समझौता एक्सप्रेस विस्फोट मामला: अदालत के फैसले का पाकिस्तान ने किया विरोध!

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पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त ने बुधवार को पाकिस्तान को स्पष्ट किया कि 2007 समझौता एक्सप्रेस आतंकवादी मामले में सुनवाई ‘पारदर्शी’ तरीके से की गई है। इससे पहले पाकिस्तान ने इस मामले में आए अदालत के फैसले पर आपत्ति जताई थी।

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने मामले में स्वामी असीमानंद समेत चारों आरोपियों को बरी किए जाने के खिलाफ सख्त विरोध जताने के लिए भारतीय उच्चायुक्त को तलब किया था। इस हमले में 68 लोग मारे गए थे जिनमें ज्यादातर पाकिस्तानी थे।

सूत्रों ने बताया कि भारतीय दूत ने स्पष्ट किया कि भारतीय अदालतों एवं न्यायिक तंत्र ने पारदर्शी तरीके से उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन किया।

सूत्रों ने बताया कि उन्होंने पाकिस्तान की तरफ से सहयोग की कमी का मुद्दा भी उठाया। इसमें मामले के पाकिस्तानी चश्मदीदों को समन भेजे जाने की बात भी शामिल थी। उन्होंने बताया कि पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने ये समन लौटा दिए थे।

इंडिया टीवी न्यूज़ डॉट कॉम के अनुसार, इससे पहले पाकिस्तान ने समझौता एक्सप्रेस आतंकी हमले में मुख्य आरोपी स्वामी असीमानंद सहित सभी 4 आरोपियों को बरी किए जाने के अदालती फैसले पर कड़ा विरोध जताते हुए पाकिस्तान ने बुधवार को भारतीय न्यायपालिका पर हमला बोला और भारतीय उच्चायुक्त अजय बिसारिया को तलब किया था।

हरियाणा के पंचकूला की एक विशेष एनआईए अदालत ने आज इस मामले में असीमानंद और 3 अन्य को बरी कर दिया। फैसला सुनाने से पहले एनआईए अदालत के विशेष न्यायाधीश जगदीप सिंह ने पाकिस्तानी महिला राहिला वकील की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसने इस घटना के पाकिस्तानी चश्मदीदों की गवाही कराने की मांग की थी।

न्यायाधीश ने कहा कि इस याचिका में कोई विचारणीय मुद्दा नहीं है। पाकिस्तान के कार्यवाहक विदेश सचिव ने जोर देकर कहा कि पाकिस्तान ने ‘इस जघन्य आतंकवादी कृत्य, जिसमें 44 निर्दोष पाकिस्तानियों को जान गंवानी पड़ी, के दोषियों को छोड़ने के भारत के केंद्रित प्रयासों’ का मुद्दा लगातार उठाया है।’

भारत-पाकिस्तान के बीच चलने वाली इस ट्रेन में हरियाणा के पानीपत के निकट 18 फरवरी 2007 को उस समय विस्फोट हुआ था, जब ट्रेन अमृतसर स्थित अटारी की ओर जा रही थी।

विदेश कार्यालय ने कहा कि समझौता आतंकी हमले की ‘जघन्य’ घटना के 11 साल बाद आरोपियों को बरी कर दिया जाना न्याय का मजाक है और यह भारतीय अदालतों की नकली विश्वसनीयता की पोल खोल देता है।