बेंगलुरु : शनिवार को, जैसे ही चंद्र दक्षिण ध्रुव पर अस्त होता है, उस पर पड़ने वाली काली छाया मोटे तौर पर क्षतिग्रस्त विक्रम लैंडर के साथ संवाद करने की किसी भी आशा को कम कर दिया। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर काली अंधेरी रात छाने के साथ ही भारत के महत्वाकांक्षी चंद्र मिशन चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम से संपर्क की सभी उम्मीदें खत्म हो गई हैं। विक्रम से संपर्क टूटने के बाद 14 दिनों तक लोग फिर से संपर्क जुड़ने की आस लगाए बैठे थे लेकिन शनिवार तड़के से चंद्रमा पर रात शुरू होने के साथ ही अब संपर्क की सारी संभावनाएं खत्म हो गई हैं। बता दें कि लैंडर का जीवनकाल एक चंद्र दिवस यानी कि धरती के 14 दिन के बराबर था। 7 सितंबर को तड़के ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में असफल रहने पर चांद पर गिरे लैंडर का जीवनकाल कल (शनिवार को) खत्म हो गया। सात सितंबर से लेकर 21 सितंबर तक चांद का एक दिन पूरा हो गया।
लेकीन चंद्रमा की सतह पर माइनस 173 डिग्री सेल्सियस की जमा देने वाली ठंड झेलने के बाद विक्रम का हाल कैसा होगा? इन सभी प्रश्नों का जवाब अगले महीने नासा दे सकता है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के लूनर रिकॉनसेंस ऑर्बिटर (एलआरओ) के प्रॉजेक्ट साइंटिस्ट नोआ. ई. पेत्रो ने कहा, ‘एलआरओ 17 सितंबर को उस स्थान से गुजरा था जहां पर विक्रम गिरा है। उस समय चंद्रमा पर शाम हो रही थी। अंधेरे की काली छाया ने चंद्रमा के एक बड़े हिस्से को अपने आगोश में ले लिया था। एलआरओ ने लैंडिंग साइट की तस्वीर ली लेकिन विक्रम के गिरने की असली जगह पता नहीं थी, इसलिए कैमरा बहुत स्पष्ट तस्वीरें नहीं ले सका।’
पेत्रो ने कहा कि अभी ताजा तस्वीरों की जांच चल रही है। हालांकि इस बात की प्रबल संभावना है कि शाम होने की वजह से विक्रम के लैंडिंग एरिया में छाया आ गई हो या फिर जिन जगहों की तस्वीरें ली गई हैं, उस जगह पर अंधेरा छा गया हो। उन्होंने कहा, ‘नासा का एलआरओ अब 14 अक्टूबर को लैंडिंग साइट से फिर गुजरेगा। उस समय चंद्रमा पर दिन होगा और अच्छी तस्वीरें ली जा सकेंगी। नासा 17 अक्टूबर की तस्वीरों की जांच के बाद जल्द ही इसके परिणाम दुनिया को बताएगा।’
इस बीच इसरो के चेयरमैन के सिवन ने भी शनिवार को माना कि लैंडर विक्रम से उनका संपर्क नहीं हो सका है। सिवन ने कहा कि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर बहुत अच्छा काम कर रहा है। इसमें लगे सभी 8 उपकरण सही हैं और अपना काम कर रहे हैं। गौरतलब है कि नासा का एलआरओ चंद्रमा की सतह से 50 किमी ऊंचाई पर चक्कर काट रहा है जबकि भारत का ऑर्बिटर करीब 100 किमी की ऊंचाई पर है। नासा का एलआरओ इसरो के ऑर्बिटर से ज्यादा अच्छी तस्वीरें ले सकता है। नासा के एलआरओ ने ही इजरायल के लैंडर की तलाश की थी।