पहले कश्मीरी IAS टॉपर शाह फैसल किसी पार्टी में नहीं होंगे शामिल, अकेले करेंगे राजनीति

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2009 की सिविल सेवा परीक्षा में टॉप करने वाले पहले कश्मीरी शाह फैसल ने कश्मीर में कथित रूप से लगातार हो रही हत्याओं और भारतीय मुसलमानों के हाशिये पर होने का आरोप लगाते हुए हाल ही में आईएएस से इस्तीफा दे दिया था. कयास लगाए जा रहे थे कि फैसल उमर अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस में शामिल हो सकते हैं और बारामुला लोकसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. लेकिन इस कयास पर फैसल ने विराम लगा दिया है. वह किसी पार्टी में शामिल नहीं होंगे और अकेले ही राजनीतिक यात्रा शुरू करेंगे. वह जम्मू-कश्मीर में गरीबों और हाशिए पर पड़े लोगों के लिए काम करना चाहते हैं.फेसबुक पोस्ट पर फैसल ने लिखा, मैंने कभी नहीं सोचा था कि जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक गतिरोध को उजागर करने के लिए मेरी छोटी सी कोशिश की वजह से दुनिया भर में इस तरह की प्रतिक्रिया आएगी. मैंने कभी नहीं सोचा था कि जम्मू-कश्मीर में स्वच्छ राजनीति और भ्रष्टाचार-मुक्त प्रशासन का मेरा सपना आकार लेगा और एक जन आंदोलन बनेगा. जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुए, मैंने अपनी स्वतंत्र राजनीतिक यात्रा शुरू करने का फैसला किया है.

 

उन्होंने लिखा, सार्वजनिक सेवा के इस नए चरण में, मेरा मिशन सच्ची मानवाता का समर्थन करना, गरीबों के लिए खड़ा होना, हाशिए पर पड़े लोगों और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना है. इस दुनिया में, जाति, रंग, क्षेत्र और धर्म से ऊपर उठकर लोगों की मदद करना है. मैं एक ऐसी राजनीति की कल्पना करता हूं जहां युवा बदलाव का नेतृत्व कर सकें और अपने भविष्य की जिम्मेदारी ले सकें. मैं युवा नेताओं की नई पीढ़ी के साथ भागीदारी करना चाहता हूं, जो मानव अधिकारों, पर्यावरण, फ्री स्पीच और कानून के शासन के लिए खड़े हो सकें.एक उच्च सम्मानित और शिक्षित परिवार से आने वाले फैसल को व्यक्तिगत त्रासदी का सामना करना पड़ा था, जब उनके पिता गुलाम रसूल शाह जो कि एक स्कूल टीचर थे, को 2002 में अज्ञात उग्रवादियों द्वारा गोली मार दी गई थी. उस समय फैसल का परिवार सीमावर्ती जिले कुपवाड़ा में सुगम-लोलाब के पास रहता था. बाद में फैसल श्रीनगर चले गए जहां उन्होंने शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया.

 

फैसल ने अपनी योजनाओं के बारे में बताते हुए कहा कि उनका विचार भारत के लोगों से मदद लेना था, भारतीय नागरिक समाज और बौद्धिक वर्ग के साथ गठजोड़ करना था ताकि कश्मीर के संघर्ष का मानवीकरण किया जा सके ताकि जम्मू-कश्मीर में स्थायी शांति स्थापित हो सके. अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए फैसल ने लोगों से डोनेशन के मॉडल को अपनाने का फैसला किया है.