भारत को जीपीएस से बाहर: अमेरिका के नीयत पर सवाल!

   

भारत को जीएसपी कार्यक्रम से बाहर करने का एलान करके राष्ट्रपति ट्रंप ने अपनी “अमेरिका फर्स्ट” नीति को लागू करने की ओर एक और कदम उठाया है लेकिन उनका ये फैसला दोनों देशों के आपसी रिश्तों के लिए नई चुनौतियां पैदा कर सकता है.

वॉशिंगटन में डर इस बात का भी जताया जा रहा है कि कहीं वाणिज्य रिश्तों की ये तनातनी सामरिक और कूटनीतिक रिश्तों को भी अपनी चपेट मे न ले ले.

सवाल ये भी उठ रहे हैं कि इस वक्त जब भारत में आम चुनाव सर पर हैं, अमेरिका से भारत को होने वाले निर्यात में वृद्धि हुई है, व्यापार के पेचीदा मामलों पर बातचीत चल ही रही है तो इस फैसले के एलान की वजह क्या थी.

पिछले दो दशकों में भारत और अमेरिका शीत युद्ध की ठंडक को पीछे छोड़ काफी करीब आए हैं. जहां अमेरिका ने भारत को एक लोकतांत्रिक साझेदार, चीन के बढ़ते वर्चस्व पर लगाम कसने के लिए एक उभरती ताकत और सवा अरब लोगों के एक बढ़ते बाजार की तरह देखा है वहीं भारत को अमेरिका की तकनीकी और सामरिक अनुसंधान क्षमता और एक बड़े बाजार का फायदा मिला है.

इस दौरान वाणिज्य रिश्तों में तनाव रहे हैं, अमेरिका ने भारत के आर्थिक सुधारों की गति, व्यापार के माहौल, बौद्धिक संपदा और पेटेंट नियमों पर सवाल उठाए हैं, और जीएसपी से बाहर करने के साथ-साथ अन्य व्यापार प्रतिबंधों की धमकी भी दी है.

लेकिन पूर्व प्रशासनों के दौरान इन प्रतिबंधों से होने वाले फायदों को अन्य मामलों पर जारी साझेदारी में हो रही प्रगति को देखते हुए काफी हद तक नजरअंदाज किया गया.

साभार- डी डब्ल्यू हिन्दी