संरक्षण के नाम पर अलग थलग दायरे में न बांधे जनजातीय समुदायों को: नायडू

   

आज राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के स्थापना दिवस पर व्याख्यान देते हुए, उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडू ने कहा कि हमें जनजातियों को पिछड़ा मान लेने की भ्रांति को त्यागना होगा। जनजातीय समुदायों की जीवंत और समृद्ध परंपराएं हैं जिनका आदर करना होगा।

उन्होंने कहा ऐसा करना न केवल सामाजिक नागरिक शिष्टाचार है बल्कि हमारा संवैधानिक संकल्प भी है। श्री नायडू ने कहा कि आज जब हम प्रकृति सम्मत स्थाई विकास के रास्ते खोज रहे हैं, ये समुदाय हमें पर्यावरण सम्मत विकास के कई गुर सिखा सकते हैं।

उन्होंने कहा कि विश्व भर में हर जनजातीय समुदाय प्रकृति को उसके विभिन्न रूपों में पूजता है,पूजा पद्धतियां अलग हो सकती है पर प्रकृति के प्रति उनकी आस्था एक है। विविधता में एकता का इस से बड़ा उदाहरण संभव नहीं।

श्री नायडू ने आगाह किया कि संरक्षण के नाम पर इन समुदायों को राष्ट्र के विकास की मूल धारा से अलग थलग नहीं किया जाना चाहिए। युवाओं की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं को अभिव्यक्ति और अवसर मिलने चाहिए, तभी सबका साथ सबका विकास का संवैधानिक संकल्प पूरा होगा। इस संदर्भ में उपराष्ट्रपति ने सरकार द्वारा चलाए गए जनधन, मुद्रा जैसे वित्तीय समावेशन के कार्यक्रमों का ज़िक्र भी किया।

इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई को याद किया जिन्होंने जनजातियों को देश की मूलधारा में शामिल करने हेतु, उनके मुद्दों को सुलझाने के लिए अलग जनजातीय कल्याण मंत्रालय की स्थापना की थी और एक पृथक राष्ट्र जनजातीय आयोग गठन किया था। उपराष्ट्रपति ने कहा कि अटल जी के विराट व्यक्तित्व मे शांति और शक्ति का अद्भुत सुयोग था। वे देश मे संपर्क क्रांति के सूत्रधार भी थे और पोखरन के आपरेशन शक्ति के भी।

उपराष्ट्रपति से सुझाव दिया कि संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची के तहत आने वाले राज्यों के राज्यपालों की रिपोर्टों को संसद के पटल पर रखा जाय और संसदीय समितियों द्वारा अध्ययन किया जाय।