बिजनौर में श्रीकृष्ण गौशाला की महिलाएं लिख रहीं आत्मनिर्भरता की इबारत

   

बिजनौर। कोरोना काल में जहां एक ओर लोगों के लिए रोजगार का संकट खड़ा हो गया है, वहीं उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में नगीना स्थित श्रीकृष्ण गौशाला में सेवा दे रहीं महिलाएं गाय के गोबर से विभिन्न उत्पाद बनाकर आत्मनिर्भरता की इबारत लिख रही हैं।

श्रीकृष्ण गौशाला का संचालन इंडोनेशिया से लौटीं अलका लोहाटी कर रही हैं। वह अपने पिता के निधन के बाद उनकी संजोयी विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। इस गौशाला को बचाने के लिए उन्हें भूमाफियाओं से भी काफी संघर्ष करना पड़ा है। इस समय कोरोना काल के संकट में अलका गौशाला में करीब आधा दर्जन महिलाओं को रोजगार देकर उनकी जिंदगी में वह नई रोशनी भर रही हैं।

अलका लोहाटी ने आईएएनएस से बातचीत में बताया कि उनके पिता वीरेंद्र लोहाटी ने सन् 1953 में श्रीकृष्ण गौशाला को पंजीकृत कराया था। उन्होंने इस गौशाला को बनाने में काफी संघर्ष किया है। वर्ष 2014 में बीमारी के कारण उनका निधन हो गया। अलका बताती हैं कि वह अपने परिवार के साथ इंडोनेशिया में थीं।

उन्होंने कहा, वर्ष 2015 में मैं जब भारत लौटी तो देखा कि गौशाला में भूमाफियाओं ने कब्जा कर लिया है। इसके बाद मैंने संकल्प लिया कि पिता के गौसेवा के प्रण को आगे बढ़ाना है। इसके लिए मैंने संघर्ष शुरू किया। करीब 80 प्रतिशत जमीन भूमाफियाओं के कब्जे से मैंने छुड़ा लिया गया है। इसके लिए काफी संघर्ष भी करना पड़ा। कई बार जान से मारने की धमकी मिली। मुझ पर हमले हुए, लेकिन मैंने संघर्ष नहीं छोड़ा। अब मैं यहीं नगीना में रहकर सिर्फ गौशाला की देखरेख करती हूं। पति अभी भी इंडोनेशिया में हैं।

उन्होंने बताया कि वर्तमान में उनकी गौशाला में करीब 137 गोवंश हैं। इनके गोबर से विभिन्न प्रकार के उत्पाद बनते हैं। देशी गाय के गोबर से गमले, गोकाष्ठ, गोलकंडे, हवन सामग्री, गोअर्क, मच्छर भगाने वाली क्वाइल, वर्मी कम्पोस्ट, गाय के शुद्ध घी को नाक में डालने की ड्रॉप और जैविक खाद। इसके अलावा गणेश महोत्सव पर गाय के गोबर से भगवान गणेश की प्रतिमा भी तैयार की जाती है।

अलका ने कहा, इसके अलावा हम लोग चीन को टक्कर देने के लिए गोबर से बनी राखियां भी बनाती हैं, जिसकी देश-विदेश में बहुत मांग रहती है। इस बार कोरोना संकट के कारण हमने ज्यादा नहीं बनाई है, बस अपने लोगों को ही बनाकर भेज रहे हैं। इसके अलावा कोरोना के समय में हम लोगों ने कूड़े में पड़ी चीजों से अच्छी-अच्छी कलाकृतियां, गमले, और पानी के फौव्वारे भी बनाएं हैं।

अलका लोहाटी कहती हैं कि इन उत्पादों से पर्यावरण की सुरक्षा भी हो रही है। साथ ही कई महिलाओं को रोजगार भी मिला हुआ है। गोबर से बने बहुत सारे उत्पाद देश के विभिन्न हिस्सों में बिक रहे हैं।

श्रीकृष्ण गौशाला में करीब 137 गोवंश हैं, जिनमें देशी गायों और उनके बछड़ों की संख्या अधिक है। इसके अलावा 21 लालसींगी गाय हैं, जिनके संरक्षण के लिए विशेष प्रकार की व्यवस्था की गई है।

अलका ने बताया, लालसींगी गाय उप्र में कहीं और बिल्कुल नहीं है। ओरिजनल गायें हमारी ही गौशाला में हैं।

यहां दो महिलाएं गीता रानी और गीता देवी को गाय के दूध निकालने के काम में लगाया गया है। इसके अलावा प्रेमावती यहां की सफाई व्यवस्था देखती हैं। अलका बताती हैं कि यहां पर लगी महिलाएं बड़े आराम से 6000 रुपये के आस-पास हर महीने कमा लेती हैं, जिससे उनका घर चल जाता है।

बिजनौर के मुख्य पशु चिकित्साधिकारी भूपेंद्र सिंह ने बताया कि श्रीकृष्ण गौशाला में लालसींगी गायों के संरक्षण का कार्य अच्छी तरह से हो रहा है। गौशाला में गोबर और गौमूत्र से कई उत्पाद भी बन रहे हैं। इसके माध्यम से कई महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराया गया है।

Source: IANS

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