यमन ज़ंग: 46 महिने की लड़ाई में सऊदी अरब को क्या मिला?

   

मार्च 2015 से पहले तक यमन का संकट लोगों के प्रदर्शनों और यमनी दलों के परस्पर मतभेदों तक सीमित था लेकिन चूंकि सऊदी अरब , यमन पर अपना एकाधिकार समझता था इस लिए उसने कुछ अन्य देशों के साथ मिल कर मार्च 2015 में इस देश पर हमला कर दिया और अब इस हमले को 46 वां महीना चल रहा है।

सऊदी अरब की इस बर्बरता की वजह से यमन में मानव त्रासदी का जन्म ले चुकी है और हज़ारों लोग अब तक मारे जा चुके हैं। यमन के सरकारी प्रवक्ता ज़ैफुल्लाह शाही ने बताया है कि 2018 के अंत तक सीधे रूप में मारे जाने वाले आम नागरिकों की संख्या 15 हज़ार 259 हो गयी है जबकि हवाई अड्डों के बंद होने की वजह से 17 हज़ार 608 से अधिक रोगी भी मौत का शिकार हो चुके हैं।

सऊदी अरब और उसकी मंडली के हमले में घायल होने वाले यमनियों की संख्या 24 हज़ार 121 है। संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकारी युनुस अबू अय्यूब का कहना है कि सऊदी अरब ने यमन के संकट को क्षेत्रीय संकट बना दिया है। इसी मध्य सऊदी अरब का व्यवहार संकट के जारी रहने का कारण बना है।

सऊदी अरब ने विभिन्न अवसरों पर शांति की कोशिश को नाकाम बनाया है और यह सब कुछ अमरीका और इस्राईल के इशारे पर हुआ है क्योंकि यमन में संकट का लाभ सब से अधिक इन्ही दोनों को हो रहा है। अमरीका इस प्रकार से अधिक से अधिक हथियार सऊदी अरब को बेच रहा है और इस्राईल , यमन पर हमले में सऊदी अरब के समर्थन की कीमत कई रूपों में सऊदी अरब से वसूल रहा है।

साभार- ‘parstoday.com’