फिर जमेगी शेर-ओ-शायरी की महफिल, पहुंचेंगे उर्दू के बाज़ीगर

   

अभी तहज़ीब का नौहा ना लिखना, अभी कुछ लोग उर्दू बोलते हैं……

उर्दू की इसी मिठास के साथ इस जबां के कद्रदानों के लिए 16 मार्च की शाम खास होगी। लफ्जों की बाजीगिरी के साथ देशभर से 18 शायर ’53वे शंकर शाद मुशायरे’ में पहुंच रहे हैं। जावेद अख्तर, वसीम बरेलवी, मुनव्वर राना, राहत इंदोरी समेत कई नामचीन शायर-शायरात इस मुशायरे को ना सिर्फ यादगार बनाएंगे, बल्कि इसकी खूबसूरत विरासत को तरोताजा भी करेंगे। मॉडर्न स्कूल, बाराखंबा रोड पर यह मुशायरा शाम 7 बजे शुरू होगा।

मुशायरा के इस साल के संस्करण में जावेद अख्तर, मुनव्वर राणा, वसीम बरेलवी, मंजर भोपाली, राहत इंदौरी, पॉपुलर मेरठी को सुनने का मौका मिलेगा। साथ ही, इकबाल अशर, गौहर रजा, शीन काफ निजाम, कलीम कैसर, इकबाल अजहर, नौमान शौक, हुसैन हैदरी, स्वप्निल तिवारी, अज़रा कैसर नकवी, अकीब सबीर, विपुल कुमार और नुसरत मेहदी समेत और भी मशहूर उर्दू शायर भी इस महफिल में शरीक होंगे।

शंकर लाल मुरलीधर सोसायटी के चेयरमैन माधव बी श्रीराम ने बताया, हम उर्दू शायरी के प्रेमियों को शामिल करने के लिए काफी कोशिश कर रहे हैं। यह परंपरा साकार है, इसकी हमें खुशी है। हमारा मानना है कि उर्दू महज एक भाषा नहीं है, बल्कि अपने आप में एक संस्कृति है, जिसे बचाकर रखना बहुत जरूरी है। शायर इकबार अशहर कहते हैं, पहले मुशायरे आम लोगों के लिए नहीं होते थे, धीरे धीरे ये आवामी है। यह उर्दू के फैलाव की एक दलील थी। शंकर शाद मुशायरे की भी यही खूबी है कि यह आम लोगों को उर्दू से शायरी से जोड़ता है।

1953 से शुरू हुए इस सालाना ‘शंकर शाद मुशायरा’ डीसीएम ग्रुप के शंकर लाल और मुरलीधर की याद में मनाया जाने वाला कार्यक्रम है। दोनों को उर्दू और साहित्य से इश्क था और यह शायरों और साहित्यकारों की सरपरस्ती भी करते थे। जोश मलिहाबादी, रामधारी सिंह दिनकर समेत कई शख्सियतों का साथ मिला और मुशायरे का यह सिलसिला चल पड़ा। हालांकि, कुछ सालों तक पाकिस्तान के शायरों का दिल्ली आना मुश्किल रहा, लेकिन 70 के दशक के बाद मुश्किलें आसान हुईं और मुशायरे में कई नामचीन शायर शामिल हुए।

साभार: नवभारत टाइम्स