भारत का पैकेज्ड फ़ूड दुनिया में सबसे ख़राब

   

भारत में मिलने वाली पैकेज्ड या डिब्बाबंद खाने-पीने की चीजें स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक हैं। एक वैश्विक सर्वे में कहा गया है कि दुनिया के दूसरे मुल्कों की तुलना में भारतीय डिब्बाबंद खाद्य सामग्री के नमूनों में संतृप्त वसा (सैचुरेटेड फैट), चीनी और ऊर्जा घनत्व जरूरत से ज्यादा है।

यह न सिर्फ मोटापा और टाइप-2 डायबिटीज को बढ़ावा देता है बल्कि हृदय संबंधी बीमारियों का प्रमुख कारण भी बन सकता है। ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के जॉर्ज इंस्टिट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ ने यह सर्वे 12 देशों के 4 लाख से ज्यादा खाद्य और पेय उत्पादों के नमूनों की जांच के आधार पर किया है।

सर्वे के नतीजे ‘ओबीसिटी रिव्यूज जर्नल’ में प्रकाशित किए गए हैं। इनमें खाद्य और पेय उत्पादों में पोषण के लिए जरूरी नमक, चीनी, संतृप्त वसा, प्रोटीन, कैल्शियम, फाइबर, ऊर्जा आदि की मात्रा को जांचा गया है। देशों को हेल्थ स्टार रेटिंग सिस्टम के आधार पर नंबर दिए गए हैं।

बेहतर पैकेज्ड फूड और बीवरेज के मामले में सबसे ऊपर ब्रिटेन (2.83 स्टार रेटिंग) फिर अमेरिका (2.82) और उसके बाद ऑस्ट्रेलिया (2.81) का नाम है। भारत को 2.27 की रेटिंग मिली है जबकि चीन को 2.43 और चिली को 2.44 की रेटिंग दी गई है।

सर्वे की संचालिका एलिजाबेथ डनफर्ड ने अपने बयान में कहा है कि वैश्विक स्तर पर हम बहुत ज्यादा प्रॉसेस्ड फूड के आदी हो रहे हैं। हमारे सुपरमार्केट खराब वसा, चीनी और अत्यधिक नमक वाले उत्पादों से भरे पड़े हैं जो हमें बीमार बनाते हैं। दुर्भाग्यवश सबसे गरीब देश इस बारे में बात भी नहीं कर पा रहे। दरअसल बढ़ते शहरीकरण और कामकाज के स्वरूप में आए बदलाव के कारण खानपान में भारी बदलाव आया है। भारत में भी महिलाएं जब से काम के लिए बाहर निकलने लगी हैं, तब से डिब्बाबंद खाने का चलन तेजी से बढ़ने लगा है।

बच्चों में डिब्बाबंद खाने का का चलन कुछ ज्यादा ही है। इस तरह के खाने में काफी सहूलियत है। यह खाना बनाने के तामझाम से मुक्ति देता है और समय बचाता है। लेकिन इसे बनाने वाली कंपनियां स्वास्थ्य के पहलू की अनदेखी कर रही हैं। ऐसे खानों से कैंसर तक का खतरा बताया गया है। भारत में इसके दुष्प्रभावों से बचने की कोशिश की जा रही है।

भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने खाद्य सुरक्षा एवं मानक (लेवलिंग एंड डिस्प्ले) विनियमावली 2019 का मसौदा तैयार किया है, जिसके तहत खाद्य कंपनियों को डिब्बाबंद उत्पादों पर उत्पाद में विद्यमान वसा, चीनी और नमक के उच्च स्तर का जिक्र ‘लाल रंग में’ करना होगा। यह भी बताना होगा कि डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों में कितनी मात्रा में क्या-क्या पदार्थ मिलाया गया है। रेगुलेशन के और भी उपाय किए जाने चाहिए। लेकिन खाने-पीने के मामले में रेगुलेशन से ज्यादा बड़ी भूमिका जागरूकता होती है। इसके लिए उपभोक्ताओं को विभिन्न माध्यमों से सचेत करना होगा।

स्रोत: नवभारत टाइम्स