बीजेपी सांसद ने अपनी ही सरकार पर उठाए सवाल, कहा- केंद्र सरकार मेरी बात नहीं सुन रही!

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बिहार के सारण से लोकसभा सांसद राजीव प्रताप रूडी ने संसद में अपनी ही सरकार को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया. सोमवार को लोकसभा में भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूडी ने विपक्षी सांसद जैसे तेवर दिखाए. उन्होंने कहा कि बिहार में इको टूरिज्म को लेकर केंद्र सरकार उनकी बात कोई बात नहीं सुन रही. साथ ही उन्होंने कहा, ‘तीन साल से लगातार कोशिश कर रहे हैं, लेकिन हर बार कोई न कोई नया नियम, कानून बताकर उन्हें घुमा दिया जाता है.’

केंद्रीय राज्यमंत्री प्रहलाद पटेल ने जब जवाब दिया कि इस मामले में बिहार सरकार से कोई डीपीआर नहीं मिला है, तो रूडी ने कागजात दिखाते हुए कहा कि अगर सदन में इसे पेश करने के बाद भी ऐसा कहा जा कहा है तो ये विशेषाधिकार का मामला है. सदन में रूडी के सवाल पूछने के बाद कुछ विपक्षी सांसदों ने मेज भी थपथपाई.

संसद में ऐसा ही गतिरोध कुछ दिन पहले और देखने को मिला था, जब केंद्र ने कहा था कि उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार को निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना, अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल 17 समुदायों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल नहीं करना चाहिए था. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान कहा ‘यह उचित नहीं है और राज्य सरकार को ऐसा नहीं करना चाहिए.’

शून्यकाल में यह मुद्दा बसपा के सतीश चंद्र मिश्र ने उठाया था. उन्होंने कहा था कि अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल 17 समुदायों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने का उत्तर प्रदेश सरकार का फैसला असंवैधानिक है क्योंकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग की सूचियों में बदलाव करने का अधिकार केवल संसद को है.
गहलोत ने कहा कि किसी भी समुदाय को एक वर्ग से हटा कर दूसरे वर्ग में शामिल करने का अधिकार केवल संसद को है.उन्होंने कहा ‘पहले भी इसी तरह के प्रस्ताव संसद को भेजे गए लेकिन सहमति नहीं बन पाई.’

उन्होंने कहा था कि राज्य सरकार को समुचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए अन्यथा ऐसे कदमों से मामला अदालत में पहुंच सकता है. सतीश चंद्र मिश्र ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 341 के उपवर्ग (2) के अनुसार, संसद की मंजूरी से ही अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग की सूचियों में बदलाव किया जा सकता है. मिश्र ने कहा ‘यहां तक कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग की सूचियों में बदलाव करने का अधिकार (भारत के) राष्ट्रपति के पास भी नहीं है.’