भारतीय लोकतंत्र में आपातकाल को सबसे काला युग माना जाता है : सुप्रीम कोर्ट

   

नई दिल्ली, 14 अगस्त । सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका के प्रति कथित रूप से अपमानजनक ट्वीट करने के मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ स्वत: शुरू की गई अवमानना कार्यवाही में भूषण को अवमानना का दोषी माना है। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को कहा कि भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में आपातकाल अवधि को सबसे काला युग माना जाता है।

जून के अंत में भूषण ने अपनी राय व्यक्त करते हुए ट्वीट किया, भविष्य में इतिहासकार जब यह देखने के लिए पिछले छह वर्षों पर नजर डालेंगे कि कैसे आपातकाल की घोषणा किए बिना ही भारत में लोकतंत्र को बर्बाद कर दिया गया, तो वे सुप्रीम कोर्ट की भूमिका का उल्लेख निश्चित तौर पर करेंगे और विशेषकर चार पिछले प्रधान न्यायाधीशों (सीजेआई) का।

108 पन्नों के फैसले में न्यायाधीश अरुण मिश्रा, बी. आर. गवई और कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने कहा, यह सभी जानते हैं कि भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में आपातकाल के युग को सबसे काला युग माना जाता है।

पीठ ने भूषण के ट्वीट का संदर्भ देते हुए कहा कि पहली नजर यानी आम लोगों की नजर में सामान्य तौर पर सुप्रीम कोर्ट और भारत के प्रधान न्यायाधीश की शुचिता एवं अधिकार को कमतर करने वाला है।

पीठ ने कहा, एक आम नागरिक को जो ट्वीट का आभास होता है, वह यह है कि भविष्य में इतिहासकार जब यह देखने के लिए पिछले छह वर्षो पर नजर डालेंगे कि कैसे आपातकाल की घोषणा किए बिना ही भारत में लोकतंत्र को बर्बाद कर दिया गया, तो वे सुप्रीम कोर्ट की भूमिका का उल्लेख निश्चिततौर पर करेंगे और विशेषकर चार पिछले मुख्य न्यायाधीशों (सीजेआई) का।

अदालत ने कहा कि न्यायपालिका पर हमले को दृढ़ता के साथ निपटा जाना चाहिए, क्योंकि यह राष्ट्रीय सम्मान और प्रतिष्ठा को प्रभावित कर सकता है।

पीठ ने न्यायालय की निडरता और निष्पक्षता का हवाला देते हुए कहा कि न्यायालय एक स्वस्थ लोकतंत्र की बुलंदी है और उस पर दुर्भावनापूर्ण हमलों की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

अदालत ने कहा कि विकृत विचारों पर आधारित ट्वीट, हमारे विचार में, आपराधिक अवमानना है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक लोकतंत्र की नीव हिलाने की कोशिश से बड़ी सख्ती से निपटना होगा। शीर्ष अदालत ने माना कि ट्वीट स्पष्ट रूप से यह आभास देता है कि सुप्रीम कोर्ट, जो देश की सर्वोच्च संवैधानिक अदालत है, उसने पिछले छह वर्षो में भारतीय लोकतंत्र के विनाश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

अदालत ने यह भी कहा कि भूषण पिछले 30 वर्षों से सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे हैं और लगातार हमारे लोकतंत्र और इसके संस्थानों की बेहतरी विशेष रूप से हमारी न्यायपालिका के कामकाज से संबंधित जनहित के कई मुद्दों को उठाया है।

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