“बेख़ौफ़ जीओ, बाइज़्ज़त जीओ” नफरती अपराध के ख़िलाफ पाॅपुलर फ्रंट का अभियान

   

पाॅपुलर फ्रंट आफ इंडिया की केंद्रीय सचिवालय ने हिंदुत्व भीड़ के द्वारा हमलों और देश भर में जारी नफरती अपराध के कारण अल्पसंख्यकों और कमज़ोर वर्गों के जीवन पर मंडलाते ख़तरे को देखते हुए, उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के लिए सामूहिक प्रयास की ज़रूरत पर रोशनी डालते हुए ‘‘बेख़ौफ जीओ, बाइज़्ज़त जीओ’’ के नारे के साथ राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करने का ऐलान किया है।

बैठक ने इस ओर इशारा किया कि चुनावी परिणाम आने के तुरंत बाद, प्रधानमंत्री ने वादा किया था कि वह अल्पसंख्यकों के अंदर से ख़ौफ को दूर करने और उनका विश्वास जीतने के लिए नए क़दम उठाएंगे और इसके लिए उन्होंने ‘सबका साथ, सबका विश्वास’ का नारा दिया था। लेकिन बहुत जल्द ही यह साफ हो गया कि उनका आश्वासन या तो केवल जुमला था या खुद उनके अपने बीजेपी और आरएसएस कार्यकर्ताओं को उनके शब्दों का कोई ख़्याल नहीं है।

संसद से लेकर सड़कों तक वे दूसरों पर ‘जय श्रीराम’’ को थोपने की कोशिश कर रहे हैं। श्रीराम के नाम को बदनाम करते हुए संसद के अंदर बीजेपी सांसदों ने जो कुछ किया, उससे हिंदुत्व गुंडों को हर गांव-देहात में ऐसी घटनाएं दोहराने का हौसला मिलता है। दूसरी मोदी सरकार बनने के बाद से पूरे देश में मुसलमानों और दलितों पर हमलों की अनगिनत वारदातें दर्ज की गई हैं।

अब आए दिन कहीं न कहीं किसी मुस्लिम या दलित को कोई बेबुनियाद आरोप लगाकर बेदर्दी से मार दिया जाता है। यहां तक कि यह साम्प्रदायिक और जातिवादी भीड़ बच्चों और बूढ़ों तक को नहीं छोड़ती।

जीने का अधिकार एक जन्मसिद्ध अधिकार है। यह एक संवैधानिक और मौलिक अधिकार भी है। सरकार की बुनियादी ज़िम्मेदारियों में यह बात भी शामिल है कि वह नागरिकों की जान और माल को सुरक्षा प्रदान करे। जब सरकार अपने कर्तव्यों के पालन में असफल साबित होती है, तो भारतीय दंड संहिता की दफा 96 से 106 के अनुसार नागरिकों को अपने शरीर और संपत्ति की सुरक्षा के लिए ज़रूरी बल प्रयोग की इजाज़त होती है।

भीड़तंत्र को रोकने के लिए 2018 में केंद्र एवं राज्य सरकारों को दिए गए सुप्रीम कोर्ट के निर्दोशों पर कोई विशेष अमल नहीं किया गया और न ही इस पर कोई सख़्त कानून बनाने पर विचार किया गया।
यह हमले तभी रूक सकते हैं जब पीड़ित वर्ग अपने दिलों से ख़ौफ को निकाल बाहर करने और किसी भी दबाव के आगे कभी न झुकने का फैसला कर लें।

सम्मान और इज़्ज़त का अहसास मानव अस्तित्व की क़ीमत को बढ़ाता है। सामाजिक सुरक्षा एक सामूहिक ज़िम्मेदारी है। लोगों को खुद आगे बढ़कर अपने मुहल्लों की सुरक्षा का काम करना होगा और उन्हें सुरक्षित और शांतिमय बनाना होगा। इसके लिए हर पंचायत, रेसिडेंट असोसिएशन, मुहल्ला कमेटी आदि की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वे अपने कार्यक्षेत्र में आने वाले लोगों की सुरक्षा को सुनिश्चित करें।

यह अभियान हर संभव स्तर पर जागरूकता पैदा करने के लिए शुरू किया गया है। यह राष्ट्रव्यापी अभियान 31 अगस्त तक जारी रहेगा। इसके तहत देश भर में पोस्टर अभियान, हैंडबिल का वितरण, जनसभाओं और सेमिनारों का आयोजन किया जाएगा।

पाॅपुलर फ्रंट के कार्यकर्ता और पदाधिकारी सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित बनाने में सामुदायिक एवं राजनीतिक नेताओं के रोल को उजागर करने के लिए उनसे मुलाकात करेंगे। इसके लिए स्थानीय प्रशासन और पुलिस के साथ बात-चीत भी अभियान में शाामिल है। बैठक ने देश की जनता से अपील की कि वे अभियान की सफलता के लिए अपना पूरा सहयोग दें।

चेयरमैन ई. अबूबकर ने बैठक की अध्यक्षता की, जिसमें महासचिव एम. मुहम्मद अली जिन्ना, ई.एम. अब्दुर्रहमान, ओ.एम.ए. सलाम, अब्दुल वाहिद सेठ और के.एम. शरीफ उपस्थित रहे।