ओडिशा का यह गांव 20 साल बाद भी ग्राहम स्टेंस के लिए बहाता है आंसू!

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करीब 20 साल पहले 23 जनवरी 1999 को उड़ीसा में ऑस्ट्रेलियाई ईसाई मिशनरी ग्राहम स्टुअर्ट स्टेंस को उनके 10 वर्षीय बेटे फिलिप और 6 वर्षीय बेटे टिमोथी के साथ ईसाई धर्म के प्रचार के आड़ में धर्म परिवर्तन का आरोप लगाकर हिन्दू बजरंग दल के कट्टरपंथियों के एक गिरोह ने जलाकर मार डाला था।

भुवनेश्वर से 250 किलोमीटर दूर आदिवासियों का यह गांव मनोहरपुर इस घटना के बाद पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गया था। इस घटना के 20 साल बीतने के बाद भी यह गांव ग्राहम और उनके बच्चों के लिए आंसू बहाता है।

गांव के 75 वर्षीय बीकाराम मरांडी आंखों में आंसू भरकर कहते हैं कि उन्हें आज भी वह रात यात है जब लोगों ने ग्राहम और उनके बच्चों की हत्या कर दी थी। 22 जनवरी 1999 की रात थी। ग्राहम अपने दो बेटों के साथ उनके घर के बाहर ही खड़ी अपनी गाड़ी में आराम कर रहे थे। कुछ लोगों ने उनपर जबरन धर्म परिवर्तन करवाने का आरोप लगाते हुए उन्हें जमकर पीटा और फिर गाड़ी में आग लगाकर तीनों को जिंदा जला दिया। इस घटना ने इंटरनैशनल स्तर पर भूचाल ला दिया था। इस घटना का जिक्र एक बार फिर उभरा है। वह भी अब उस फिल्म को लेकर जो इस घटना पर बन रही है।

बीकाराम ने बताया, ‘हमारे घर का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया गया इसलिए हम उन लोगों को नहीं बचा सके। हमें समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है? वे लोग कौन थे और ऐसा क्यों कर रहे थे? मैं जब तक जिंदा हूं उस घटना को नहीं भूल सकता।’ इस गांव में आज तक कुछ नहीं बदला। गांव में प्रवेश करते समय एक टूटी बाउंड्री वाला घर पड़ता है। इसमें प्राइमरी हेल्थ सेंटर मनोहरपुर का बोर्ड लगा है। वर्किंग डे होने के बाद भी इस पीएचसी पर ताला पड़ा था। यहां दो चर्च हैं। दोनों चर्चों पर ताला पड़ा रहता है। एक पोस्ट ऑफिस है, वह भी बंद रहता है। इस गांव में लगभग 700 आदिवासियों के घर हैं, जिनकी आजीविका जंगल और कृषि पर चलती है।

इस गांव में जो थोड़े बदलाव हुए हैं वह है कुछ कच्ची सड़कों का पक्का हो जाना। कुछ मोबाइल टावर लग जाना। एक हाई स्कूल भी है, लेकिन वहां टीचर नहीं रहते हैं। स्वास्थ्य केंद्र है जहां डॉक्टर नजर नहीं आते। हां इस गांव में उस घटना के बाद जो सबसे बड़ा बदलाव आया है वह है लोगों के सतर्क रहने का। लोग किसी भी बाहरी व्यक्ति के नजर आने पर तुरंत पुलिस को सूचना देते हैं।

इस घटना के आरोपी उमाकांत भोई, जिसे बाद में हाई कोर्ट ने बरी कर दिया था, बताया कि उनके यहां शिक्षा, मूलभूत सुविधाओं की कमी है। नेता पांच साल में एक बार सिर्फ वादे करके वोट मांगने आते हैं उसके बाद फिर से उन लोगों को भूल जाते हैं। यहां की सबसे बड़ी समस्या अशिक्षा और गरीबी है।

ग्राहम को यहां के कुष्टरोगी याद करते हैं जिनकी उन्होंने मदद की थी और इलाज के लिए एक संस्थान बनाया था। मयूरभंज जिले में उनके घर के बने इस संस्थान में कई कुष्टरोगियों को इलाज मिला। इस संस्थान की स्थापना 1892 में की गई थी। 1965 में ग्राहम यहां आकर बस गए थे। तब उनकी उम्र 65 साल थी। ग्राहम की मौत के बाद उनकी पत्नी ग्लायडस ने इस संस्थान का भार संभाला। 2005 में उन्होंने ग्राहम स्टेंट के नाम पर पंद्रह बेड का एक अस्पताल शुरू किया। ग्लायडस अपनी बेटियों के साथ ऑस्ट्रेलिया में रहती हैं। वह बहुत कम यहां आती हैं।

मनोहरपुर में ग्राहम और उनके बच्चों को हर साल श्रद्धांजलि दी जाती है। देश के विभिन्न जगहों से लोग आकर इसमें हिस्सा लेते हैं। इस दिन कई कार्यक्रम आयोजित होते हैं। ग्राहम पर बनी इस फिल्म में शरमन जोशी ने मुख्य किरदार निभाया है। फिल्म के डायरेक्टर आशीष डैनियल ने कहा, ‘मुझे लगता है कि ग्राहम फेक न्यूज के शिकार हुए। कुछ लोगों को संदेह हुआ कि वह धर्म परिवर्तन करा रहे हैं। बिना सच जाने उन लोगों ने ग्राहम की जान ले ली। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ग्राहम की पत्नी ने अपने पति के हत्यारों को माफ कर दिया।’

डा. ग्राहम स्टीवर्ट स्टेन्स ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी था जिन्हें और उनके दो बेटों, फिलिप और टिमोथी को ओडिशा में हुई एक घटना में कुछ लोगों ने 22 जनवरी 1999 को जिंदा जलाकर मार डाला था। उस वक्त वो क्योंझरजिले क मनोहरपुर गांव में अपनी स्टेशन वैगन में सो रहे थे। आग लगाने वाले गिरोह की अगुआई करने वाले दारा सिंह था।

वह 1965 से आदिवासी गरीब और कोढ़ियों के बीच ओडिशा में काम कर रहे थे। कुछ हिंदू समूहों ने आरोप लगाया कि स्टेंस ने कई हिंदुओं को ईसाई धर्म में जबरन धर्मांतरित या लालच दिया था; स्टेंस की विधवा ग्लेडिस ने इन आरोपों का खंडन किया।

उन्होंने 2004 में ऑस्ट्रेलिया लौटने तक कुष्ठ रोगियों की देखभाल के लिए भारत में रहना जारी रखा।

2005 में, उन्हें भारत में चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। उन्हें ओडिशा में कुष्ठ रोगियों के साथ उनके काम के लिए मान्यता दी गई थी। 2016 में, उन्हें सामाजिक न्याय के लिए मदर टेरेसा मेमोरियल इंटरनेशनल अवार्ड भी मिला है।