यह लड़ाई आवारा पशुओं और किसान की नहीं

   

वेस्टर्न यूपी में खेतों और सड़कों पर घुमते आवारा पशुओं और अपनी फसल को बचाने में लगे किसानों के बीच एक जंग छिड़ी हुई है. राज्य में जो सरकार किसानों ने चुनी है वह आवारा पशुओं का बचाव और किसानों पर कार्यवाई कर रही है. रबी की तबाह होती फसल को बचाने के लिए जाड़े की रात में पहरा देते एक किसान ने खीझकर कह ही दिया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सुबह गाय को गुड़ खिलाते हुए फोटो छपवाते है और समझते हैं कि उत्तर प्रदेश की साड़ी गायें गुड़ खा रहीं हैं. अगर उन्हें और मोदीजी को गायों से इतना ही प्रेम है तो इनको अपने बंगले में क्यों नहीं रख लेते.

गाँधी और गौरक्षा

सचाई यह है कि समस्या गायों और खेती से ज़्यादा उदारता और कट्टरता के बीच छिड़ी जंग से जुडी है. अभी देश में उदारता को बाड़े में कैद करके रख दिया गया है जबकि कट्टरता छुट्टा आवारा पशुओं कि तरह भारतीयता और भाईचारे कि हरी-भरी विरासत को चरती और रौंदती घूम रही है. जो लोग सोचते थे कि कट्टरता सिर्फ सामाजिक ताने बाने को ख़राब करती है और अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचती है, उन्हें समझ में आ गया होगा कि वह दोनों को तबाह करती है. यही बात जब रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कही थी तो सत्ता में बैठे मौजूदा लोग तमतमा गए थे. लेकिन बात की सत्यता आज शहर से लेकर गाँव तक प्रमाणित हो रही है. यहाँ तक कि स्वयं बीजेपी के सांसद भी संसद से सड़क तक गुहार लगा रहे हैं.

स्वामी दयानन्द सरस्वती और बाद में महात्मा गाँधी ने जिस गौरक्षा की बात की थी, उसका रिश्ता धार्मिक आस्था के साथ-साथ अर्थव्यवस्था से भी जुड़ा था. आर्य समाज की गौरक्षिणी सभाओं में हिन्दुओं के साथ मुस्लमान भी होते थे. वजह साफ़ थी कि कृषि अर्थव्यवस्था से हिन्दू-मुस्लिम  सबके हित जुड़े थे. गाँधी को इस बात का एहसास था कि गौरक्षा का यह अभियान अगर गैर हिन्दुओं के प्रति नफरत और हिंसा की भावना से चलाया जायेगा तो वह बुरे परिणाम देगा और इसका जिम्मा अगर अकेले कृषक परिवार पर छोड़ दिया जायेगा तो भी उसके नतीजे अच्छे नहीं होंगे. गाँधी ने स्पष्ट कहा था कि गौरक्षा हिन्दुओं का धर्म है लेकिन हिन्दू के विरुद्ध बल प्रयोग करके गाय कि रक्षा करना हिन्दू का धर्म कदापि नहीं हो सकता है. उनका कहना था कि किसान पशु को हमेशा अपने घर में नहीं रख सकता. इससे बीमारी फैलती है और इसके साथ आने वाला आर्थिक बोझ वह सहन नहीं कर पायेगा. इसलिए पशुपालन को लेकर वैज्ञानिक दृष्टि अपनानी चाहिए.

गाँधी पशुओं की प्रजनन क्षमता को नियंत्रित करने के लिए दूसरे देशों की तकनीक अपनाने का भी सुझाव देते थे. उनका मानना था कि पशुपालन के व्यक़्तिश: प्रयास ने स्वार्थ और अमानुषिकता को बढ़ावा दिया है, इसलिए सामूहिक पशुपालन किया जाना चाहिए. सहकारी खेती इसका एक तरीका हो सकता है. इसरायली इतिहासकार युवाल नोआ हरारी कहते हैं कि आज जब खेती और पशुधन से ज़्यादा उद्योग, और उनसे भी ज़्यादा बड़ी संपत्ति आँखड़े बन कर उभर रहे हैं, तब गौरक्षा और गौवंश को संभालने के लिए किसी कट्टर नज़रिये कि बजाये उदार नज़रिये ही काम का साबित होगा. आज से चालीस साल पहले बैल किसान कि शान हुआ करते थे. आज ज़्यादातर किसानों के हाथ में बैल का पगहा नहीं है. उनके बेटों के एक हाथ में ट्रेक्टर की स्टीयरिंग या मोटर साइकिल का हैंडल दूसरे में मोबाइल होता है. ऐसे में गौरक्षा के मायने बदल चुके हैं.

जो लोग समझते है कि कट्टरता के आवारा पशु सिर्फ देहात और खेतों में विचरण कर रहे हैं वह भूल कर रहे हैं. कट्टरता के यह आवारा पशु अलीगढ, हाथरस और बुलंदशहर में ही नहीं, पंजाब के फगवाड़ा शहर में स्थित एक प्राइवेट प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में भी विचरण करते मिल जायेंगे. यह केवल संयोग नहीं है कि वहां हनुमान चालीसा से भारतीय विज्ञानं कांग्रेस कि शुरुआत होती है और वक्त अपना सम्बोधन गायत्री मंत्र से प्रारम्भ करते हैं. यह भी संयोग नहीं है कि कौरवों और पांडवों का जन्म वहां टेस्ट तुबे से हुआ बताया जाता है और त्रेता युग में २५ पुष्पक विमानों के होने का दवा किया जाता है. दरअसल गौरक्षा और विज्ञानं कांग्रेस तो एक बहाना है. उद्देश्य कट्टरता को बढ़ाना है. वह अल्पसंख्यकों पर हमला करके आती है तो उस तरह से लाओ, बहुसंख्यकों को दबा कर आती है तो उस तरह से लाओ. विज्ञान और आधुनिक ज्ञान को नष्ट करके आती है तो उस तरह से लाओ.