सऊदी अरब पहुंचे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान

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तमाम आशंकाओं और सऊदी अरब की सख्त नाराजगी के बीच पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान शनिवार को मदीना पहुंच गए।  इस एक दिन की यात्रा का उद्देश्य प्रिंस सलमान बिन अब्दुलअजीज की नाराजगी दूर करके उनको यह समझाने की कोशिश करना है कि पाकिस्तान की अन्य मुस्लिम देशों से मेलजोल बढ़ाने कोशिशों के बावजूद उसके सऊदी अरब से गहरे रिश्ते बरकरार हैं।

उल्लेखनीय है कि 18 दिसंबर से कुआलालंपुर में हो रहे मुस्लिम देशों के एक अन्य सम्मेलन में पाकिस्तान की भागीदारी से उसका करीबी मददगार सऊदी अरब काफी नाराज है। पाकिस्तान के ही दूसरे करीबी मददगार मलेशिया के प्रधानमंत्री डॉ. तुन महातिर मुहम्मद ने कुआलालंपुर सम्मेलन का आयोजन किया है। इसे सऊदी अरब इस्लामिक सहयोग संगठन (ओ.आई.सी.) के समानांतर संगठन खड़ा करने की कोशिश के रूप में देख रहा है। इस सम्मेलन में तुर्की के राष्ट्रपति रिसेप एर्डोगन समेत कतर के शेख तमीम बिन हमद अल-थानी और ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी हिस्सा ले रहे हैं।

इंडोनेशिया के राष्ट्राध्यक्ष जोको विडोडो के भी इसमें भाग लेने की उम्मीद थी, लेकिन माना जा रहा है कि दबाव के चलते ही उन्होंने खुद न आकर अपने प्रतिनिधि को भेजा है। ओ.आई.सी. मुस्लिम देशों का एक बेहद मजबूत संगठन रहा है लेकिन इसके प्रभाव और उपयोगिता को लेकर बनते-बिगड़ते समीकरणों से मुस्लिम देशों में पिछले कुछ वर्षों से खींचतान चल रही है। जद्दाह मुख्यालय वाले ओ.आई.सी.की प्रत्यक्ष-परोक्ष बागडोर सऊदी अरब के हाथ में ही रही है। इमरान रियाद में मान-मनौव्वल करने के साथ-साथ ही कुआलालंपुर सम्मेलन के प्रति बेहद आशावान हैं। उन्हें लगता है कि मुस्लिम विश्व की तमाम चुनौतियों के समाधान के लिहाज से यह शिखर सम्मेलन कारगर साबित हो सकता है।

पाकिस्तान को यह भी लग रहा है कि शायद गवर्नेंस, विकास, आतंकवाद और इस्लाम-विरोध जैसी आज की समस्याओं के समाधान पर काम की बातचीत के लिए यह सम्मेलन एक महत्वपूर्ण मौका साबित हो। साथ ही, यह भी ध्यान देने वाली बात है कि अगस्त में यूएन महासभा में कश्मीर मुद्दे पर मलेशिया और तुर्की ने ही पाकिस्तान का समर्थन किया था। इसी दौरान पाकिस्तान, मलेशिया और तुर्की ने मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर में 18 से 20 दिसंबर तक एक सम्मेलन आयोजित करने का फैसला किया था। अगस्त में ओ. आई. सी. ने पाकिस्तान के रुख का समर्थन न करते हुए भारत का पक्ष लिया था।

इधर इमरान खान ने पिछले कुछ समय में ईरान और सऊदी अरब के बीच मध्यस्थता करने की भी कोशिश की है जो खास सिरे नहीं चढ़ीं। इसी सब उठापटक के बीच इमरान खान अपने दोनों करीबी मददगारों को एकसाथ साधने की कवायद करते हुए मुस्लिम देशों के एक भरोसेमंद मध्यस्थ की भूमिका को बनाए रखने की हरचंद कोशिश कर रहे हैं।

कुरैशी की यात्रा रही असफल
सऊदी क्राउन प्रिंस को मनाने की कवायद में इमरान खान ने विदेश मंत्री महमूद कुरैशी को भी रियाद भेजा था। लेकिन कुरैशी इसमें सफल नहीं हो सके। इसके बाद इमरान ने अब खुद वहां जाने का फैसला लिया है। सऊदी पाकिस्तान को बड़ी आर्थिक मदद देता है। इसके चलते पाकिस्तान के लिए सऊदी की नाराजगी मोल लेना भारी पड़ सकता है जबकि इस्लामाबाद के लिए अब कुआलालंपुर सम्मेलन से पीछे हटना भी मुश्किल है। ऐसे में यह पाकिस्तान के लिए घाटे का सौदा साबित हो सकता है।