राहुल गांधी के ‘न्याय’ को अभिजीत बनर्जी का समर्थन, बोले- भारत को प्रोत्साहन पैकेज की जरूरत

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नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने कांग्रेस की न्याय योजना का समर्थन किया है। लेकिन उनका कहना है कि इसे केवल गरीबों तक ही सीमित रखना चाहिए।

कांग्रेस ने पिछले साल आम चुनावों के लिए अपने घोषणापत्र में वादा किया था कि अगर वह सत्ता में आई तो न्यूनतम आय योजना (न्याय) योजना लागू करेगी। इसके तहत देश 5 करोड़ गरीब परिवारों को सालाना 72 हजार रुपये देने का वादा किया गया था।

जनता ने आम चुनावों में नकारा था
कांग्रेस की इस योजना को आम चुनावों में तुरुप का इक्का माना जा रहा था लेकिन जनता ने इसे बुरी तरह नकार दिया था। माना जाता है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने न्याय योजना के बारे में बनर्जी के साथ चर्चा की थी। बनर्जी ने उन्हें सलाह दी थी कि इस योजना के तहत गरीब परिवारों को शुरुआत में प्रति माह 3,000 रुपये दिए जाएं।

राहुल ने लोकसभा चुनावों के दौरान किया था खूब प्रचार
राहुल गांधी ने न्याय योजना को बदलावकारी बताया था। उन्होंने कहा था कि इससे गरीब लोगों के जीवन में काफी बदलाव आएगा। उन्होंने इस योजना लोकसभा चुनाव के बाद भी कई बार चर्चा कर चुके हैं। कोरोना काल में भी वह इस योजना का जिक्र कर चुके हैं।

रघुराम राजन से बातचीत के दौरान राहुल ने इसकी चर्चा की थी। हालांकि एक हकीकत ये भी है कि तमाम प्रचार के बाद भी आम जनता ने लोकसभा चुनाव में राहुल की इस महत्वाकांक्षी योजना को खारिज कर दिया था।

गरीबों को मदद में कोई हर्ज नहीं
कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए देशभर में लॉकडाउन लागू किया गया है और राहुल गांधी इसके आर्थिक प्रभावों के बारे में अर्थशास्त्रियों से चर्चा कर रहे हैं।

इसी कड़ी में मंगलवार को उन्होंने बनर्जी से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये बात की। न्याय योजना के बारे पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि अगर हम देश की 60 फीसदी सबसे गरीब आबादी को कुछ पैसे देते हैं तो इसमें कोई हर्ज नहीं है। हो सकता है कि उनमें से कुछ को इसकी जरूरत नहीं होगी। वे इसे खर्च करते हैं तो इसका अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर होगा।’

अस्थाई राशन कार्ड की व्यवस्था होनी चाहिए
बनर्जी ने साथ ही सुझाव दिया कि अनाज वितरण की समस्या से निपटने के लिए सरकार को लोगों को अस्थाई राशन कार्ड देने चाहिए। उन्होंने आशंका जताई कि कोविड-19 के खत्म होने के बाद कई कंपनियां दिवालिया हो सकती हैं। बनर्जी ने कहा, ‘हो सकता है कि बहुत सारा कर्ज बट्टे खाते में डालना पड़े। साथ ही उन्होंने कहा कि मांग में भी कमी आ सकती है। लॉकडाउन के बाद अर्थव्यवस्था को पटरी पर लौटाने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि लोगों के हाथ में कुछ नकदी दी जाए।’

देश को बड़े राहत पैकेज की जरूरत
नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री ने कहा कि कोरोना संकट से निपटने के लिए भारत को भी अमेरिका, जापान और यूरोप की तरह व्यापक राहत पैकेज घोषित करना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘हमने अभी तक बड़े राहत पैकेज पर कोई फैसला नहीं किया है। हम अब भी जीडीपी के एक फीसदी के बराबर पैकेज की बात कर रहे हैं। अमेरिका ने जीडीपी के 10 फीसदी के बराबर पैकेज घोषित किया है।’ उन्होंने कहा कि हमने कर्ज के भुगतान पर रोक लगाकर एक अच्छा काम किया है। हमें इस तरह के और कदम उठाने चाहिए। हम इस तिमाही में कर्ज के भुगतान को माफ कर सकते हैं और सरकार इसकी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले सकती है।