सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना मामले में दोषी ठहराए गए जाने-माने वकील प्रशांत भूषण को अपना बयान बदलने के लिए 2-3 दिन का वक़्त दिया है.
जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा, “इस धरती पर ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो ग़लती नहीं कर सकता है. आप सौ अच्छे काम कर सकते हैं, लेकिन वो आपको 10 अपराध करने की इजाज़त नहीं देते. जो हुआ, सो हुआ. लेकिन हमलोग चाहते हैं कि व्यक्ति विशेष (प्रशांत भूषण) को इसका कुछ पछतावा तो हो.”
हालाँकि प्रशांत भूषण ने कहा कि उनके बयान में कोई बड़ा बदलाव नहीं होगा और इससे कोर्ट के समय की बर्बादी होगी.
उन्होंने कहा, “अगर अदालत चाहती है तो मैं इस पर दोबारा विचार कर सकता हूँ, लेकिन मेरे बयान में कोई ख़ास बदलाव नहीं होगा. मैं अदालत का समय नहीं बर्बाद करना चाहता हूँ.”
इस पर जस्टिस मिश्रा ने कहा, “बेहतर है आप पुनर्विचार करें……….और यहाँ सिर्फ़ क़ानूनी दिमाग़ का इस्तेमाल न करें.”
अटॉर्नी जनरल ने प्रशांत भूषण का किया बचाव
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में बहस के दौरान एक मौक़ा ऐसा भी आया, जब सभी लोग चौंक गए.
अटॉर्नी जनरल यानी मोदी सरकार के सबसे बड़े वकील केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट से प्रशांत भूषण को सज़ा न देने की अपील की.
वेणुगाोपाल ने कहा कि प्रशांत भूषण को पहले ही दोषी क़रार दिया गया है, इसलिए उन्हें सज़ा न दी जाए.
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि उनके पास सुप्रीम कोर्ट के पाँच जजों की लिस्ट है, जो कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने लोकतंत्र को फ़ेल किया है. वेणुगोपाल ने आगे कहा कि उनके पास पूर्व जजों के बयान का अंश है, जिसमें वो कहते हैं कि ऊपरी अदालतों में बहुत भ्रष्टाचार है.
लेकिन जस्टिस अरुण मिश्रा ने उन्हें बीच में ही रोकते हुए कहा कि अदालत मेरिट पर सुनवाई नहीं कर रही है.
अदालत ने कहा कि प्रशांत भूषण का बयान और उनका लहजा उसे और भी ख़राब बना देता है.
सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि अदालत उनकी अपील उस वक़्त तक नहीं मान सकती है जब तक प्रशांत भूषण अपने ट्वीट के लिए माफ़ी नहीं माँगने के अपने पहले स्टैंड पर दोबारा विचार नहीं करते.
इससे पहले गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण की उस याचिका को ख़ारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने सज़ा पर सुनवाई टालने की अपील की थी.
प्रशांत भूषण को जस्टिस अरुण मिश्र की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने 14 अगस्त 2020 को आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया था.
प्रशांत भूषण ने बुधवार को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी दाख़िल कर, सज़ा पर सुनवाई टालने की अपील की थी. उन्होंने अपनी अर्ज़ी में कहा था कि ‘वे पुनर्विचार याचिका दायर करने का इरादा रखते हैं और जब तक समीक्षा याचिका पर विचार नहीं हो जाता, तब तक सज़ा पर बहस की तारीख़ टाल दी जाये.’
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में प्रशांत भूषण की ओर से खड़े वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने सज़ा पर सुनवाई के दौरान बहस की शुरुआत की.
जस्टिस अरुण मिश्र ने दवे से कहा कि ‘कोर्ट उन्हें भरोसा दिलाता है कि जब तक वे पुनर्विचार याचिका दाख़िल नहीं कर देते, तब तक कोई सज़ा नहीं होगी.’
दलीलों का दौर
दुष्यंत दवे ने अदालत से कहा कि ‘हमें तीस दिन के भीतर समीक्षा याचिका दाख़िल करने का अधिकार है.’ उन्होंने कहा कि “दोष सिद्ध होना और सज़ा देना, दो अलग मुद्दे हैं. मेरी अपील न्यायिक समीक्षा के तहत बिल्कुल सही है और दण्डाज्ञा को टाला जा सकता है. सज़ा को फ़िलहाल टाल देने से आसमान नहीं गिर पड़ेगा.”
इस दौरान वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिये प्रशांत भूषण ने अपनी दलील दी. उन्होंने कहा कि ‘कोर्ट अवमानना का दोषी ठहराये जाने से वो बहुत दुखी हैं.’ उन्होंने दोहराया कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आलोचनाओं की जगह होना बहुत ज़रूरी है.
भूषण ने कहा, “मेरे ट्वीट, जिन्हें अदालत की अवमानना का आधार माना गया, वो मेरी ड्यूटी हैं, और कुछ नहीं. उन्हें संस्थानों को बेहतर बनाये जाने के प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए. जो मैंने लिखा, वो मेरी निजी राय है, मेरा विश्वास और विचार हैं, और मुझे अपनी राय रखने का अधिकार है.”
महात्मा गांधी का हवाला देते हुए भूषण ने कहा, “न मुझे दया चाहिए न मैं इसकी मांग कर रहा हूं. मैं दरियादिली भी नहीं चाह रहा. कोर्ट जो भी सज़ा देगा, मैं ख़ुशी से स्वीकार करने को तैयार हूं.”
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण की सज़ा पर सुनवाई टालने की याचिका का खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि बिना सज़ा सुनाए न्यायाधीश का निर्णय पूरा नहीं हो सकता.
जस्टिस मिश्र ने कहा, “हम दो-तीन दिन का समय दे रहे हैं. कृपया अपनी टिप्पणी के बारे में दोबारा सोचिए. भूषण को इस बारे में सोचना चाहिए. हम अभी निर्णय नहीं सुनाना चाहिए.”
जस्टिस मिश्र ने डॉक्टर धवन से कहा कि वो न्यायिक वाद-विवाद कार्यवाही आज पूरी कर सकते हैं और बेंच भूषण को उनकी टिप्पणी पर विचार करने का समय देगी.
साभार- बीबीसी हिंदी