बाबरी मस्जिद मध्यस्थता पैनल में मुस्लिम रहनुमाओं को भी रखा जाये- असद क़ासमी

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बाबरी मस्जिद रामजन्मभूमि विवाद मध्यस्थता के जरिये बातचीत से सुलझाने के लिए बनाई गई कमेटी का उलमा ने स्वागत तो किया है, लेकिन इसमें आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर को शामिल किए जाने पर कड़ा एतराज भी जताया है।

उलमा का दो टूक कहना है कि श्रीश्री कोई सरकारी आदमी नहीं हैं। इसलिए उनका पैनल में शामिल किए जाने का कोई औचित्य नहीं बैठता। अगर उनको रखना ही है तो फिर किसी मुस्लिम धर्मगुरु को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए।

मदरसा जामिया शेखुल हिंद के मोहतमिम मौलाना मुफ्ती असद कासमी ने कहा कि जिस तरह मध्यस्थता पैनल में श्रीश्री रविशंकर को रखा गया उसी तरह मुस्लिम रहनुमाई करने वाले को भी इसमें शामिल किया जाए। कहा कि वह कोई सरकारी आदमी नहीं है।

पैनल में उनको रखना मुसलमानों के ऊपर जुल्म है और हिंदुस्तान का संविधान भी इसकी इजाजत नहीं देता। यह सरासर गलत बात है कि एक को रखा जाए और दूसरे को छोड़ दिया जाए।

अरबी के प्रसिद्ध विद्वान मौलाना नदीमुलवाजदी ने कहा कि जहां तक मध्यस्थता की बात है तो यह अच्छी चीज है। अगर बाबरी मस्जिद के दोनों फरीक (पक्षकार) हिंदू और मुसलमान एकजुट हो जाए तो इससे अच्छी बात नहीं होगी।

अदालत ने जो कमेटी बनाई है वो गलत कदम नहीं है। इससे मसले का होता है तो हिंदू-मुस्लिम एकजुटता को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि मुसलमान पहले ही अदालत के फैसले का स्वागत कर चुके हैं। हम यह समझते हैं कि कमेटी बिना भेदभाव के दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद किसी नतीजे पर पहुंचेगी।

मदरसा दारुल उलूम फारुकिया के मोहतमिम मौलाना नूरुलहुदा कासमी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का मध्यस्थता के जरिये अयोध्या मसले का हल निकालने का फैसला स्वागत योग्य है।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलमा-ए-हिंद समेत देश के मुसलमान पहले ही कह चुके हैं कि इस मुद्दे पर वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानेंगे। उम्मीद है कि बिना किसी भेदभाव के मध्यस्थ कमेटी सभी पक्षकारों की बात सुनेगी और पूरी ईमानदारी के साथ उसकी रिपोर्ट तैयार कर सुप्रीम कोर्ट को देगी।

अमर उजाला पर छपी खबर के अनुसार, ऑल इंडिया जमीयत राजपूत के अध्यक्ष मौलाना कारी मुस्तफा ने कहा कि अगर यह मुद्दा अब से पहले बाहर हल होना होता तो कभी का हल हो चुका होता, लेकिन बाहर लोगों की नीयत में खोट है इसलिए यह मसला बाहर हल होने वाला नहीं है।

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट खुद ही इस मसले का हल निकाले। क्योंकि मुसलमानों को सुप्रीम कोर्ट पर पूरा यकीन है। देश ही नहीं बल्कि विदेशों में रहने वाले मुसलमानों की निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हुई हैं।

उन्होंने कहा कि हमें किसी भी कमेटी के ऊपर कोई भरोसा नहीं है। क्योंकि इससे पहले भी इस मुद्दे पर सभी हालात सामने आ चुके हैं। इसलिए देश के सबसे बड़े मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट खुद ही फैसले करे तो बेहतर होगा।