पहलू खान मामले में अपराधियों को बरी किया जाना आपराधिक न्याय व्यवस्था से जनता के भरोसे को खत्म करने जैसा

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पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के चेयरमैन ई. अबूबकर ने पहलू खान मॉब लिंचिंग मामले में राजस्थान की अलवर निचली अदालत के द्वारा 6 आरोपियों को बरी किए जाने पर अफसोस जताया है।

अप्रैल 2017 में दाएं बाजू के हिंदुत्व लोगों के हाथों डेरी किसान पहलू खान की मॉब लिंचिंग में हत्या एक ऐसी घटना थी जो दिन के उजाले में अंजाम दी गई। हमलावरों ने इस घिनौने अमल की वीडियो बनाकर उसे सोशल मीडिया पर वायरल किया, जबकि पूरी दुनिया उसे खुली आंखों से देख रही थी।

लेकिन इंसाफ के इंतजार में बैठे लोगों को उस वक्त मायूसी का सामना करना पड़ा जब इस हत्या में शामिल सभी 6 आरोपियों को राजस्थान की निचली अदालत ने बरी कर दिया। ऐसा लगता है जैसे कि पुलिस और प्रॉसीक्यूशन ने न्याय प्रक्रिया में कोताही बरतकर जान-बूझकर ताकतवर अपराधियों के बच निकलने में उनकी मदद की।

राज्य सरकार भी पूरी चैकसी के साथ इस मामले की पैरवी न करने के कारण सवालों के घेरे में है, विशेष रूप से तब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने भारत के 4 अन्य राज्यों सहित राजस्थान और केंद्र सरकार को कार्रवाई करने तथा मॉब लिंचिंग के खलिाफ नया कानून बनाने के लिए नोटिस जारी किया है।

अदालत ने तकनीकी कारणों के आधार पर अपराधियों को बरी करने का फैसला सुनाया है, लेकिन इससे यह हकीकत बदल नहीं जाती कि एक निर्दोष व्यक्ति को पूरी दुनिया की नजरों के सामने बेदर्दी से पीट-पीटकर मार दिया गया और यह कि हमलावरों को शासक वर्ग का समर्थन हासिल है।

अदालत के पास न्याय को सुनिश्चित करने के लिए नैतिक फैसला देने का अधिकार है। अदालत के फैसले से सत्ता में बैठे लोगों को राजनीतिक लाभ तो मिल सकता है लेकिन ये लोग देश की आपराधिक न्याय व्यवस्था की साख दांव पर लगा रहे हैं और इस व्यवस्था से जनता के भरोसे को खत्म कर रहे हैं।

ई. अबूबकर ने पहलू खान मामले में न्याय को स्थापित करने और भविष्य में न्याय के साथ ऐसे खिलवाड़ से बचने के लिए उच्च न्यायालय से हस्तक्षेप की अपील की है। उन्होंने राज्य सरकार से भी मामले की गंभीरता से पैरवी करने और सही मायनों में न्याय को सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है।