व्यापारी अपने प्रॉफिट का एक हिस्सा ‘रिजर्व’ में डालता है, जैसे बैंक के फिक्स्ड डिपॉजिट में अथवा सोना खरीदने में। इस रकम का उपयोग वह संकट के समय करता है। प्रॉफिट के दूसरे हिस्से से व्यापारी अपने घर का खर्च चलाता है या दुकान को बढ़ाता है या किसी और काम में निवेश करता है। व्यापारी को तय करना होता है कि मुनाफे में से कितना अंश वह रिजर्व में रखेगा और कितना अंश वर्तमान में खपत अथवा निवेश के लिए उपयोग करेगा। इसी तरह रिजर्व बैंक को हर साल प्रॉफिट होता है। उस प्रॉफिट का एक हिस्सा रिजर्व बैंक रिजर्व में डाल देता है जैसे सोना, विदेशी बांड, सरकारी बांड अथवा अन्य निवेशों में। इस निवेश का उपयोग रिजर्व बैंक किसी भी संभावित संकट के समय कर सकता है। प्रॉफिट का शेष अंश वह भारत सरकार को लाभांश के रूप में दे सकता है।
तरल पूंजी नहीं
संकट के समय यह प्रक्रिया पलट जाती है। रिजर्व बैंक पूर्व में बनाए गए रिजर्व से पैसा निकाल कर देश की अर्थव्यवस्था को संभालने में उसका उपयोग कर सकता है। जैसे बैंकों पर यदि संकट आया तो उन्हें मदद देने के लिए रिजर्व बैंक अपने रिजर्व का इस्तेमाल कर सकता है। पिछले पांच वर्षों में रिजर्व बैंक ने अपने रिजर्व में धन डालना बंद कर दिया है। वर्ष 2012 में रिजर्व बैंक ने 27,000 करोड़ रुपये रिजर्व में डाले, वर्ष 2013 में 28,000 करोड़ रुपये डाले लेकिन वर्ष 2014 के बाद रिजर्व बैंक ने अपने रिजर्व में रकम डालना पूर्णतया बंद कर दिया है। इतना ही नहीं, जो रिजर्व थे, उनमें से 52,000 करोड़ की रकम निकालकर भी इस वर्ष सरकार को दे दिया है।
रिजर्व बैंक ने आकलन किया कि उसके पास जरूरत से अधिक रिजर्व उपलब्ध हैं और उस अनावश्यक रिजर्व को उसने भारत सरकार को दे दिया। भारत सरकार ने रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता में एक कमेटी बनायी थी, जिसने कहा था कि रिजर्व बैंक को अपनी कुल पूंजी का 24.5 से 20.0 प्रतिशत तक रिजर्व रखना चाहिए। वर्तमान में रिजर्व बैंक के रिजर्व 23.3 प्रतिशत थे। ये जालान समिति द्वारा बताए गए दायरे में थे लेकिन रिजर्व बैंक ने निर्णय किया कि इन्हें 23.3 प्रतिशत से घटाकर 20.0 प्रतिशत के न्यूनतम स्तर पर ले जाया जाए। ऐसा करने पर बची 52,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त रकम को रिजर्व बैंक ने इस वर्ष भारत सरकार को हस्तांतरित किया है। रिजर्व बैंक दवारा अपने रिजर्वों को पर्याप्त मानने के पीछे उसकी सोच में आया एक मौलिक परिवर्तन है।
भारतीय रिजर्व बैंक के रिजर्व दो प्रकार के होते हैं। पहला सोना, अमेरिकी सरकार के बांड, विदेशी करेंसी इत्यादि हैं। दूसरी श्रेणी में भारत सरकार के बांड अथवा अन्य घरेलू निवेश आते है। इनमें पहले प्रकार के रिजर्व को वास्तविक रिजर्व मानने में संकट है क्योंकि इन्हें तात्कालिक आवश्यकता के अनुसार नगदी में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। जैसे भारी मात्रा में सोना बेचने से अंतराष्ट्रीय बाज़ार में सोने के दाम गिर जाएंगे। कुछ वर्ष पूर्व कई देशों ने अपने सोने का भंडार बेचा था और विश्व बाजार में सोने के दाम गिर गए थे।
निकट भविष्य में अगर कभी ऐसी नौबत आई तो इन रिजर्व की वास्तविक कीमत आज से बहुत कम हो जाएगी। अमेरिकी सरकार के बांड बेचने से भारत और अमेरिका के सामरिक संबंधों पर प्रभाव पड़ेगा। इसलिए इन पूंजियों को तरल नहीं माना जा सकता है। पर इन्हें ही रिजर्व मानकर रिजर्व बैंक ने अपने रिजर्वों की मात्रा कम कर दी है जिससे कि वह सरकार को अधिक से अधिक रकम मुहैया करा सके।
रिजर्व बैंक के इस कदम से कई प्रकार के संकट उत्पन्न हो गए हैं। पहली बात यह कि अब तक प्रॉफिट का एक हिस्सा भविष्य के संकटों को संभालने के लिए रिजर्व में डाला जाता रहा है। अब उस नीति को पलटकर पूर्व में अर्जित रिजर्व का उपयोग वर्तमान खर्चों को पोषित करने के लिए किया जाने लगा है। जैसे व्यापारी घर के सोने को बेच कर फाइव स्टार होटल में ऐयाशी करे। यह देश की अर्थव्यवस्था के संकट को इंगित करता है।