प्राकृतिक जल स्त्रोतों को पुनर्जीवित करने में जुटे उधमपुर के लोग

   

उधमपुर, 22 अप्रैल । जम्मू एवं कश्मीर में उधमपुर जिले के लोगों ने बावली (बावड़ी) और पोखर जैसे परंपरागत एवं पुराने जल स्त्रोतों को पुनर्जीवित करने का फैसला किया है। उधमपुर जिले के सूकी करलाई गांव के कुछ निवासियों ने इस पहल पर काम करना शुरू किया है।

यहां के स्थानीय लोगों ने समय के साथ अपनी बावड़ियों या प्राकृतिक झरनों को घटते और खत्म होते देखा और उन्होंने इसे उधमपुर के भाग्य के रूप में स्वीकार करना शुरू कर दिया था, मगर कुछ महीने पहले सूकी करलाई गांव के कुछ लोगों ने जीवन देने वाले इन जल स्त्रोतों को पुनर्जीवित करने की ठानी, जो कि एक दशक पहले तक भी काफी लोगों के लिए पानी का प्राथमिक स्रोत था।

फरवरी में कुछ नागरिकों ने मृत जल स्त्रोतों को पुनर्जीवित करने का कार्य शुरू किया और केवल ढाई महीने में, वे उनमें से छह को पुनर्जीवित करने में कामयाब भी रहे। उन्होंने जिस आखिरी जल स्त्रोत को फिर से काम में आने लायक बनाया, वह एक वृद्धाश्रम के पीछे स्थित है। सूकी करलाई गांव में शुरू हुए इस अभियान को इतनी गति मिली कि इसने जिले के विभिन्न हिस्सों में अन्य इसी तरह के प्रयासों को जन्म दिया है। इसने जम्मू-कश्मीर के प्रशासकों का भी ध्यान आकर्षित किया, जिन्होंने हाल ही में इस क्षेत्र में 877 बावलियों को जियोटैग किया और उनमें से कई को बहाल करने का वादा किया है।

लगभग तीन साल पहले, सूकी करलाई गांव के एक 80 वर्षीय बुजुर्ग दीवान चंद ने रिपोर्टर के साथ घटती हुई बावलियों (बावड़ियों) के बारे में अपनी चिंता साझा की थी। उन्होंने कहा कि जिले में बावलियों की संख्या 1000 से घटकर महज 100 या 110 रह गई है। उन्होंने इसके पीछे के कारण गिनवाते हुए कहा, इसका मुख्य कारण मानव गतिविधियों जैसे कि बावड़ियों के आसपास इमारतों का निर्माण, बार-बार बाढ़, रखरखाव की कमी और व्यक्तिगत रूप से लोगों के घरों में नल के पानी की उपलब्धता है।

यह स्टोरी जैसी ही प्रिंट हुई और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर साझा की गई तो घटते जलस्त्रोतों के इस मुद्दे ने आसपास के गांवों में कुछ लोगों का ध्यान खींचा, जिन्होंने अपना वजूद खत्म कर चुकी बावड़ियों को पुनर्जीवित करने का फैसला किया।

इसके बाद सूकी करलाई गांव के चार निवासी – डॉ. विजय अत्री (38), जो कि जम्मू एवं कश्मीर सरकार में बागवानी एवं विपणन निरीक्षक हैं, छात्र दीपक कुमार (28), छात्र केशव शर्मा (18) और जम्मू एवं कश्मीर राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के ब्लॉक प्रोग्राम मैनेजर नरेश कुमार ने प्राकृतिक जल स्त्रोतों का पता लगाकर उन्हें साफ करने का फैसला किया।

डॉ. अत्री ने बताया कि भूजल स्त्रोत की खुदाई और उन्हें साफ करने के लिए उन्हें कुछ जरूरी उपकरणों की आवश्यकता थी, जिसका उन्होंने प्रबंध किया।

इस टीम ने 20 मार्च को दो पूरी तरह से मृत जल स्त्रोतों को जीवित करने का काम किया। जिसे स्थानीय तौर पर गर्ने आली बावलियां के नाम से जाना जाता है। यह 2007 तक ठीक अवस्था में थी और इन्हें उपयोग में लाया जा रहा था, मगर इसी समय उधमपुर प्रशासन ने इस गांव के निवासियों के लिए नल के द्वारा जल की पहुंच स्थापित कर दी और इन बावलियों का अस्तित्व धीरे-धीरे खत्म होता चला गया।

आमतौर पर एक छोटी बावली को साफ करने में टीम को दो से तीन घंटे लगते हैं, जबकि बड़ी बावली में एक या दो घंटे अतिरिक्त भी लग जाते हैं।

इन दो बावड़ियों से मिली सफलता के बाद, जब टीम बिलैन बावली क्षेत्र के पास अगले मृत जलस्त्रोत को पुनर्जीवित करने के लिए गई तो दो और लोग भी स्वयंसेवक के तौर पर उनके साथ जुड़ गए। संजय कुमार (42), जो कि एक दुकानदार हैं और दैनिक मजदूरी करने वाले रमेश सल्लन (46) भी इस टीम का हिस्सा बन गए और प्राकृतिक जल स्त्रोतों को बचाने की मुहिम में अपना योगदान देने लगे।

रमेश सल्लन ने पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया कि ये बावलियां ऊधमपुर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं और जब वह बच्चे थे तो अपने दोस्तों के साथ यहां स्नान भी करने आते थे। रमेश ने बताया कि स्थानीय लोग इन प्राकृतिक जल स्त्रोतों से ही भगवान शिव (शिवलिंग) को जल अर्पित करते थे।

(लेखक जम्मू आधारित स्वतंत्र पत्रकार हैं और 101 रिपोर्टर्स डॉट कॉम के सदस्य हैं, जो कि जमीनी स्तर के पत्रकारों का अखिल भारतीय नेटवर्क है।)

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