उत्तर प्रदेश सरकार ने पूरे राज्य में गोशालाएं बनाने के लिए गौ कल्याण उपकर (सेस) लगाने का फैसला किया है। इसके तहत 0.5 प्रतिशत सेसशराब के अलावा उन सभी वस्तुओं पर लगेगा जो उत्पाद कर के दायरे में आती हैं। इतना ही उपकर सरकारी एजेंसियों द्वारा वसूले जाने वाले टोल टैक्स पर और विभिन्न सरकारी उपक्रमों के मुनाफे पर भी लगेगा। मंडी परिषदें, जो अभी गौ सुरक्षा के लिए एक प्रतिशत दे रही थीं, अब दो प्रतिशत देंगी।
इधर राज्य में बीजेपी सरकार आने के बाद इस पर रोक लगी तो बड़ी संख्या में बछड़े आवारा घूम रहे हैं। यही नहीं, लोग-बाग उन गायों को भी खुला छोड़ दे रहे हैं जो दूध देना बंद कर चुकी हैं। किसानों और आम लोगों की परेशानी को देखते हुए इन गाय-बछड़ों को किसी निश्चित जगह सुरक्षित रखने की राज्य सरकार की मंशा तो ठीक है, पर यह काम उतना आसान नहीं है, जितना लगता है। भटकने वाले मवेशियों में काफी बड़ी संख्या सांड़ों की है, जो स्वभावत: किसी दायरे में बंधकर रहने वाले जीव नहीं हैं। उन्हें पकड़ने और बंद करने में अभी जितनी चुस्ती दिखाई जा रही है, वह न सिर्फ सरकारी कर्मचारियों और दूसरे पशुओं के लिए, बल्कि खुद सांड़ों के लिए भी जानलेवा हो सकती है।
याद रखना जरूरी है कि पशुओं को रखे जाने की एक सीमा है। गोवंश की संख्या नियंत्रित किए बगैर उन्हें बाड़ों में रखने की योजना ज्यादा कामयाब नहीं हो सकती। लिहाजा बेहतर यही होगा कि पशु चिकित्सकों और कृषि विज्ञानियों के एक पैनल से इस बारे में एक दीर्घकालिक योजना बनाने और इस पर अमल के ठोस, व्यावहारिक सुझाव देने को कहा जाए। पिछले कुछ सालों में शहरी कुत्तों की आबादी पर काबू पाने के कुछेक उदाहरण देश में देखे गए हैं। गोवंश नियंत्रण में भी इनसे कुछ सीखा जा सकता है।