सऊदी अरब के पाकिस्तान से अच्छे संबंध क्या ईरान के लिए खतरा है?

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अमरीकी अध्ययन केन्द्र एटलांटिक कान्सिल के हवाले से रूसी न्यूज़ एजेन्सी स्पूतनिक ने इस सवाल का जायज़ा लिया है कि क्या सऊदी अरब , पाकिस्तान को ईरान के खिलाफ युद्ध की ओर ढकेल रहा है?

स्पूतनिक के अनुसार पाकिस्तान वर्षों से ईरान और सऊदी अरब के मध्य स्वंय को तटस्थ्य रखने में सफल रहा है किंतु अब जो हालात बन रहे हैं उनमें उसे किसी एक तरफ होना पड़ेगा।

पाकिस्तान की आर्थिक हालत पतली है और इस दशा में उसे आर्थिक सहायता की बेहद ज़रूरत है और सऊदी अरब के पास मदद के साधन हैं। सऊदी क्राउन प्रिंस , एशिया को , अपनी महत्वकांक्षी विकास योजना में एक महत्वपूर्ण भाग मानते हैं।

बीत महीने कई एशियाई देशों की उनकी यात्रा का एक उद्देश्य, यमन युद्ध और जमाल खाशुकजी की हत्या के बाद बुरी तरह से खराब होने वाली सऊदी अरब की छवि को सुधारना भी था।

सब से पहले वह दक्षिण एशिया गये जिस पर ईरान भी विशेष रूप से ध्यान देता है। अमरीकी प्रतिबंधों के बाद से ईरान ने दक्षिण एशिया पर विशेष रूप से ध्यान देना आरंभ किया है और पिछले महीनों अमरीका की ओर से दोबारा ईरान विरोधी प्रतिबंधों की वजह से ईरान इस क्षेत्र की ओर अधिक झुक गया है।

पाकिस्तान पर हालांकि ईरान जैसे कड़े प्रतिबंध कभी नहीं लगे लेकिन इसके बावजूद उसकी आर्थिक दशा बेहद खराब है। पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से मदद लेने में भी समस्या है और विभिन्न कारणों से वाशिंग्टन ने भी उसकी आर्थिक मदद असाधारण रूप से कम कर दी है।

पाकिस्तान की ज़रूरत को पूरा करना अब उसके मित्र चीन के बस में भी नहीं है और शायद यही वजह है कि पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान के पास सऊदी अरब से उम्मीद लगाने के अलावा कोई रास्ता शायद बचा न हो।

इसी लिए जब मुहम्मद बिन सलमान पर खाशुकजी की हत्या की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हो रही थी , इमरान खान ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए सऊदी अरब को चुना।

हालांकि पाकिस्तान ने सऊदी अरब की मांग के बावजूद यमन अपनी सेना नहीं भेजा लेकिन सऊदी क्राउन प्रिंस ने पाकिस्तान को बीस अरब डालर की मदद देना स्वीकार कया है। पाकिस्तान को उम्मीद है कि ईरान , उसकी आर्थिक मजबूरियों को समझेगा।

इन हालात में पाकिस्तान में यह चिंता है कि सऊदी अरब की ओर से पाकिस्तान में इतना बड़ा निवेश कहीं , आर्थिक उद्देश्यों के बजाए, राजनीतिक उद्देश्य न लिये हो। पाकिस्तान को धन चाहिए और सऊदी अरब को अंतरराष्ट्रीय समर्थन।

पाकिस्तान के गवादर बंदरगाह में पाकिस्तान के निवेश का विरोध भी शुरु हो गया है। पाकिस्तान का प्रयास है कि वह ईरान और उसके प्रतिस्पर्धियों के मध्य संतुलन बनाए रखे।

जब नवाज़ शरीफ ने पाकिस्तान में सत्ता संभाली थी तो चूंकि वह बरसों तक सऊदी अरब में रह कर आए थे इस लिए बहुत से लोगों को यह लगता था कि ईरान के साथ वह तनाव पैदा करेंगे लेकिन उन्होंने न तो ईरान से संबंध गहरे किये और न ही दूर हुए इस लिए अगर उनके बाद आने वाले इमरान खान इससे हट कर कोई और नीति अपनाते हैं तो हैरत होगी।

पाकिस्तानी अधिकारियों ज़ोर देकर कह रहे हैं कि सऊदी अरब का कोई दूसरा उद्देश्य नहीं है लेकिन अगर यह आशंका सही हुई और सऊदी अरब ईरान विरोधी उद्देश्य रखता होगा तो फिर इमरान खान बड़ी समस्या में फंस जाएंगे।

हो सकता है कि इमरान खान से यमन के युद्ध में शामिल होने की मांग कर ली जाए। ईरान चुपचाप यह देखना पसन्द करेगा कि पाकिस्तान, सऊदी अरब के साथ सैन्य संबंध किस सीमा तक स्थापित करता है।

अगर पाकिस्तान यमन युद्ध में शामिल होता है तो इससे पाकिस्तान में इमरान खान की लोकप्रियता भी प्रभावित होगी क्योंकि पाकिस्तान में यमन युद्ध का समर्थन न के बराबर है खास कर इस लिए भी कि इस देश की बीस प्रतिशत आबादी शिया मुसलमान है। इन हालात में यह कहना मुश्किल है कि सऊदी अरब, पाकिस्तान को किसी देश से युद्ध की हद तक ले जा सकता है।

साभार- पार्स टुडे डॉट कॉम