पश्चिम बंगाल की हकीमा खातून महिला काज़ी बनकर पढ़ा रही है निक़ाह, उलेमाओं ने जताई आपत्ति

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हाकीमा खातून पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले के गांव कोलोराह की निवासी हैं। न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि समुदाय के स्तर पर यह उपलब्धि बेहद खास है। क्योंकि 2016 में जब भारतयी मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएम) ने महिला काजी बनाने का फैसला किया था तो कई मौलवियों के बयान आए थे।

आज तक न्यूज़ पोर्टल पर छपी खबर के मुताबिक, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव मौलाना खालिद राशीद फिरंगी महिली ने तो साफ कह दिया था, महिलाओं को काजी बनने का कोई हक नहीं है। और फिर इसकी जरूरत भी नहीं है क्योंकि पहले ही पुरुष काजी काफी संख्या में हैं। इसलिए यह एक फिजूल का काम है।

लेकिन जब महिला काजी के निकाह पढ़वाने पर शिया उलमा मौलाना कल्बे जव्वाद की तरफ से बेहद प्रगतिवादी टिप्पणी सामने आई। उन्होंने कहा, निकाह औरत या मर्द कोई भी अदा करा सकता है। ऐसी कोई बंदिश नहीं है कि मर्द ही निकाह को अंजाम दे।

हालांकि अब जबकि महिला काजी बनकर तैयार भी हो गई हैं और निकाह करवाने की शुरुआत भी कर चुकी हैं, तो ऐसे में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महिली का फिर से बयान लेने की कोशिश की गई लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई।

काजी बनने पर घरवालों की प्रतिक्रिया क्या थी? इस पर काजी हाकीमा खातून कहती हैं, पहले तो मेरे शौहर ने मुझे काजी की ट्रेनिंग लेने से मना किया। उनका कहना था कि ये सब करके क्या करोगी। ख्वामख्वाह लोगों का विरोध झेलना पड़ेगा। लेकिन जब बीएमएम संस्था की कई जिम्मेदार महिलाओं ने उन्हें समझाया तो वे राजी हो गए।

मेरे शहर के इमाम भी भले व्यक्ति थे। उन्होंने भी कहा, इस्लाम कहीं नहीं कहता कि महिलाएं काजी नहीं बन सकतीं। वे कहती हैं, कुरान को पढ़ने वाली औरत और पुरुष दोनों का नजरिये में फर्क होगा। बात एक ही होगी लेकिन समझने का और किसी बात को तवज्जो देने का नजरिया बिल्कुल अलग होगा।

ऐसे में न्याय करना हो या फिर झगड़े सुलझाने हों, इस्लाम में क्योंकि शादी एक कांट्रेक्ट है, कोई आसमानी बंधन नहीं इसलिए औरत के साथ यह कांट्रेक्ट होते वक्त कोई नाइंसाफी न हो, इसका ध्यान कोई महिला काजी ही रख सकती है। मर्द काजी वैसा सोच ही नहीं सकते जैसा महिलाएं सोचती हैं। जैसे पढ़ाई के दौरान मैहर की रकम को लेकर हमें बताया गया जमाने के हिसाब से इस रकम का मोल बदलना चाहिए।

जैसे मौजूदा वक्त में मैहर की इस रकम की कीमत कम से कम शौहर के एक साल का वेतन के बराबर होनी चाहिए. हाकिमा खातून पूछती हैं, अब आप ही बताइये क्या मर्द काजी कभी इस तरह से क्या सोचेगा?

महिला काजी की आखिर जरूरत क्यों महसूस हुई इस सवाल के जवाब में बीएमएम की संस्थापक जकिया सोमन कहती हैं, भारतीय मुस्लिम समुदाय के बीच से ही न्याय और बराबरी के लिए आवाजें उठने लगी हैं।

खास बात यह है कि ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम औरतें अब अपने हक को लेकर आगे आ रही हैं। वे कहती हैं दो साल पहले हमने महिला काजी बनाने की जब बात की थी तो समुदाय का एक तबका हम पर बेहद नाराज हो गया था।

कई मौलवियों ने हमारे इस फैसले को गैर इस्लामिक करार दे दिया था। लेकिन आज हमारी महिला काजियों को लोग कुबूल भी कर रहे हैं और उनके न्याय करने के तरीके को पसंद भी कर रहे हैं। अभी हमने एक बैच ट्रैंड किया है।

24 महिला काजी बनकर तैयार हैं। हम यह दावा नहीं करते कि हाकीमा पहली महिला काजी है जिसने निकाह करवाया है। लेकिन हमारी संस्था की तरफ से ट्रेंड की गई काजियों में यह पहली काजी है जिसने निकाह करवाया है।

साभार- ‘आज तक’