मोदी के खिलाफ़ विपक्ष की एकजुटता कितना मजबूत?

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कोलकाता में तृणमूल कांग्रेस की नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पहल पर हुई विराट रैली ने पीएम नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान पहली बार देशव्यापी विपक्षी एकता की संभावना का स्पष्ट संकेत दिया है.

डी डब्ल्यू हिन्दी पर छपी खबर के मुताबिक इस रैली में कांग्रेस समेत 22 राजनीतिक पार्टियों के 25 वरिष्ठ नेता शामिल थे लेकिन वामपंथी पार्टियों की इसमें शिरकत नहीं थी. यूं भी सीपीएम अभी तक अपनी राजनीतिक लाइन तय नहीं कर पाई है और अन्य वामपंथी पार्टियां भी अंधेरे में ही रास्ता टटोल रही हैं.

कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस, तेलुगु देशम पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी और डीएमके जैसी विभिन्न क्षेत्रों, जनाधारों और विचारधाराओं वाली इन सभी पार्टियों का एक साझा उद्देश्य आने वाले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को हराना है क्योंकि पिछले साढ़े चार सालों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की छत्रछाया में जिस तरह से संवैधानिक संस्थाओं की दुर्गति हुई है.

देश में हर प्रकार की असहिष्णुता बढ़ी है, अर्थव्यवस्था तहस-नहस हुई है और रफाल लड़ाकू विमानों की खरीद में घोटाले के आरोप भी सामने आए हैं, उसके कारण सरकार की लोकप्रियता में काफी गिरावट आई है. यदि विपक्ष इसका चुनावी लाभ उठाना चाहता है तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है.