यूपी: गौशाला बनाने के लिए काटे जा रहे थे पेड़, गांववासियों ने जमकर किया विरोध!

   

उत्तर प्रदेश के संभल जिले में वर्षों पुराने पेड़ों को बचाने के लिए करीब दो दर्जन गांवों के लोगों ने ‘चिपको आंदोलन’ जैसा अभियान शुरू किया है. इसकी जगह गोशाला बनाने की है योजना.

संभल जिले के पवांसा ब्लॉक स्थित कैला देवी मंदिर के आस-पास एक हेक्टेयर जमीन पर ढाई करोड़ रुपये की लागत से गोशाला बनाने का प्रस्ताव पारित हुआ है. उत्तर प्रदेश सरकार ने इसके लिए पचास लाख रुपये जारी भी कर दिए हैं. बताया जा रहा है कि प्रशासन ने उस जमीन को गोशाला के लिए चुना है, जहां बड़ी संख्या में वर्षों पुराने पेड़ लगे हैं.

ग्रामीणों का कहना है कि गोशाला खाली जमीन पर भी बनाई जा सकती है. उनका मानना है कि प्रशासन जिस स्थान पर इसे बनवाना चाहता है उसके कारण वहां सैकड़ों पेड़ों का अस्तित्व संकट में आ गया है और ये पर्यावरण के लिए भी गंभीर संकट का सबब बन सकता है. इसी वजह से गांव के लोगों ने संकल्प लिया है कि वो पेड़ों से चिपककर अपनी जान दे देंगे, लेकिन पेड़ कटने नहीं देंगे.

उत्तर प्रदेश के संभल जिले में वर्षों पुराने पेड़ों को बचाने के लिए करीब दो दर्जन गांवों के लोगों ने ‘चिपको आंदोलन’ जैसा अभियान शुरू किया है. इसकी जगह गोशाला बनाने की है योजना.

संभल जिले के पवांसा ब्लॉक स्थित कैला देवी मंदिर के आस-पास एक हेक्टेयर जमीन पर ढाई करोड़ रुपये की लागत से गोशाला बनाने का प्रस्ताव पारित हुआ है. उत्तर प्रदेश सरकार ने इसके लिए पचास लाख रुपये जारी भी कर दिए हैं. बताया जा रहा है कि प्रशासन ने उस जमीन को गोशाला के लिए चुना है, जहां बड़ी संख्या में वर्षों पुराने पेड़ लगे हैं.

ग्रामीणों का कहना है कि गोशाला खाली जमीन पर भी बनाई जा सकती है. उनका मानना है कि प्रशासन जिस स्थान पर इसे बनवाना चाहता है उसके कारण वहां सैकड़ों पेड़ों का अस्तित्व संकट में आ गया है और ये पर्यावरण के लिए भी गंभीर संकट का सबब बन सकता है. इसी वजह से गांव के लोगों ने संकल्प लिया है कि वो पेड़ों से चिपककर अपनी जान दे देंगे, लेकिन पेड़ कटने नहीं देंगे.

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के छात्र दिव्यांशु उपाध्याय और कुछ दूसरे छात्र साथियों की मेहनत ने इस गांव को देश के पहले “काउ विलेज” की तरह विकसित किया है. गांव में सौ साल से अधिक पुरानी चार गौशालाएं हैं जिनकी स्थापना बीएचयू के संस्थापक भारत रत्न महामना मदन मोहन मालवीय जी ने की थी. दिव्यांशु और उनके दोस्तों ने इन्हीं गौशालाओं का रूपरंग बदल दिया है.

गौशालाओं में एक हजार से ज्यादा गाय हैं. दिव्यांशु को इस काम की प्रेरणा एक विदेशी जोड़े ने दी जिसने एक भारतीय गांव में घूमने की इच्छा जाहिर की थी. दिव्यांशु खुद एलएलबी के छात्र हैं. उन्होंन मेहनत कर के इस गांव की सफाई की, गौशाला को खूबसूरत बनाया.

आज इस गांव में विदेशी पर्यटक भी आते हैं. वो गाय के साथ समय बिताते हैं, सेल्फी लेते हैं. इस गांव में करीब 11 धर्मशालाएं हैं जहां रुक कर छुट्टियां मनाई जा सकती है और साथ ही साथ होम स्टे की व्यवस्था भी है. आमतौर पर इस गांव में आने वाले एक रात यहां जरूर बिताते हैं. काशी में विख्यात पंचकोशी यात्रा का तीसरा पड़ाव भी इसी गांव में पड़ता है.

छात्रों ने सफाई के बाद दीवारों पर खूबसूरत पेंटिंग की है. बीएचयू के फाइन आर्ट्स के छात्रों ने अपनी कला इन दीवारों पर बिखेरी है. गांव में लगभग दो किलोमीटर लंबी दीवारों पर गाय के कई चित्र बनाए गए हैं. जिसमें गाय के शरीर में देवताओं का वास और गाय को कामधेनु की तरह प्रदर्शित किया गया है. हर तरफ इस गांव में आपको मंदिर, गाय और उसके चित्र ही दिखेंगे.

इस गांव में अतिथियों का स्वागत दूध से बनी चीजें परोस कर किया जाता है. गांव की गौशाला के अलावा भी यहां लगभग सभी के घर गाय हैं और लोग बहुत खुशी से इनकी सेवा करते हैं. गाय का दूध इनके लिए कमाई का जरिया भी है.

अब इस “काउ विलेज” में आपको कई आकर्षण मिल जाएंगे, सेल्फी विद काउ, वॉक विद काउ जिसमें आप गाय के साथ घूमेंगे, फीड द काउ, जिसमें आप गाय को चारा खिलाएंगे. आपको खाने में दूध, पेड़ा जो ठेठ गवईं तरीके से गाय के दूध से बना होगा, दिया जाएगा. गांव को पर्यटन विभाग अपने स्तर पर प्रमोट करे इसके लिए दिव्यांशु ने पत्र लिखा है.

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के छात्र दिव्यांशु उपाध्याय और कुछ दूसरे छात्र साथियों की मेहनत ने इस गांव को देश के पहले “काउ विलेज” की तरह विकसित किया है. गांव में सौ साल से अधिक पुरानी चार गौशालाएं हैं जिनकी स्थापना बीएचयू के संस्थापक भारत रत्न महामना मदन मोहन मालवीय जी ने की थी. दिव्यांशु और उनके दोस्तों ने इन्हीं गौशालाओं का रूपरंग बदल दिया है.

हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने ये भी फैसला लिया है कि वो हर ग्राम सभा, क्षेत्र पंचायत, नगर पंचायत इत्यादि निकायों में गोशाला निर्माण कराएगी ताकि आवारा पशुओं से होनी वाली दिक्कतों से निपटा जा सके. पिछले कुछ सालों में सड़कों को चौड़ा करने और विकास के लिए तमाम निर्माण कार्य की वजह से हजारों की संख्या में पेड़ काटे गए हैं.

जगह-जगह इनका विरोध भी होता है लेकिन संभल के लोगों ने विरोध का यह तरीका अपनाया है. पिछले सितंबर महीने में नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल ने यूपी सरकार द्वारा जारी उस अधिसूचना को भी रद्द कर दिया था जिसके तहत कुछ खास किस्म के पेड़ों को छोड़कर अन्य को काटने के लिए अनुमति लेने के प्रावधान को खत्म कर दिया था. बावजूद इसके, पेड़ों का काटा जाना जारी है.

साभार- ‘डी डब्ल्यू हिन्दी’