मैं भी चौकीदार पर रवीश कुमार, क्या आप भी चौकीदार हैं ?

   

बीजेपी का सबसे बड़ा कैंपेन लांच हुआ उस पर राहुल गांधी के आरोप की छाप है. राहुल गांधी ने ही राफेल मामले को लेकर प्रधानमंत्री पर आरोप लगाया कि ‘चौकीदार चोर है.’ इस स्लोगन का संदर्भ राफेल और अनिल अंबानी हैं. क्या इसके जवाब में सब खुद को अंबानी का चौकीदार घोषित कर रहे हैं? अंबानी भी घबरा जाएंगे, वैसे ही दिवालियापन से गुज़र रहे हैं. इतने सारे चौकीदार आ गए और न्यूनमत मजदूरी मांगने लग जाएं तो मुश्किल हो जाएगा. एक क्वेश्चन और है. पिछले चुनाव में प्रधानमंत्री कह चुके थे कि वे दिल्ली में चौकीदार हैं. पांच साल में वे चाहते तो चौकीदारों के लिए क्या नहीं कर सकते थे. अगर पांच साल में चौकीदार थानेदार नहीं हुआ तो मतलब यही है कि सिस्टम रूका हुआ है. इस चुनाव में स्लोग सूबेदार हो सकता था या हवलदार हो सकता था. मेरी राय में कैच लाइन जिसने लिखी है उसकी पेमेंट रोक देनी चाहिए.

जब आप चौकीदारों की हालत देखेंगे तो फिर मज़ाक नहीं करेंगे. न ही इनका चुनावी इस्तमाल करेंगे. जब शहर बड़े हो रहे थे तब सुरक्षा की ज़रूरतें भी बढ़ रही थी. इससे एक बाज़ार बना और गांवों के लाखों लोग रंग बिरंगी बर्दी में सिपाही बनाकर हाई फाई सोसायटी और कालोनियों के गेट के बाहर खड़े कर दिए गए. 12-12 घंटे की ड्यूटी, कम वेतन और बैठने से लेकर पेशाब करने की सुविधा तक नहीं. फिर भी अपनी वर्दी के रंग को देखकर आधे सिपाही, आधे सैनिक के अहसास से जीते रहे. सिक्योरिटी गार्ड कहते हैं. चौकीदार नहीं. हमारे सहयोगी सुशील महापात्रा ने कुछ गार्ड से बात की. हम चेहरा और पहचान नहीं दिखाना चाहते. मगर जो हाल है वो सुन लें फिर आप अपने लिए नहीं, किसी स्लोगन राइटर के कैंपेन के लिए नहीं, इन चौकीदारों के लिए चौकीदार बनिए. मज़ाक मज़ाक में आप लाखों लोगों का भला कर देंगे.

सरकार ने जो न्यूनतम मज़दूरी तय की है उसके हिसाब से भी इन चौकीदारों को वेतन नहीं मिलता है. दिल्ली में जो न्यूनतम मज़दूरी है उसके हिसाब से इन्हें 14000 रुपया मिलना चाहिए, लेकिन इन्हें दस हज़ार मिलता है. इनकी मांग है कि 600 रुपये प्रति दिन मिले. यानी 18,000 रुपये मासिक सैलरी हो, बल्कि यही अच्छा मौका है. इस चुनाव में लाखों चौकीदार अगर 18000 की सैलरी के लिए सड़क पर उतर आएं तो एक मुद्दा तो बन ही जाएगा. असली चौकीदार 10 रुपये को तरसे और करोड़पति लोग चौकीदार बनकर घूमे, यह चुनाव है, फैन्सी ड्रेस पार्टी नहीं है. सिर्फ सरकार ही नहीं, आप सभी अपनी अपनी सोसायटी में गार्ड की हालत का पता कीजिए. एक और गार्ड की व्यथा सुनिए. ये 8 साल से चौकीदारी कर रहे हैं.

चौकीदारों का इस नारे के बहाने प्रधानमंत्री से पूछना, इस नारे का मज़ाक उड़ाने वालों से कहीं ज्यादा बेहतर है. ऐसा तो है नहीं कि सिक्योरिटी एजेंसी चलाने वाले प्रधानमंत्री के समर्थक नहीं होंगे. कम से कम से वही लोग इनकी सैलरी 18000 कर दें और महीने में चार छुट्टी कर दें तो कमाल हो जाए. वो अपना बहीखाता पब्लिक में ट्वीट कर दें पर याद रहें कि हम जानते हैं कि उनसे दस्तखत 15000 पर कराया जाता है और सैलरी दी जाती है 10,000. ऐसे लोगों को ट्वीट करना चाहिए कि मैं भी चौकीदार, मेरी एजेंसी चौकीदार की, और मेरी एजेंसी में सैलरी 18000 की. सुशील कुमार महापात्रा लोगों से पूछ रहे थे कि मुद्दे कैसे बने.

तो आपने देखा कि ट्विटर और फेसबुक पर किसी भी मुद्दे को कैसे खत्म किया जाता है. लाखों की संख्या में असली चौकीदारों को आपकी नज़र से गायब कर दिया गया. उनकी जगह पर खाते पीते लोग चौकीदार बनकर ट्वीट कर रहे हैं. अब ये नारा ऐसा है कि भैंस भी चोरी होगी तो प्रधानमंत्री के ट्विटर हैंडर पर टैग कर देंगे. भैंस की फोटो भी और कहेंगे कि हमरी भैंसिया का पता बताइए. थाने से पहले चौकी होती है. चौकी से होता है चौकीदार और भी मतलब होते होंगे. हमने राष्ट्रीय अपराध शाखा ब्यूरो का रिकॉर्ड देखा. 2014 से 2016 के बीच भारत में चोरी के मामले की संख्या बढ़ती जा रही है.

2016 के साल में देश भर में चोरी के 4, 94, 404 मामले दर्ज हुए थे. 2015 में चोरी के 4, 67, 833 मामले दर्ज हुए थे. 2014 में 4, 40,915 मामले दर्ज हुए. प्रधानमंत्री को चौकीदार बनने की ज़रूरत नहीं है. अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश में जिक्र था कि भारत के 21 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में साढ़े चार लाख सिपाही के पद खाली थे. तब सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि भर्ती करने का क्या तरीका होगा, बताइये. मगर वैकेंसी भरी नहीं गई. 2018 में इकोनमिक्स टाइम्स की खबर के अनुसार भारत में कुल 5 लाख पोस्ट खाली हैं सिपाही हैं. सबसे अधिक यूपी में 1 लाख 80 हज़ार पद खाली हैं. यूपी में कुल फोर्स का आधा पद खाली हैं. सोचिए अगर 5 लाख सिपाही भर्ती हुए होते तो आज पांच लाख लोग कह रहे होते कि प्रधानमंत्री जी हम हैं न चौकीदार. आपको चौकीदार होने की ज़रूरत नहीं है. मगर ट्विटर वालों ने आराम से सिपाहियों की भरती के सवाल को गायब कर दिया.

नारों और स्लोगन के सहारे इसी तरह मुद्दों की हत्या होती है और रोज़गार की आस में, सिपाही बनने की आस में एक नौजवान का उम्र बीत जाता है. जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र नजीब का आज तक पता नहीं चला. जब ट्विटर पर चौकीदार का हल्ला हुआ तो उनकी मां फातिमा नफीस की तरफ से ट्वीट आया कि ‘अगर आप चौकीदार हैं तो मुझे बताइये, मेरा बेटा नजीब कहां है. आपने एबीवीपी के गुंडों को गिरफ्तार क्यों नहीं किया. क्यों तीन तीन एजेंसियां मेरे बेटे को खोज नहीं पाईं.’

रेल मंत्री पीयूष गोयल ने भी खुद को चौकीदार घोषित कर दिया है. प्रधानमंत्री के ट्वीट को री-ट्वीट करने वालों में कुछ ही मंत्री हैं जो सबसे आगे रहते हैं. पिछले साल 10 सितंबर 2018 की खबर है. पीटीआई पर आई थी. पिछले साढ़े तीन साल में रेलवे में चोरी के 55,000 से अधिक मामले दर्ज हुए हैं. चोरी की घटना बढ़ती जा रही है. 2015 में चलती ट्रेन में चोरी के 12, 592 मामले दर्ज हुए. 2016 में 14,619 सामान चोरी हुआ था. 2017 में 18,936 मामले दर्ज हुए. 2018 के पहले छह महीने में 9,222 मामले दर्ज हुए. साढ़े तीन साल में 55,000 से अधिक चोरी के मामले दर्ज हुए. इस रिपोर्ट में यह भी है कि हर साल चोरी के मामले में 3000 से अधिक चोर गिरफ्तार हुए. 2005 में यूपीए सरकार ने प्राइवेट सुरक्षा एजेंसियों के लिए कानून बनाया था. इसे प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसी रेगुलेशन एक्ट 2005 पास किया था. इसमें प्रावधान था कि सुरक्षा गार्ड पर सभी नियम लागू होंगे मगर क्या लागू होता है. अगर इसका स्टेटस रिपोर्ट होता है तो हम आज इस कानून को लागू होते देखते, लाखों की ज़िंदगी बदलते हुए देखते. इनकी ज़िंदगी की असली वास्तविकता को गायब कर जो विज्ञापन बनता है वो उनकी जेब भरेगा जहां ये विज्ञापन चलेगा. आप समझ ही गए होंगे. मेरी यह बात विपक्ष के विज्ञापनों और स्लोगनों पर भी लागू है.

साभार : NDTV