भारत ने कहा है कि यह निराश करने वाला है कि असम की राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) को गलत तरह से अल्पसंख्यक अधिकारों के मुद्दे से जोड़ा जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के एक विशेष प्रतिनिधि द्वारा एनआरसी के चलते ”मानवीय संकट” की संभावना जताए जाने के बाद नयी दिल्ली ने यह बात कही। भारत ने कहा कि किसी को भी ”अपूर्ण समझ” के आधार पर गलत निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन में प्रथम सचिव पौलोमी त्रिपाठी ने कहा कि एनआरसी को अद्यतन करना उच्चतम न्यायालय के आदेश और निगरानी वाली संवैधानिक, पारदर्शी तथा कानूनी प्रक्रिया है। त्रिपाठी ने मंगलवार (22 अक्टूबर) को संयुक्त राष्ट्र महासभा की थर्ड कमेटी (सामाजिक, मानवीय और सांस्कृतिक) के एक सत्र में कहा, ”भारत के असम राज्य में राष्ट्रीय नागरिक पंजी का मुद्दा अल्पसंख्यकों के अधिकारों का मुद्दा नहीं है। हम निराश हैं कि इस मुद्दे को गलत तरीके से अल्पसंख्यक अधिकारों के मुद्दे से जोड़ा जा रहा है। भारत में अल्पसंख्यकों को संवैधानिक सुरक्षा प्राप्त है जो हमारे मौलिक अधिकारों का हिस्सा है और जो न्यायोचित है।”
त्रिपाठी की यह टिप्पणी तब आई जब संयुक्त राष्ट्र के अल्पसंख्यक मुद्दों के विशेष प्रतिनिधि फर्नांड डे वैरेनेस ने असम में अवैध प्रवासियों की पहचान और प्रमाणन के लिए की गई एनआरसी कवायद के बारे में कहा। वैरेनेस ने महासभा की कमेटी में अपनी टिप्पणियों में कहा, ”…मैं यह मुद्दा उठाते हुए दुखी हूं कि आगामी वर्षों तथा महीनों में राज्यविहीनता की स्थिति और आगे जा सकती है।”
उन्होंने कहा कि इससे ”संभावित मानवीय संकट, अस्थिर स्थिति उत्पन्न हो सकती है क्योंकि भारत में हजारों तथा शायद लाखों बंगाली और मुस्लिम अल्पसंख्यकों को विदेशी माने जाने तथा असम राज्य के नागरिक न माने जाने का जोखिम है और इसलिए वे खुद को राज्यविहीनता की स्थिति में पा सकते हैं।”
इसके जवाब में त्रिपाठी ने कहा, ”अपूर्ण समझ के आधार पर किसी गलत निष्कर्ष पर पहुंचने की जगह न्यायिक प्रक्रिया को पूरा होने देना चाहिए। उन्होंने कहा, ”यह भेदभाव रहित प्रक्रिया है, जैसा कि डेटा प्रविष्टि के फॉर्म से देखा जा सकता है।” त्रिपाठी ने जोर देकर कहा कहा कि फॉर्म में धार्मिक जुड़ाव के बारे में जानकारी देने से संबंधित कोई कॉलम नहीं है। उन्होंने कहा कि सूची से छूटे किसी भी व्यक्ति के पास इस चरण में संबंधित न्यायाधिकरणों में अपील करने का अधिकार है और न्यायाधिकरण के फैसले से असंतुष्ट लोगों के पास उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय जाने का अधिकार है।
त्रिपाठी ने कहा कि सूची से छूटे ऐसे किसी भी व्यक्ति को राज्य की ओर से नि:शुल्क कानूनी सहायता दी जाएगी जो कानूनी सहायता का खर्च वहन कर पाने में असमर्थ हो। उन्होंने कहा, ”भारत ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में सभी के लिए समान अधिकार और अपने संविधान में कानून के शासन के लिए सम्मान सुनिश्चित किया है। मानवाधिकारों की रक्षा के लिए काम करने वाली न्यायपालिका और पूर्ण स्वायत्त राज्य संस्थान हमारे राजनीतिक ताने-बाने तथा हमारी परंपराओं का अभिन्न हिस्सा हैं।”
त्रिपाठी की टिप्पणियों के जवाब में वैरेनेस ने कहा, ”अल्पसंख्यक अधिकार मानवाधिकार हैं।” वैरनेस ने कहा, ”मेरा मानना है कि हमें इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए कि असम की स्थिति में मानवाधिकार शामिल हैं।” उन्होंने संबंधित लोगों के अधिकारों की रक्षा के वास्ते कुछ कदम उठाने के लिए भारत का धन्यवाद व्यक्त किया, लेकिन कहा कि यदि विशेष प्रतिनिधि असल में जमीनी हकीकत का आकलन करने में सक्षम हो तो ”अधिक बेहतर” होगा।