कोलकाता, 30 अप्रैल । गोल्डन ट्राइएंगल इलाके में दक्षिण और दक्षिणपूर्व एशियाई देशों में अवैध मादक पदार्थों की आपूर्ति के कारण भारत सहित म्यांमार के पड़ोसियों की चिंताएं बढ़ रही है।
लाओस, थाईलैंड और चीन की सीमा से सटे पूर्वोत्तर म्यांमार में स्थित गोल्डन ट्रायंगल, मादक दवाओं के दो सबसे बड़े वैश्विक स्रोतों में से एक माना जाता है।
पड़ोसी थाईलैंड में एंटी मादक पदार्थों के अधिकारियों ने पिछले छह महीनों में 8 करोड़ से अधिक
मेथामफेटामाइन की गोलियां और याबा जब्त किया है।
म्यांमार और मिजोरम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में म्यांमार के साथ भारत की सीमाओं की रक्षा करने वाली असम राइफल्स ने भी मादक पदार्थों की बरामदगी में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है, लेकिन कई लोगों का मानना है कि ये बरामदगी छोटा हिस्सा जैसा है।
असम राइफल्स के डीजी लेफ्टिनेंट जनरल सुखदीप सांगवान ने हाल ही में एक सेमिनार के दौरान आईएएनएस को बताया कि उनका पारंपरिक आतंकवाद विरोधी बल म्यांमार के ड्रग के खतरे से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार है।
सांगवान ने कहा, हमने उन सीमाओं पर ध्यान केंद्रित करके शुरूआत की, जो सुर्खियां बटोरने वाली सीमा पार करती हैं, लेकिन अब हम लंबे फ्रंटियर पर काम कर रहे संगठित कार्टेलो पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। हमारे समर्थक सक्रिय खुफिया अभियान ड्रग तस्करी के रैकेटों का भंडाफोड़ करने में मदद कर रहे हैं
असम राइफल्स द्वारा मिजोरम और मणिपुर में कुछ बड़ी बरामदगी ने भारत म्यांमार सीमा पर चल रहे ड्रग कार्टेल्स पर हलचल पैदा कर दी है, लेकिन म्यांमार में ड्रग उत्पादन का उछाल चिंता का विषय बना हुआ है।
इंटेलिजेंस ब्यूरो के पूर्व अधिकारी बेनु घोष ने कहा, हमारी सीमाओं पर इन कार्टेल्स की मौजूदगी, बर्मी सेना के साथ उनके लिंक और हमारे कुछ विद्रोहियों के इस्तेमाल के लिए हमारी ड्रग प्रवर्तन एजेंसियों और सीमा रक्षक बलों के लिए नई चुनौतियां पैदा कर रहीं है।
उनका कहना है कि भारतीय एजेंसियों और असम राइफल्स जैसी ताकतों को अधिक से अधिक अंतर एजेंसी समन्वय विकसित करके चुनौती को पूरा करने के लिए तैयार रहना चाहिए और नशीली दवाओं से संबंधित खुफिया जानकारी को ऊपर रखना चाहिए।
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