विपक्षी खेमे में भारी उथल-पुथल, खंड-खंड विपक्ष!

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नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद से विपक्षी खेमे में उथल-पुथल मची हुई है। कांग्रेस में जहां आपस में ही आरोप-प्रत्यारोप जारी है वहीं सेक्युलर खेमे की बाकी पार्टियां अलग-अलग रास्तों से कोर्स करेक्शन में लग गई हैं। कुछ अपने चुनावी पार्टनर का साथ छोड़ रही हैं तो कुछ पराये खेमे से नए पार्टनर पकड़ने की कोशिश में हैं। कांग्रेस में सबसे ज्यादा विवाद राजस्थान इकाई में है। मुख्यमंत्री अशोक गहलौत ने अपने बेटे की हार के लिए उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट को जिम्मेवार ठहराया है, जबकि पायलट समर्थक राज्य में पार्टी के खराब प्रदर्शन के लिए गहलौत को जवाबदेह ठहराते हुए उन्हें पद से हटाकर पायलट को सीएम बनाने की मांग करने लगे हैं।

यूपी में महागठबंधन का टूटना अभी विपक्षी खेमे की सबसे बड़ी खबर है। बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने राज्य में 11 विधानसभा सीटों का उपचुनाव अकेले लड़ने की बात कही है। चुनाव में महागठबंधन के खराब प्रदर्शन के लिए समाजवादी पार्टी (एसपी) को जिम्मेवार मानते हुए उन्होंने कहा कि यह पार्टी अपने यादव वोट को एकजुट नहीं रख पाई और उसे बीएसपी को ट्रांसफर भी नहीं कर पाई। इसलिए अब वे एसपी से अलग रहकर चुनाव लड़ेंगी। हालांकि उन्होंने संकेत दिया है कि उनका निर्णय स्थायी नहीं है, जरूरी हुआ तो फिर एसपी से हाथ मिला सकती हैं। उनकी इस घोषणा के बाद महागठबंधन के तीसरे साझीदार राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) ने भी उपचुनाव लड़ने की घोषणा कर दी पर उसने यह विश्वास भी जताया कि महागठबंधन बना रहेगा।

क्या एसपी इसके लिए तैयार होगी? इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। उधर बिहार में आरजेडी और ‘हम’ नीतीश कुमार पर डोरे डालने में जुट गई हैं। उन्हें उम्मीद है कि शायद बिहार विधानसभा चुनाव के लिए नई रणनीति के तहत नीतीश पलटी मारकर विपक्ष की तरफ आ जाएं। आरजेडी की नेता राबड़ी देवी ने कहा है कि अगर नीतीश महागठबंधन में आते हैं तो उनका स्वागत है। आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह और हम के अध्यक्ष जीतनराम मांझी ने भी उन्हें महागठबंधन में आने का न्योता दिया। याद रहे, पिछले असेंबली चुनाव में जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस ने मिलकर बिहार में मोदी मैजिक को फेल कर दिया था। राज्य के कई नेताओं को लगता है कि बिहार में यह प्रयोग फिर संभव है क्योंकि नीतीश कुमार नई ताकत लेकर उभरी बीजेपी के साथ सहज नहीं हैं और वे अपनी स्वतंत्र हैसियत बनाए रखना चाहते हैं। दिक्कत यह है कि बीजेपी की अजेय चुनाव मशीनरी सारे दलों के लिए सिरदर्द बनी हुई है। लेकिन इसके जवाब में कोई जमीनी पत्ता खेलने की वे शुरुआत भी नहीं कर पा रहे हैं। चुनावों का मुहावरा अभी बिल्कुल बदल चुका है। इसके अलावा बीजेपी के पास एक बहुत बड़ी और समर्पित चुनाव मशीनरी है, जो वैसे भी जनता के साथ जुड़ी रहती है। इसका जवाबी ढांचा बनाने की बात अभी विपक्ष के राडार पर भी कहीं दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही।

साभार : NBT