योगेन्द्र यादव ने निर्मला सीतारमण के बजट को किसान के लिए “ज़ीरो बजट” बताया

   

वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण की पहले बजट को जीरो बजट बताते हुए स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने दुख व्यक्त किया कि इस बजट में किसान के लिए ना तो नया आवंटन है, ना कोई नए आंकड़े, न ही नई दिशा है, और ना ही कोई नई योजना। यह देश के इतिहास का पहला बजट था जिसमें वित्त मंत्री ने बजट की मद का कोई जिक्र भी नहीं किया। इसका राज तब खुला जब बजट के दस्तावेज में हर मद के लिए आवंटित राशि की तुलना की और पता लगा कि यह बजट तो हूबहू वही है जो फरवरी 2019 में अंतरिम बजट के रूप में पेश किया गया था। जय किसान आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक अविक साहा ने कहा कि यदि वित्त मंत्री को यही करना था तो ऐसे में एक नए बजट की जरूरत ही क्या थी?

फरवरी के बजट को जुलाई में परस देने को किसानों के साथ मजाक बताते हुए स्वराज इंडिया ने निराशा व्यक्त किया कि इस बीच नई परिस्थितियों और नए तथ्यों को भी वित्त मंत्री ने ध्यान में नहीं रखा। उल्टे डीजल पर कर बड़ा कर किसान की अवस्था बेहतर करने की बजाए उसकी लागत और बढ़ा दी।

१. प्रधानमंत्री ने घोषणा की थी कि 6 साल में किसान की आय दोगुनी की जाएगी। अब तक 3 साल बीत चुके हैं। सरकार इतना तो बता सकती थी कि अब तक किसान की आय कितनी बढ़ी है? अगले 3 साल में उसे 2 गुना तक पहुंचाने की क्या योजना है? उसके लिए बजट में विशेष राशि का प्रावधान कर सकती थी। अफसोस कि यह करने की वजह वित्त मंत्री ने किसानों की आय दोगुनी करने का जुमला तोहरा भर दिया।

२. किसानो को उम्मीद थी कि पीएम किसान योजना की राशि ₹6000 से बढ़नी चाहिए। कम से कम इस योजना का लाभ बटाई और ठेके पर खेती करने वाले भूमिहीन किसानो को भी मिलना चाहिए था। किसान आंदोलन की मांग थी कि इसका पैसा महिला के अकाउंट में जाना चाहिए। लेकिन वित्त मंत्री ने इसका जिक्र भी नहीं किया और बजट में इसके लिए फरवरी में आवंटित 75000 करोड रुपए की राशि दोहरा भर्ती। यह बहुत हैरानी की बात है क्योंकि इस बीच सरकार ने इस योजना के लाभार्थी किसानों की संख्या बढ़ा दी है और स्वयं प्रधानमंत्री ने बजट के बाद कहा कि इसमें 87000 करोड़ रुपए का खर्च होगा।

३. कल जारी हुए आर्थिक सर्वेक्षण में यह स्वीकार किया है कि देश की 71% फसल को किसान एमएसपी से नीचे दर पर बेचने को मजबूर हैं। परसों सरकार ने खरीफ की फसल में नाम मात्र एमएसपी की बढ़ोतरी की है। हर किसान को कम से कम इतनी उम्मीद थी कि उसे एमएसपी रेट तो मिल जाए। इसके लिए सरकार को पीएम आशा के तहत बजट में कम से कम 50000 करोड़ रुपए का प्रावधान करना जरूरी था। वित्त मंत्री ने ऐसा कुछ नहीं किया।

४. अब तक इस साल देश में बड़े सूखे की आशंका है। मानसून में 25% का घाटा है और फसल की बुवाई में 15% की कमी रही है। ऐसे में यह अपेक्षा थी कि सरकार सुखे की परिस्थिति से निपटने के लिए राष्ट्रीय आपदा कोष में वृद्धि करेगी। सूखे के मुआवजे की ₹4700 प्रति एकड़ की राशि को बढ़ाकर कम से कम ₹10000 प्रति एकड़ करेगी। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में सुधार किए जाने के उम्मीद थी ताकि हर किसान को नुकसान होने पर क्लेम मिल सके। अफसोस कि इतने बड़े सवाल पर भी वित्त मंत्री ने चुप्पी साध ली।

५. पिछले कुछ महीनों में देश में आवारा पशुओं द्वारा खेती किसानी के नुकसान की खबरें चारों तरफ से आ रही है। इसलिए किसान चाहते थे कि आवारा पशु के प्रकोप से मुकाबला करने के लिए किसान को विशेष अनुदान मिले; इन पशुओं के लिए विशेष सरकारी व्यवस्था की जाए। वित्त मंत्री ने इन सवालों पर भी कुछ नहीं कहा।

इसके बदले वित्त मंत्री ने E-Nam एवम परंपरागत कृषि विकास योजना जीरो बजट खेती और मत्स्य पालन इत्यादि जैसी पुरानी योजनाओं का नाम दोहरा दिया लेकिन यह नहीं बताया कि इन सभी योजनाओं में भी सरकार ने बजट का आवंटन बढ़ाने की बजाय घटा क्यूँ दिया।

राष्ट्रीय युवा आंदोलन युवा-हल्लाबोल का नेतृत्व कर रहे अनुपम ने कहा कि 45 साल की रिकॉर्डतोड़ बेरोज़गारी दर झेल रहे देश के युवाओं को केंद्रीय बजट से मायूसी मिली है। ऐसे समय में जबकि असंगठित क्षेत्र से लेकर लगभग सभी क्षेत्रों में रोज़गार सृजन होने की बजाए ख़तम हुए हैं तो इस संकट से लड़ने के लिए ठोस कदम उठाने की ज़रूरत थी।

लोकसभा चुनावों तक सरकार मानने को तैयार नहीं थी कि देश में बेरोज़गारी है या अर्थव्यवस्था कमज़ोर है। मोदी सरकार ने अपने ही एनएसएसओ रिपोर्ट को दबाने की पुरज़ोर कोशिश की जिसके विरोध में सांख्यिकी आयोग के अध्यक्ष को मजबूरन इस्तीफा तक देना पड़ा। और जब यह रिपोर्ट मीडिया के माध्यम से बाहर आ गयी तो बीजेपी के कुछ नेताओं ने इसे फेक न्यूज़ तक करार दे दिया। लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद सरकार ने एनएसएसओ के उसी रोज़गार सर्वे को मान लिया और आधिकरिक रूप से जारी कर दिया है। आरबीआई चीफ ने भी अब मान लिया कि अर्थव्यस्था में गिरावट है जिसकी पुष्टि कल जारी हुए आर्थिक सर्वेक्षण ने विकास दर घटाकर 7% कर दिया। इसलिए उम्मीद थी कि धीमी अर्थव्यवस्था और भीषण बेरोज़गारी पर सरकार अब अपने बजट के माध्यम से कुछ करेगी।

लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण में रोज़गार सृजन के लिए किसी योजना का ज़िक्र तक नहीं किया। युवाओं के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति का ज़िक्र भी किया तो नीति के मुख्य आयामों को छुवा तक नहीं। जैसे कि पाँच साल में शिक्षा बजट दुगुना करना या शिक्षा के अधिकार को 3 से 18 वर्ष के सभी छात्रों तक विस्तार करना।

कोई भी ठोस प्रस्ताव देने की बजाए सरकार के पास सिर्फ इतना कहने को था कि विदेशी छात्रों को “स्टडी इन इंडिया” के तहत भारत बुलाएंगे, भारतीयों छात्रों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बिग डेटा, रोबोटिक्स जैसे विषयों की ट्रेनिंग देंगे ताकि वो विदेश जा सके और देश में स्टार्टअप्स की मदद से एक नया टीवी प्रोग्राम चलाएंगे।

अफसोस कि वित्त मंत्री ने न ही असंगठित क्षेत्र में न्यूनतम मजदूरी पर कुछ बोला, न मध्यम लघु उद्योग में रोज़गार पर, न ऑटो सेक्टर, ट्रैक्टर इंडस्ट्री या एफएमसीजी सेक्टर पर कुछ बोला। ना ही शहरी रोज़गार गारंटी के लिए कुछ बोला और ना ही खाली पड़े 24 लाख सरकारी पदों को भरने के बारे में कुछ कहा। युवाओं के लिए कहा तो सिर्फ इतना कि विदेशी छात्रों को भारत बुलाएंगे, भारतीयों को विदेश भेजेंगे और देश के बेरोज़गारों के लिए नया टीवी प्रोग्राम चलाएंगे!