बेरोज़गारी के मुद्दे पर विफल मोदी सरकार ने देश के सबसे बड़े भर्ती आयोग का मज़ाक बनाकर रख दिया

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बेरोज़गारी के मुद्दे पर विफल हो चुकी मोदी सरकार द्वारा भारत के सबसे बड़े भर्ती संस्थान एसएससी से खिलवाड़ के संबंध में युवा-हल्लाबोल ने एक और चौंकाने वाला खुलासा किया है। नियमों को ताक पर रखकर आयोग के चेयरमैन अशीम खुराना को सेवा-विस्तार देने का आरोप झेल रही मोदी सरकार पर स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और युवा-हल्लाबोल का नेतृत्व कर रहे अनुपम ने कुछ नए और गंभीर आरोप लगाए हैं।

आरटीआई से मिले कागज़ातों के आधार पर अनुपम ने बताया कि 2018 में अशीम खुराना को दिया गया एक्सटेंशन ही नहीं, बल्कि 2015 में चेयरमैन के तौर पर हुई उनकी नियुक्ति भी सवालों के घेरे में है। कर्मचारी चयन आयोग यानी एसएससी देश के सबसे बड़े भर्ती संस्थानों में है जिसके माध्यम से सालाना दो करोड़ युवा अपने उज्ज्वल भविष्य का सपना देखते हैं। वर्ष 2018 में परीक्षाओं में धांधली, भ्रष्टाचार और पेपर लीक के ख़िलाफ़ देशभर में प्रदर्शन हुए थे जिसके दौरान छात्रों के आक्रोश के केंद्र में चेयरमैन अशीम खुराना थे।

आंदोलन के दबाव में सरकार ने सीबीआई जाँच की घोषणा तो कर दी लेकिन साल भर से ज़्यादा बीत जाने के बाद भी जाँच पूरी कर दोषियों को सज़ा और छात्रों को न्याय नहीं मिल पाया है। वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के माध्यम से युवा-हल्लाबोल ने नियुक्तियों में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ उच्चत्तम न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया। सीबीआई की एफआईआर में यह स्पष्ट हो गया कि एसएससी के अधिकारियों और प्राईवेट वेंडर सिफी टेक्नोलॉजीस की सांठगांठ से बड़े पैमाने पर भर्ती घोटाला चल रहा था।

इसके बावजूद प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली कैबिनेट कमिटी ने श्री खुराना को साल भर का सेवा-विस्तार दे दिया, वो भी ग़ैरकानूनी ढंग से और नियमों में बदलाव करके। लेकिन राजधानी दिल्ली में आयोजित एक प्रेस वार्ता में स्वराज इंडिया ने आरटीआई से मिली जानकारी के आधार पर चौंकाने वाला नया खुलासा किया। आंदोलन के युवा नेता अनुपम ने बताया कि बतौर चेयरमैन श्री अशीम खुराना की एसएससी में वर्ष 2015 में पहली बार हुई नियुक्ति भी सवालों के घेरे में है।

दिनांक 14 मई 2015 को एसएससी में चेयरमैन पद पर नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया गया जिसमें यह स्पष्ट कहा गया कि सिर्फ उन्हीं आवेदनों पर विचार किया जाएगा जो उचित माध्यम से आएंगे। साथ ही यह भी कहा कि पद के लिए अधिकतम आयु 59 वर्ष की होगी।

अलग अलग सरकारी विभागों से कुल 35 अधिकारियों के आवेदन आए जिनमें से पहले तो 4 को साक्षात्कार के लिए चुना गया और फिर उनमें से 2 नामों का चयन कैबिनेट कमिटी को भेजने के लिए किया गया। मोदी और राजनाथ सिंह की कैबिनेट कमिटी को नाम प्रस्तावित करने से पहले यह चयन प्रक्रिया चार-सदस्यीय चयन समिति के अंतर्गत किया गया।

मीडिया के समक्ष इन सभी अधिकारियों के नाम वाले कागज़ात पेश करते हुए अनुपम ने यह बताकर हर किसी को चौंका दिया कि चेयरमैन बनाये गए अशीम खुराना का नाम न ही दो चयनित अधिकारियों में था, न ही उन चार में जिनका साक्षात्कार हुआ और यहां तक कि खुराना का नाम 35 आवेदकों में भी नहीं था। मतलब कि एसएससी का चेयरमैन बनाए गए अशीम खुराना ने इस पद के लिए आवेदन तक नहीं भरा था। कैबिनेट कमिटी को नाम भेजने से ठीक पहले बड़े आश्चर्यजनक ढंग से सेलेक्शन कमिटी ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर “सर्च मोड” में नए उम्मीदवार ढूंढने का निर्णय ले लिया। फिर 1983 बैच के गुजरात कैडर अधिकारी अशीम खुराना का नाम वरीयता सूची में सबसे ऊपर रखते हुए सेलेक्शन कमिटी ने तीन नाम प्रस्तावित कर दिए।

इतना ही नहीं, 59 वर्ष से ज़्यादा आयु होने के कारण अशीम खुराना इस पद के लिए अयोग्य थे। इन सबके बावजूद हर पैमाने को ताक पर रखकर उन्हें कमर्चारी चयन आयोग का चेयरमैन बना दिया गया। बेशर्मी से किए गए इस नियुक्ति से यह स्पष्ट है कि गुजरात कैडर के खुराना को देश की सबसे बड़ी भर्ती संस्थान के मुखिया के तौर पर बिठाने के लिए नरेंद्र मोदी बेताब थे। प्रधानमंत्री मोदी को जवाब देना चाहिए कि आरोपी खुराना से याराना की उनकी क्या मजबूरी है?

22 दिसम्बर 2015 को अशीम खुराना एसएससी चेयरमैन के तौर पर नियुक्त कर दिए गए। चेयरमैन बनते ही आईटी कंपनी सिफी टेक्नोलॉजीस को देशभर में आयोग की ऑनलाईन परीक्षाएं करवाने का ठेका मिल गया। सुप्रीम कोर्ट में जमा किये गए सीबीआई जाँच की स्टेटस रिपोर्ट के अनुसार एसएससी घोटाले की एक बड़ी वजह सिफी और एसएससी की सांठगांठ थी।

पाँच साल के अनुभव से अब यह स्पष्ट हो चुका है कि मोदी सरकार युवा-विरोधी है और रोज़गार के मुद्दे पर अक्षम ही नहीं असंवेदनशील भी हैं। अनुपम ने बताया कि इस गोरखधंधे के खिलाफ और अशीम खुराना को चेयरमैन पद से हटाने की मांग और एसएससी में जवाबदेही तय करने के लिए जाने माने वकील प्रशांत भूषण के माधयम से दिल्ली हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। भारत जैसे युवा देश में युवा-विरोधी किसी भी पार्टी को सत्ता में रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।