मलेशिया सम्मेलन: आलोचनाओ के बीच पाकिस्तान जाएंगे सऊदी के विदेशी मंत्री

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सऊदी अरब के विदेश मंत्री शहजादा फैसल बिन फरहान बृहस्पतिवार को एक दिन के दौरे पर पाकिस्तान आएंगे। दरअसल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कुआलालंपुर शिखर सम्मेलन से शरीक होने से इनकार कर दिया था।

ऐसा माना गया था उन्होंने यह फैसला सऊदी अरब के दबाव में लिया है। इसके बाद सऊदी अरब को लेकर आलोचनाएं शुरू हो गई और तुर्की ने इसे सऊदी धमकी में उठाया गया कदम तक बताया। इसी पृष्ठभूमि में सऊदी अरब के विदेश मंत्री यहां आने वाले हैं। कुआलालंपुर सम्मेलन को मुस्लिम देशों का एक नया संगठन बनाने के प्रयास के रूप में देखा गया था जो निष्क्रिय हो चुके, सऊदी अरब के नेतृत्व वाले इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) का विकल्प बन सके। खान ने मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद के 19 से 21 दिसंबर तक होने वाले सम्मेलन में शामिल होने के आमंत्रण को स्वीकार कर लिया था, लेकिन ऐन मौके पर उन्होंने कथित तौर पर सऊदी अरब के दबाव में आकर सम्मेलन में शामिल नहीं होने का फैसला किया।

उनके इस फैसले से पाकिस्तान को घरेलू स्तर पर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने कूटनीतिक सूत्रों के हवाले से कहा कि सऊदी अरब पाकिस्तान में आमजन से मिलने वाला समर्थन कभी नहीं खोना चाहता। इस मामले से उसकी जो छवि बनी है, उस को देखते हुए वह अपने विदेश मंत्री को यहां भेज रहा है। सऊदी अरब के विदेश मंत्री पाकिस्तान के सैन्य और असैन्य नेतृत्व से मुलाकात करेंगे और यह संदेश देंगे कि रियाद ‘पाकिस्तान के साथ अपनी लंबी रणनीतिक साझेदारी’ को महत्व देता है।

सम्मेलन में शामिल नहीं होने के बारे में पाकिस्तान का तर्क है कि वह तटस्थ रहना चाहता है। तुर्की के एक अखबार ने राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन के हवाले से कहा कि पाकिस्तान पर सम्मेलन से दूरी बनाने का दबाव बनाया गया था। इस सम्मेलन में मलेशिया, तुर्की, ईरान और कतर के नेता शामिल हुए। पाकिस्तान और सऊदी दोनों ने इसे खारिज कर दिया है। इस रिपोर्ट के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने वक्तव्य जारी कर कहा कि पाकिस्तान सम्मेलन में शामिल नहीं हुआ क्योंकि प्रमुख मुस्लिम देशों की चिंताओं को देखने के लिए समय और प्रयासों की जरूरत है।

विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा कि यह फैसला देश हित में लिया गया। सऊदी के दूतावास ने बयान जारी कर कहा कि रियाद ने कभी इस्लामाबाद को सम्मेलन में शामिल होने से नहीं रोका और न ही कभी धमकाया। अब सऊदी विदेश मंत्री की यात्रा को पाकिस्तान की चिंताओं का समाधान करने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है। पिछले साल सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात इमरान ने खान सरकार को संकट से उबरने के लिए वित्तीय मदद दी थी। वित्तीय मदद के अलावा दोनों देशों में लाखों पाकिस्तानी काम करते हैं, जो हर साल अपनी कमाई के नौ अरब अमेरिकी डॉलर पाकिस्तान भेजते हैं। यही वजह है कि पाकिस्तान ने इस शिखर सम्मेलन के मुकाबले रियाद को तरजीह दी।