मुस्लिम पक्ष के वकील और संविधान पीठ के बीच हुई नोकझोंक, बाद में मांगी माफी !

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उच्चतम न्यायालय में गुरुवार को रामजन्मभूमि विवाद की सुनवाई के दौरान केंद्रीय गुंबद के नीचे मूर्ति के मुद्दे पर मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन की संविधान पीठ से नोकझोंक हो गई। हालांकि, बाद में धवन ने मांफी मांगी और सुनवाई आगे बढ़ी। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ के सामने सुनवाई शुरू होते ही धवन ने कहा, ‘इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि विवादित स्थल पर केंद्रीय गुंबद के नीचे मूर्ति थी। जो भी गवाह इस बारे में सामने आए हैं, उन्होंने किसी और से सुनी हुई बातें ही अदालत में कही हैं। वे खुद कभी विवादित स्थल पर नहीं गए। उनके बयानों में विरोधाभास है। ऐसे में उन्हें सबूत नहीं माना जा सकता।’

इस पर पीठ में शामिल जस्टिस अशोक भूषण ने कहा, ‘ऐसा नहीं है। इस बात के सूबत हैं। इलाहाबद उच्च न्यायालय ने इन सबूतों को स्वीकार किया है।’ जस्टिस भूषण ने धवन से एक विशेष पेज पढ़ने को कहा, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। साथ ही रूखे स्वर में कहा, ‘यह सबूत ही नहीं है। हिंदू पक्ष के वकील वैद्यनाथन ने भी इसे नहीं पढ़ा है।’ जस्टिस भूषण ने इस पर थोड़े सख्त लहजे में कहा, ‘यह क्या बात हुई? आप सिर्फ इसलिए यह सबूत नहीं पढ़ना चाहते, क्योंकि इसे दूसरे पक्ष ने नहीं पढ़ा है। आप इसे पढ़ें, इसे जजों ने स्वीकार किया है। इस पर विश्वास किया जाए या नहीं, यह मुद्दा नहीं है।’

जस्टिस भूषण के इतना कहने पर धवन ने कहा कि उनसे आक्रमक तरीके से नहीं बोला जा सकता। यह ठीक नहीं है। इस पर हिंदू पक्ष के वकील सीएस वैद्यनाथन खड़े हो गए और कहा कि यह पीठ का अपमान है। उन्हें जज के लिए ऐसे शब्द कहने का कोई अधिकार नहीं है। बीच में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि धवन को सबूत पढ़ना चाहिए, इसमें कोई समस्या नहीं है। चारों ओर से घिरता देख धवन ने माफी मांगी और सबूत को पढ़ना शुरू किया।

सबूत में क्या है

यह सबूत 1934 में एक 80 वर्षीय गवाह के अपने नाना के साथ विवादित स्थल पर जाने की घटना से जुड़ा था। तब उसकी उम्र 15 वर्ष थी। गवाह ने 2000 में दिए बयानों में कहा था कि लोहे की रेलिंग के पीछे उसने मूर्ति के दर्शन किए थे। यह नौ से दस इंच ऊंची थी। उसने कहा था कि वहां एक चित्र था।

धवन की दलील

धवन ने कहा, गवाह ने पहले बताया कि केंद्रीय गुंबद के नीचे चित्र था और बाद में कहा कि नाना ने बताया था कि वहां मूर्ति भी थी। यही नहीं, वह वहा किस रास्ते से गया, किससे वापस आया, परिक्रमा कैसे की, यह भी स्पष्ट नहीं बताया है। साफ है कि गवाह ने सुनकर यह कहा है। इसे सबूत नहीं माना जा सकता।

पीठ का पक्ष

जस्टिस भूषण ने कहा कि हम यह नहीं कह रहे कि इसे सबूत माना जाए या नहीं। हमारा यही कहना है कि मूर्तियों के बारे में गवाह व साक्ष्य हैं।  यह नहीं कहा जा सकता कि इस बारे  में सबूत नहीं हैं।

‘वाजिद अली शाह के जमाने में लगी ग्रिल’ 

मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव ने कहा कि विवादित स्थल पर ग्रिल वर्ष 1855 में अवध के नवाब वाजिद अली शाह के जमाने में लगाई गई थी। बाहरी अहाते में राम चबूतरा ही स्थान माना जाता रहा है। जन्मभूमि शब्द वर्ष 1885 के बाद आया। अंदरूनी हिस्से में मूर्तियों बारे में सिर्फ इन्हीं गवाहों ने ही बताया है। इसके बाद सुनवाई दो बजे के लिए स्थगित हो गई। दो बजे बताया गया कि मुख्य न्यायाधीश की तबीयत ठीक नहीं होने के कारण बेंच नहीं बैठेगी। मामले में अब सुनवाई शुक्रवार को होगी।