दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा- दोबारा स्कूल खोलने तक वार्षिक शुल्क नहीं लिया जाए

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दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि छात्रों के पैरेंट्स से “वर्तमान लॉकडाउन की पेंडेंसी के दौरान” वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क नहीं लिया जा सकता है, जब तक कि स्कूलों को फिर से खोला नहीं जाए. एक निजी स्कूल के पैरेंट्स द्वारा स्थानांतरित याचिका पर सुनवाई करते हुए 25 अगस्त के आदेश में न्यायमूर्ति जयंत नाथ ने अपनी राय व्यक्त किया था. याचिका में कहा गया था कि प्राइवेट स्कूल संघ ने जुलाई से ट्यूशन फीस के साथ वार्षिक और विकास शुल्क लेना शुरू कर दिया था.

इस पर कोर्ट ने स्कूल को जुलाई एवं अगले आदेश तक के लिए माता-पिता से वार्षिक और विकास शुल्क लेने पर रोक लगा दिया है. कोर्ट ने दिल्ली सरकार और स्कूल को एक नोटिस भी जारी किया, जिसमें माता-पिता के सहयोग की दलील दी गई थी, जिसका प्रतिनिधित्व वकील गौरव बहल ने किया था. कोर्ट ने मामले को 16 सितंबर को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है. आदेश के अनुसार, वीडियो-सम्मेलन के माध्यम से सुनवाई के दौरान स्कूल ने तर्क दिया कि लॉकडाउन खत्म हो गया है और इसलिए, यह वार्षिक और विकास शुल्क लगा सकता है.

हालाँकि, दिल्ली सरकार ने अपने अतिरिक्त स्थाई वकील गौतम नारायण का प्रतिनिधित्व करते हुए अदालत को बताया कि शिक्षा निदेशालय के 18 अप्रैल के परिपत्र ने स्कूलों से लॉकडाउन की अवधि के दौरान वार्षिक और विकास शुल्क नहीं वसूलने को कहा है, क्योंकि उनमें से कोई भी लागू नहीं है. स्कूल शारीरिक रूप से खुल गए हैं. इसलिए दिल्ली सरकार ने कहा कि विचाराधीन स्कूल लॉकडाउन की अवधि पूरी होने तक वार्षिक और विकास शुल्क नहीं ले सकता है.

दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायाधीश ने कहा, “मेरी राय में, प्रथम दृष्टया, यह प्रतीत होता है कि वर्तमान और लॉकडाउन की पेंडेंसी के दौरान माता-पिता से वार्षिक और विकास शुल्क नहीं लिया जा सकता है.” कोर्ट ने कहा कि अभिभावकों को ट्यूशन फीस देनी होगी.