मोदी की एंट्री के साथ ही आडवाणी की खिसकती गई कमान

   

नई दिल्ली : अमित शाह बतौर अध्यक्ष अभी पार्टी में सर्वोच्च पद पर हैं और अनौचारिक तौर पर प्रधानमंत्री मोदी के बाद उन्हें ही सबसे ताकतवर नेता माना जाता है। लेकिन उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ाने के ऐलान से यह संकेत मिल रहे हैं कि यदि फिर मोदी सरकार बनती है तो शाह सरकार में नंबर दो की हैसियत वाले नेता हो सकते हैं। वे अपनी छवि पिछले दरवाजे (राज्यसभा) से संसद में आने वाले नेता की बजाय जननेता के रूप में आना पसंद कर रहे हैं।

अगर वे लोकसभा से चुनकर आते हैं और उन्हें मंत्री पद दिया जाता है तो सरकार में उनकी स्थिति नंबर दो की हो सकती है। बीजेपी को शून्य से शिखर तक ले जाने वाले आडवाणी ने बीजेपी को खड़ा करने के लिए न सिर्फ अथाह परिश्रम किया, बल्कि पहली बार पार्टी को सत्ता का स्वाद चखाने में भी अहम भूमिका निभाई। राम मंदिर को धार देने में भी आडवाणी की ही भूमिका थी, जिन्होंने रथयात्रा तक निकाली। पहली बार 1970 में राज्यसभा में आने के बाद वे संसद में कई बार राज्यसभा और फिर कई बार लोकसभा के सदस्य रहे। लेकिन 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद वे लोकसभा में आमतौर पर चुप ही रहे।

संसद के सेंट्रल हाल में नरेन्द्र मोदी को संसदीय दल का नेता चुने जाने के वक्त दिया गया उनका भाषण ही संभवत: अंतिम बड़ा भाषण था। हालांकि उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में गांधी नगर से अमित शाह को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद ही उनकी संसदीय जीवन से विदाई मानी जा रही है, लेकिन आडवाणी को उम्मीदवार न बनाने की पहले से ही चर्चाएं चल रही थीं। खुद आडवाणी की ओर से अब तक कुछ नहीं कहा गया और न ही पार्टी की ओर से यह बताया गया है कि क्या आडवाणी ने खुद ही चुनाव न लड़ने की इच्छा जताई थी या नहीं।

दरअसल, 2004 और 2009 में बीजेपी की हार के बाद उनका जलवा पहले की तरह कायम नहीं रहा। लेकिन 2013 में मोदी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनाए जाने के बाद आडवाणी के हाथ से पार्टी की कमान भी धीरे धीरे खिसकती चली गई।

बीजेपी उम्मीदवारों की बहुप्रतीक्षित पहली लिस्ट घोषित होते ही यह साफ हो गया कि संसद में लगभग 49 साल बिताने के बाद पार्टी को खड़ा करने वाले दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी की संसदीय जीवन से विदाई लगभग तय हो गई है। इसके साथ ही औपचारिक तौर पर भारतीय राजनीति से अटल के बाद अब आडवाणी युग भी समाप्त हो चला है। उनकी जगह अब बीजेपी की कमान पूरी तरह से नई पीढ़ी के हाथ में आ गई है। आडवाणी की जगह गांधीनगर से अमित शाह के चुनाव लड़ने के ऐलान से भविष्य में अगर बीजेपी की सरकार बनती है तो उसमें भी नंबर दो की जगह भी तय होती नजर आ रही है।