लोकसभा चुनावः हार से सबक़ लेते हुए एक समावेशी भारत के निर्माण के लिए प्रयास करें: पाॅपुलर फ्रंट आफ इंडिया

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पाॅपुलर फ्रंट आफ इंडिया की केंद्रीय सचिवालय ने लोकसभा चुनाव के रूझान को सामने रखते हुए मीडिया को जारी बयान में कहा है कि बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन को मिली सफलता भारत की सेक्युलर राजनीति की मुकम्मल हार का पता नहीं देती।

बल्कि यह रूझान एक ज़बरदस्त साम्प्रदायिक प्रोपगंडे की सफलता और आरएसएस-बीजेपी की रणनीति के मुकाबले में सही क़दम उठा पाने में सेक्युलर दलों की असफलता का सबूत है। बैठक ने इस ओर इशारा किया कि इन असफलताओं के बावजूद, एक समावेशी सेक्युलर लोकतांत्रिक एवं समाजवादी गणतंत्र होने की भारत देश की सोच अभी भी बरक़रार है।

हर मोर्चे पर एक नाकाम सरकार साबित होने के बावजूद, बीजेपी की जीत इस मामले का बारीकी से जायज़ा लेने की मांग करती है। पांच वर्षों की जन-विरोधी सरकार के बाद भी भारतीय समाज के एक महत्वपूर्ण वर्ग का साथ प्राप्त करने में बीजेपी को मिली सफलता से यह साफ व्यतीत होता है कि यह विकास के मुद्दों पर साम्प्रदायिक नफरत की जीत है।

यह बात भी गौरतलब है कि सेक्युलर पार्टियों ने 2014 की गलतियां फिर से दोहराईं और अपने आपसी मतभेदों, स्वार्थ और नेताओं की आपसी लड़ाई से ऊपर उठकर संयुक्त रूप से चुनावी मैदान में नहीं उतरीं। दूसरी ओर, ज़मीनी स्पर पर साम्प्रदायिक अभियान चलाकर एनडीए ने लगभग सभी क्षेत्रीय पार्टियों को अपने खे़मे में शामिल करने की पूरी कोशिश की।

यूपी और दिल्ली जैसे राज्यों में अगर विपक्षी दलों ने आपस में लड़ने के बजाय एक दूसरे से हाथ मिला लिया होता तो परिणाम कुछ और ही होते। चुनाव के परिणाम आ जाने के बाद अब जाकर उन्होंने एक नए ‘सेक्युलर लोकतांत्रिक फ्रंट’ का ऐलान करके विशाल गठबंधन बनाने का क़दम उठाया है।

अब एक बार फिर बीजेपी को हराने की ज़िम्मेदारी केवल अल्पसंख्यकों पर डाल दी गई है, जबकि सेक्युलर ताक़तों ने कई चुनावी क्षेत्रों में एक दूसरे के सामने आकर खुद अल्पसंख्यकों को ही मुश्किल में डाल दिया था।

बैठक ने याद दिलाते हुए कहा कि इन परिणामों से हर एक की आंखें खुल जानी चाहिएं। लोकतंत्र तभी बाकी रह सकता है जब एक जवाबदेह सरकार और एक ज़िम्मेदार विपक्ष वहां मौजूद हो। इन दोनों की जिम्मेदारी है कि वे जनता के अधिकारों और संवैधानिक एवं लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करें।

साम्प्रदायिक राजनीति का हमेशा शिकार रहने वाले वर्ग जो सरकार में बदलाव चाहते थे, उन्हें बिल्कुल भी निराश होने की आवश्यकता नहीं है। पीड़ित और हाशिये पर खड़े वर्गों को चाहिए कि वे देश के सभी सकारात्मक सोच रखने वाले लोगों के साथ मिलकर अपने सशक्तिकरण की कोशिशें लगातार जारी रखें।

देश और जनता को तानाशाही, पूंजीवाद और साम्प्रदायिकता के शिकंजों से सुरक्षित रखने के स्थायी हल के लिए विचार और रणनीति दोनों स्तर पर एक बेहतर राजनीतिक ताक़त एवं नेतृत्व को उभरकर आने की ज़रूरत है। पाॅपुलर फ्रंट भारतीय संविधान में दिये गए समान न्याय और अधिकारों की प्राप्ति के लिए जनता के राजनैतिक सशक्तिकरण के लिए अपनी प्रतिबद्धता को एक बार फिर दोहराता है।