राजस्थान का चेडेल खुर्द गांव कह रहा आत्मनिर्भर भारत की कहानी

   

जयपुर, 13 अप्रैल । राजस्थान में जयपुर के पास बसा एक छोटा-सा गांव, जो चार दशक पहले बाढ़ में बह गया था, अब आत्मनिर्भर भारत की कहानी कह रहा है। इस गांव के लोग नवरात्र के लिए जैविक दीये, होली के लिए रंग-गुलाल और भगवा झंडे बनाते हैं और अच्छी कमाई कर लेते हैं।

चेडेल खुर्द नाम से जाना जाने वाला यह गांव 1981 में ढुंड नदी में आई बाढ़ की चपेट में आने से नष्ट हो गया था। अब यह गांव अन्य गांवों के लिए एक आदर्श के रूप में खड़ा है, जिसमें केवल एक मंदिर और एक कुआं है। यहां के लोग जातिगत भेदभाव खत्म करने को अपने जीवन का उद्देश्य बना चुके हैं।

इस गांव को अब केशवपुरा नाम दिया गया है। यह गांव अत्मनिर्भर भारत के नारे को वास्तविकता में बदल रहा है। यहां के लोग हस्तनिर्मित उत्पादों का उत्पादन करते हैं और त्योहारों व उत्सवों के मौके पर उन्हें बेचकर स्वावलंबी बन जाते हैं।

होली पर इस गांव की महिलाओं ने गुलाल तैयार कर लाखों रुपये कमाए। दिवाली के लिए ये दीये और सजावट के उत्पाद तैयार करती हैं। इनके बनाए हस्तनिर्मित और जैविक वस्तुएं राज्यभर में बड़ी मात्रा में बेचे जाते हैं।

इस समय यहां की महिलाओं ने घरों की छतों पर फहराए जाने वाले 50,000 भगवा झंडे तैयार किए हैं। बाजार में ये झंडे ढाई रुपये की दर पर बेचकर ये अच्छी आय अर्जित कर लेती हैं।

इस गांव की पुष्पा सैनी ने कहा, अब हम इन महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ाते हुए इन्हें सिलाई-कढ़ाई और रोजगार पैदा करने का प्रशिक्षण दे रहे हैं। सिलाई का काम उन्हें सभ्य तरीके से जीवन यापन करने में मदद करेगा, यह तय है।

एक ग्रामीण रामकरण सैनी न कहा, आदर्श गांव केशवपुरा आत्मनिर्भर भारत की ओर कदम बढ़ा रहा है। पिछले दो साल से इस दिशा में काम शुरू करने वाली ग्राम विकास समिति के प्रयासों से अब अपेक्षित परिणाम सामने आ रहे हैं।

जयपुर के चाकसू के पास बसा केशवपुरा 1981 में बाढ़ से तबाह हो गया था, जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्वयंसेवकों ने फिर से स्थापित किया। अब यह आदर्श गांव बनकर उभरा है।

इस गांव ने 37 साल बाद 5 अक्टूबर, 2018 को प्रदेश के राजस्व अभिलेखों में अपना नाम दर्ज करवा लिया।

आरएसएस के स्वयंसेवकों ने कड़ी मेहनत कर गांव के पुनर्निर्माण और पक्के मकान बनाने में मदद की और ग्रामीणों के जीवन-चर्या को व्यवस्थित किया। बाढ़ के पानी ने उनके घरों, जानवरों आदि सहित सब कुछ तबाह कर दिया था। हालांकि यहां के स्वयंसेवकों ने पक्के मकान, सड़क, कम्युनिटी हॉल, मंदिर और कुएं बनाने में मदद की और यह गांव अब एक नए मॉडल के रूप में उभर रहा है।

–आईएएनएस

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