करीब 11 साल पहले जब ”खुशियों की चाबी” का जिक्र होता था तो हमारे सामने लखटकिया ”नैनो” कार की तस्वीर आ जाती थी. दरअसल, साल 2008 में ”नैनो” कार के जरिए टाटा मोटर्स ने मध्यम वर्ग के कार के सपने को पूरा करने की कोशिश की. लेकिन यह कार अपने बुरे दौर से गुजर रही है. हालत ये हो गई है कि ”नैनो” का कोई खरीदार नहीं मिल रहा है. इस वजह से कार का प्रोडक्शन तक ठप हो गया है.
करीब 11 साल पहले जब ”खुशियों की चाबी” का जिक्र होता था तो हमारे सामने लखटकिया ”नैनो” कार की तस्वीर आ जाती थी. दरअसल, साल 2008 में ”नैनो” कार के जरिए टाटा मोटर्स ने मध्यम वर्ग के कार के सपने को पूरा करने की कोशिश की. लेकिन यह कार अपने बुरे दौर से गुजर रही है. हालत ये हो गई है कि ”नैनो” का कोई खरीदार नहीं मिल रहा है. इस वजह से कार का प्रोडक्शन तक ठप हो गया है.
करीब 11 साल पहले जब ”खुशियों की चाबी” का जिक्र होता था तो हमारे सामने लखटकिया ”नैनो” कार की तस्वीर आ जाती थी. दरअसल, साल 2008 में ”नैनो” कार के जरिए टाटा मोटर्स ने मध्यम वर्ग के कार के सपने को पूरा करने की कोशिश की. लेकिन यह कार अपने बुरे दौर से गुजर रही है. हालत ये हो गई है कि ”नैनो” का कोई खरीदार नहीं मिल रहा है. इस वजह से कार का प्रोडक्शन तक ठप हो गया है.
करीब 11 साल पहले जब ”खुशियों की चाबी” का जिक्र होता था तो हमारे सामने लखटकिया ”नैनो” कार की तस्वीर आ जाती थी. दरअसल, साल 2008 में ”नैनो” कार के जरिए टाटा मोटर्स ने मध्यम वर्ग के कार के सपने को पूरा करने की कोशिश की. लेकिन यह कार अपने बुरे दौर से गुजर रही है. हालत ये हो गई है कि ”नैनो” का कोई खरीदार नहीं मिल रहा है. इस वजह से कार का प्रोडक्शन तक ठप हो गया है.
करीब 11 साल पहले जब ”खुशियों की चाबी” का जिक्र होता था तो हमारे सामने लखटकिया ”नैनो” कार की तस्वीर आ जाती थी. दरअसल, साल 2008 में ”नैनो” कार के जरिए टाटा मोटर्स ने मध्यम वर्ग के कार के सपने को पूरा करने की कोशिश की. लेकिन यह कार अपने बुरे दौर से गुजर रही है. हालत ये हो गई है कि ”नैनो” का कोई खरीदार नहीं मिल रहा है. इस वजह से कार का प्रोडक्शन तक ठप हो गया है.