बुलंदशहर में हिंसा के बाद जब योगेश राज को पता चला कि उसे नामजद कर दिया गया तो वह सीधे अपने आका की शरण में पहुंच गया। सूत्रों ने बताया कि संगठन के एक शीर्ष पदाधिकारी के निर्देश पर योगेश राज एक माह तक हरिद्वार में रहा, जबकि पुलिस की टीमें उसे नोएडा, दिल्ली, गुरुग्राम आदि स्थानों पर तलाशती रहीं।
हिंसा के बाद योगेश राज को संगठन के एक बड़े पदाधिकारी के सामने पेश किया गया। योगेश राज ने अपनी बात संगठन के उक्त पदाधिकारी के सामने विस्तार से रखी। सूत्रों का कहना है कि योगेश राज ने संगठन के बड़े पदाधिकारी को बताया कि उसने गोकशी को लेकर नाराजगी जताई थी। हिंसा से उसका कोई दूर दूर तक लेना देना नहीं है।
योगेश राज ने उन्हें बताया कि जब हिंसा हो रही थी उस समय वह कोतवाली स्याना में एफआईआर दर्ज करा रहा था। इसका प्रमाण गोकशी की एफआईआर से ही मिल रहा है। जब संगठन के पदाधिकारी यह सहमत हो गए कि उसका हिंसा में कोई दोष नहीं है तो उसको संरक्षण देने का मन बना लिया गया। उसके बाद उसे गुप्त स्थानों पर रखा गया। ऐसी जगह पर रखा जहां के बारे में कोई सोच भी नहीं सके।
योगेश राज को मोबाइल पर किसी से भी बात करने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया। फिर संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारी योगेश राज के बचाव में उतर आए। सूत्रों का कहना है कि हरिद्वार के एक आश्रम और धर्मशाला में योगेश राज का अधिकांश समय व्यतीत हुआ। उन्होंने बड़ी सूझ-बूझ और समझदारी के साथ योगेश राज को पुलिस से बचाए रखा।
साभार- हिंदुस्तान