हाईकोर्ट के आदेश के बाद फरहान को दिया गया वेंटिलेटर, हालत स्थिर

   

कोर्ट के आदेश के बाद नन्हे फरहान (3) में जान फूंकने के लिए वेंटिलेटर की सुविधा तो मिल गई है, लेकिन जिंदगी की जंग उसके लिए अभी भी असान नहीं हो पा रही है।

लगातार उसका सांस लेना कम होता जा रहा है और डॉक्टरों ने जवाब दे दिया है। बच्चे की सलामती के लिए पिता और घर के सभी सदस्य अब दुआ मांग रहे हैं। यह कहना है फरहान के पिता असफाक का।

रहमान फरहान के चाचा हैं। उनका कहना है कि दो साल सात महीने के फरहान को 24 जनवरी की रात साढ़े नौ बजे एलएनजेपी में इलाज के लिए तीनों भाई (असफाक, इब्राहिम और वह) लेकर आए थे। जब वे फरहान को अस्पताल लाए, तो उसकी हालत इतनी खराब नहीं थी।

यहां डॉक्टरों ने बच्चे को देखने के बाद ही कह दिया कि इसे सांस लेने में दिक्कत हो रही है और वेंटिलेटर की जरूरत है। लेकिन, यह सुविधा अभी उपलब्ध नहीं है। डॉक्टरों ने तो यह तक कह दिया कि अगर इसे वेंटिलेटर की सुविधा भी मिल भी जाए, तो इसके बचने की उम्मीदें कम ही हैं। इसलिए इसे घर ले जाओ।

फरहान के ताऊ इब्राहिम का कहना है कि इस तरह से डॉक्टरों के नाउम्मीद करने के बाद भी तीनों भाई उनके सामने गिड़गिड़ाए और ईलाज शुरू करने की मांग की। गुजारिश करने पर डॉक्टरों ने इलाज तो शुरू कर दिया, लेकिन अनमने ढंग से।

काश पहले मिल जाता वेंटिलेटर

फरहान के पिता असफाक का कहना है कि 24 जनवरी की रात बच्चे को लेकर यहां आए थे। अगर उसी समय उसे वेंटिलेटर की सुविधा मिल जाती, तो उसकी हालत इतनी नाजूक नहीं होती। करीब आठ दिनों तक बच्चे को डॉक्टर केवल ग्लूकोज चढ़ाते रहे और उसकी हालत बिगड़ती रही। इतने दिनों में उसकी हालत ऐसी हो चुकी है कि अब वह बोल भी नहीं पा रहा है।

कोर्ट के आदेश पर एक फरवरी की सुबह साढ़े 10 बजे के करीब बच्चे को वेंटिलेटर की सुविधा तो मिल गई, लेकिन उसकी हालत काफी बिगड़ चुकी है। फिर भी परिवार के सभी लोग उम्मीद लगाए बैठे हैं कि कोई चमत्कार हो जाए और उनका बच्चा बोलने लगे। परिवार के सदस्यों का कहना है कि डॉक्टर तो अभी भी उन्हें यही बात कह रहे हैं कि उसके बचने की उम्मीद कम है।

कड़ाके की सर्दी में खुले आसमान के नीचे सभी लोग दुआ मांग रहे हैं कि कुछ उम्मीद की किरण दिखे। पिता का कहना है कि अगर वेंटिलेटर की सुविधा पहले मिल जाती तो हालात में सुधार हो जाते। उसने अस्पताल प्रशासन पर आरोप लगाया कि बच्चे की इस हालत के लिए पूरी तरह से डॉक्टर ही जिम्मेदार हैं।

(साभार: नवभारत टाइम्स)