहले मिली शिकायत पर ही एफआईआर दर्ज करके जांच शुरू कर देती तो अपराधियों को पहले ही पकड़ा जा सकता था। तब अपराधी ओर लोगों के अकाउंट से पैसा चोरी नहीं कर पाते।

पुलिस के इस रवैए के कारण बेखौफ अपराधी उसी इलाके में एक के बाद एक लोगों के अकाउंट से पैसा चोरी करते रहे।

पुलिस ने आखिरकार एफआईआर दर्ज की भी तो सिर्फ एक गौरव सेठी की शिकायत पर और इसमें ही अन्य पीड़ितों के नाम दर्ज कर खानापूर्ति कर दी।

दूसरी ओर पुलिस ने ऐसा करके उन 87 लोगों को धोखा दिया है जो यह सोच रहे होंगे कि उनका मामला पुलिस ने दर्ज कर लिया और उनके मामले में अपराधी को सज़ा मिलेगी। उन लोगों को यह नहीं मालूम कि अपराधियों को सज़ा सिर्फ गौरव सेठी वाले एक मामले में ही मिलेगी जिसकी शिकायत पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है।

अपराधियों का फायदा— 88 वारदात की एक ही एफआईआर दर्ज करने से अपराधियों को ही फायदा मिला। पुलिस ने अगर 88 एफआईआर दर्ज की होती है तो अपराधियों को पुलिस इन सभी मामलों में गिरफ्तार करती।

अपराधियों को इन सभी मामलों में अलग-अलग जमानत करानी पड़ती। अपराधियों के खिलाफ 88 एफआईआर होने पर जमानत भी आसानी से नहीं मिलती। ऐसे में अपराधियों को न केवल जेल में ज्यादा समय तक रहना पड़ता बल्कि 88 अलग अलग मामलों में जमानत कराने और 88 मुकदमें लड़ने के लिए वकील को ज़्यादा फीस देने से अपराधियों को आर्थिक झटका लगता। 88 अलग अलग मामले अदालत में चलते। इन सभी मामलों में अदालत अलग-अलग सज़ा अपराधियों को सुनाती।

ऐसे में अपराधी ज्यादा समय तक जेल में रहता। इस तरीके से ही अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाया जा सकता हैं।

पुलिस ने धोखाधड़ी की धारा 420 के तहत मामला दर्ज किया है। जबकि यह मामला साफ़ तौर पर चोरी का है। लेकिन पुलिस ने इसमें चोरी और इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट की धारा ही नहीं लगाई। पुलिस ने एफआईआर में धारा सही लगाती तो अपराधियों को अलग-अलग धाराओं में सज़ा मिलती।

पुलिस अगर अलग-अलग एफआईआर दर्ज करती तो इन अपराधियों के खिलाफ ज्यादा एफआईआर दर्ज होने के आधार पर को अपराधियों को दस नंबरी यानी बीसी बनाया जा सकता था और उनको तड़ीपार की कार्रवाई भी की जा सकती थी।

पुलिस अफसरों का निठल्लापन , अपराधियों की बल्ले बल्ले–

अब पुलिस ने जो किया है उसका परिणाम यह होगा कि अपराधियों के खिलाफ सिर्फ एक एफआईआर दर्ज करने से अपराधियों को एक मामले में ही जमानत करानी पड़ेगी और एक ही मामले में उनको सज़ा मिलेगी।

अपराध कम दिखाने के लिए पुलिस इस तरह के हथकंडे अपनाती हैं। अपराध कम या ज्यादा होने का दावा पुलिस दर्ज की गई एफआईआर के आंकड़ों के आधार पर करती है। पुलिस अगर ठगी के मामले में 88 एफआईआर दर्ज करती तो आंकड़ों से पता चल जाता कि ठगी का अपराध बढ़ रहा है।

पुलिस नहीं चाहती कि अपराध बढ़ना आंकड़ों से उजागर हो। अपराध बढ़ना उजागर होगा तो पुलिस पर अपराधियों को पकड़ने का दबाव पड़ेगा। पुलिस को मेहनत करनी पड़ेगी। पुलिस मेहनत करना नहीं चाहती इसलिए पुलिस अपराध के सभी मामलों को सही तरीके से दर्ज ही नहीं करती या दर्ज करती भी हैं तो इस तरीके के हथकंडे अपनाती हैं कि अनेक वारदात को एक ही एफआईआर में दर्ज कर देती। डकैती को लूट और लूट को चोरी में दर्ज करने के लिए तो पुलिस बदनाम हैं ही।

लेकिन ऐसे हथकंडे अपना कर पुलिस एक तरह से अपराधियों की ही मदद करने का गुनाह कर रही हैं। अपराधियों को भी पता हैं पुलिस स्नैचिंग, लूट, मोबाइल फोन, पर्स चोरी/जेबतराशी आदि अपराध के भी सभी मामलों को दर्ज ही नहीं करती है। इसलिए अपराधी बेख़ौफ़ होकर वारदात करते हैं।

इस तरह आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा करके ही पुलिस कमिश्नर, स्पेशल कमिश्नर, संयुक्त आयुक्त, डीसीपी और एस एच ओ खुद को सफल अफसर दिखाने में लगे रहते हैं।

पुलिस जब तक अपराध के सभी मामलों को सही दर्ज नहीं करेगी अपराध और अपराधियों की सही तस्वीर सामने नहीं आएगी। सही तस्वीर सामने आने के बाद ही अपराध और अपराधियों से निपटने की कोई भी योजना सफल हो पाएगी। तभी अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाया जा सकता हैं।

तत्कालीन पुलिस कमिश्नर भीम सेन बस्सी ने अपराध के मामले सही दर्ज करने की अच्छी कोशिश की थी। उनके कार्यकाल में दर्ज अपराध के आंकड़ों से इसका साफ़ पता भी चलता है।

इस मामले में पश्चिम जिला पुलिस उपायुक्त मोनिका भारद्वाज से मोबाइल फोन पर संपर्क की कोशिश की गई। लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।

दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के पूर्व डीसीपी लक्ष्मी नारायण राव का कहना है कि इस मामले में हरेक शिकायत पर अलग अलग एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए थी। कानून के अनुसार एक ही समय,स्थान और एक ही तारीख पर हुई तीन वारदात को ही एक एफआईआर में दर्ज किया जा सकता है। इस मामले में तो अलग-अलग दिन, अलग-अलग समय और स्थान पर वारदात हुई हैं।

इस मामले में चोरी और इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट की धारा भी लगानी चाहिेए थी।

अब पेशे से वकील लक्ष्मी नारायण राव का कहना है अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाने के लिए जरूरी है कि अपराध के सभी मामले दर्ज किए जाए और सही धारा में दर्ज किए जाए।

तिलक नगर पुलिस थाने में 11 मई को‌ ठगी की एफआईआर दर्ज की गई 18 मई को पुलिस ने इस मामले में चार अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया। अभियुक्त ऐसे एटीएम को निशाना बनाते थे जहां सुरक्षा कर्मी नहीं होता था। वह एटीएम में स्किमिंग मशीन लगा देते थे। जिससे लोगों के एटीएम कार्ड का डेटा चुरा लेते थे।

उस डेटा के जरिए क्लोन कार्ड तैयार कर लोगों के अकाउंट से पैसा निकाल लेते थे। आरोपियों की पहचान न हो इसके लिए वह एटीएम में लगे सीसीटीवी कैमरे पर काले रंग वाले केमिकल से स्प्रे कर देते। 88 लोगों के अकाउंट से 19 लाख रुपए निकाल लिए गए।

अभियुक्तों ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि विकास पुरी, द्वारका, महिपालपुर,पालम और जनक पुरी में भी एटीएम पर उन्होंने ऐसे ही स्किमिंग मशीन लगा कर वारदात की है।