पोंगापंथी हिंदुत्व और पोंगापंथी इस्लाम

   

आज हमारे विचार के लिए दो विषय सामने आए हैं। एक तो कानपुर के युवा मुहम्मद ताज का, जिसे कुछ हिंदू नौजवानों ने बेरहमी से पीटा और उससे ‘जय श्रीराम’ बुलवाने की कोशिश की और दूसरा प. बंगाल से चुनी गई सांसद तृणमूल कांग्रेस की नुसरत जहां का, जिनके खिलाफ देवबंद के किसी मौलवी ने फतवा जारी किया है, क्योंकि उन्होंने किसी जैन से शादी कर ली है और संसद में शपथ लेते समय वे सिंदूर लगाकर और मंगलसूत्र पहनकर आई थीं।

ये दोनों मसले ऐसे हैं, जिनमें हमें हिंदुत्व और इस्लाम का अतिवाद दिखाई पड़ता है। इन दोनों मामलों का न तो हिंदुत्व से कुछ लेना-देना है और न ही इस्लाम से ! किसी मुसलमान या ईसाई की हत्या या पिटाई आप इसलिए कर दें कि वह राम का नाम नहीं ले रहा है, यह तो राम का ही घोर अपमान है। आप रामभक्त नहीं, रावणभक्त हैं। आपको अपने आप को हिंदू कहने का अधिकार भी नहीं है।

‘जय श्रीराम’ तो कोई भी बोल सकता है। कोई भ्रष्टाचारी नेता, कोई पतित पुरोहित, कोई वेश्या, कोई बलात्कारी, कोई चोर और कोई ठग यदि राम का नाम ले ले तो क्या वह पवित्र माना जाएगा ? क्या उस पर कोई हिंदू होने का गर्व करेगा ? जो लोग राम की जगह शिव, कृष्ण, ब्रह्मा, विष्णु आदि को मानते हैं, क्या वे हिंदू नहीं हैं ? कई संप्रदाय राम को मर्यादा पुरुषोत्तम तो मानते हैं लेकिन भगवान नहीं मानते, क्या आप उन्हें भी गैर-हिंदू कहेंगे ?

इसी तरह नुसरतजहां को इस्लाम-विरोधी समझना भी बिल्कुल पोंगापंथी इस्लाम है। क्या अरबों की नकल करना ही इस्लाम है ? क्या बुर्का पहनना, तीन तलाक देना, चार-चार बीवियां रखना, अपने अरबी नाम रखना, आदि अरबी प्रथाओं को मानना ही इस्लाम है ? इस्लाम का तात्विक अर्थ यही है कि आप एक ईश्वर को मानें और बुतपरस्ती से बाज आएं। क्या मुसलमान के लिए उर्दू बोलना जरुरी है ?

नुसरत अगर बांग्ला बोलती है, इंडोनेशिया के सुकर्ण यदि ‘भाषा’ बोलते हैं, अफगान बादशाह जाहिरशाह ‘पश्तो’ बोलते हैं और अफ्रीकी मुसलमान ‘स्वाहिली’ बोलते हैं तो क्या वे घटिया मुसलमान कहलाएंगे ? उत्तम मुसलमान ,उत्तम ईसाई, उत्तम यहूदी और उत्तम हिंदू वही है, जो जिस देश और काल में रहता है, उसके मुताबिक रहे और अपने मजहब की मूल तात्विक बातों को अमल में लाए। डेढ़-दो हजार साल पुराने देश-काल के ढर्रे का अंधानुकरण करना उचित नहीं है।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक