मुस्लिम पक्ष की दलील: मामला ऐतिहासिक दावों का नहीं, मालिकाना हक का है !

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सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि यह मामला केवल भू-स्वामित्व का है। ऐतिहासिक दावों की गुंजाइश नहीं है। उन्होंने कहा कि कानूनन अगर कोई लंबे समय तक संपत्ति का इस्तेमाल नहीं करता तो इससे स्वामित्व नहीं बदल सकता। धवन ने कहा कि मैं दलीलें 1885 से रखना शुरू करूं या 1528 से? अगर 1528 से करूंगा तो ऐसे तमाम दस्तावेज पेश कर सकता हूं जिससे साबित होगा कि वहां मस्जिद थी। धवन ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि फैसला अनुमानों और संभावनाओं पर था। हम सेब और संतरे के बीच संतुलन की कोशिश करेंगे तो संविधान की मूल भावना खत्म हो जाएगी।

चित्र से धारणा नहीं बना सकते

धवन ने कहा कि हम इस आधार पर कोई धारणा नहीं बना सकते कि वहां मोर या कमल का चित्र मिले। इसका यह मतलब यह नहीं है कि वहां मस्जिद के पहले कोई ढांचा था। धवन ने कहा कि वैदिक युग में मंदिर और मठ नहीं थे। उस समय मूर्ति पूजा भी नहीं होती थी। एक मान्यता के मुताबिक यह सब बौद्ध काल में शुरू हुआ, लेकिन यह कहना कठिन है कि मूर्ति पूजा कब शुरू हुई।

दलील के लिए मांगे 20 दिन

इससे पहले सुनवाई शुरू होते ही धवन ने कहा कि मैं कोर्ट की पिछले कार्यवाहियों के दौरान की गई टोका-टाकी और अपनी टिप्पणियों के लिए माफी मांगता हूं। यह बात सबको पता है कि मैं चिड़चिड़ा होता जा रहा हूं। सुनवाई के दौरान धवन ने कहा कि वह अपनी दलीलों के लिए 20 दिन का समय लेंगे। उन्होंने कहा कि उनके लिए लगातार दलीलें देना मुश्किल होगा, इसलिए बुधवार को ब्रेक दिया जाए। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि इससे कोर्ट को परेशानी होगी। कोर्ट ने उन्हें शुक्रवार को ब्रेक लेने की सलाह दी, जिसे धवन ने मान लिया।

धवन को मिली धमकी पर सुनवाई आज

सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम पक्ष की पैरवी कर रहे राजीव धवन को मिली धमकी पर मंगलवार को सुनवाई करेगा। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सीजेआई की बेंच के समक्ष धवन की अवमानना याचिका का उल्लेख कर इस पर त्वरित सुनवाई की मांग की। इस पर कोर्ट मंगलवार को सुनवाई के लिए राजी हो गया। धवन ने शुक्रवार को दायर याचिका में बताया था कि उन्हें अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्ष की ओर से पैरवी करने पर धमकी दी जा रही है। याचिका में कहा गया है कि धमकी भरे पत्र के जरिए वकील को उसके कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए धमकी देना, न्याय प्रशासन के कामकाज में हस्तक्षेप है और इसलिए यह आपराधिक अवमानना का मामला है।

अतिक्रमण, फिर हमला किया, मस्जिद तोड़ी अब जमीन चाहते हैं

धवन ने कहा, हिंदुओं ने 1934 में बाबरी मस्जिद पर हमला किया, 1949 में इस पर अतिक्रमण किया और अंत में 1992 में इसे ढहा दिया गया। वे कहते हैं कि अंग्रेजों ने हिंदुओं के खिलाफ सहयोग किया। अब विवादित जमीन पर अपने अधिकार की रक्षा चाहते हैं। इस पर सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने धवन से कहा कि आपको इन बातों में जाने की जरूरत नहीं। आप केस से जुड़ी दलीलें दीजिए।

इसके जवाब में धवन ने कहा कि यह मुद्दे दूसरे पक्ष की ओर से उठाए गए हैं, इसलिए जवाब देने की अनुमति दी जाए। इस दौरान रामलला विराजमान की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि धवन को दलीलें पेश करने दी जाएं। इस पर सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा कि धवन जिस तरीके से चाहें केस रखने को स्वतंत्र हैं। बेंच में सीजेआई के अलावा जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर भी शामिल हैं।