2019 लोकसभा चुनाव: मायावती के लिए राजनितिक साख बचाने की लड़ाई!

,

   

अमेरिकी पत्रिका न्यूजवीक ने 2007 में मायावती को दुनिया की सबसे ताकतवर महिला राजनेताओं में एक चुना था. उसी दौरान एक इंटरव्यू में मायावती ने कहा था कि उन्हें प्रतिस्पर्धा पसंद है और जीतना भी पसंद है.

इस एक लाइन से मायावती की राजनीति, लक्ष्य और इरादे का पता चल जाता है. मायावती चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. चार बार लोकसभा और राज्यसभा की सांसद हैं.

उनके राजनीतिक कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज की राष्ट्रीय राजनीति में संभवतः सबसे अनुभवी और सबसे लंबे करियर वाली महिला नेता हैं.

उनके बिना गठबंधन की राजनीति अधूरी मानी जाती है और बाज मौकों पर केंद्र या राज्य में उनके बगैर सरकारें भी संभव नहीं हुई हैं. इसीलिए 90 के दशक में जब केंद्र में गठबंधन सरकारों का दौर आया तो पीएम की रेस में जिन चुनिंदा नेताओं का नाम तबसे हमेशा बना रहा- उनमें मायावती भी एक थीं.

15 जनवरी 1956 को दिल्ली में जाटव परिवार में जन्मीं मायावती राजनीति में आने से पहले शिक्षिका थीं. उसी दौरान वह दलितों के प्रमुख कर्मचारी संगठन बामसेफ से जुड़ गईं.

दलित नेता काशीराम की नजर उन पर पड़ी. इस तरह राजनीति में विधिवित प्रवेश 1984 में हुआ. उसी साल 14 अप्रैल को बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की जयंती पर बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की नींव रखी गई.

कांशीराम पार्टी के अध्यक्ष बने और मायावती महासचिव. काशीराम के बीमार पड़ जाने के बाद 2003 में मायावती ने पार्टी की कमान अपने हाथ में ले ली. तबसे लगातार वो अध्यक्ष पद पर बनी हुई हैं.

2006 में कांशीराम के निधन के बाद वो पार्टी की एकछत्र लीडर हो गईं. मायावती ने तीन किताबें भी लिखी हैं. और उनकी दो जीवनियां प्रकाशित हैं.

मायावती का पार्टी पर इतना तगड़ा कसाव है कि इसकी तुलना एआईएडीमके की दिवंगत नेता जयललिता और बंगाल में ममता बनर्जी से की जा सकती है.

मायावती ने जो कह दिया वही पार्टी की लाइन हो जाती है. वो बहुत कम इंटरव्यू देती हैं. प्रेस काफ्रेंस करती हैं लेकिन अपना वक्तव्य लिखकर लाती हैं. और एक शब्द अतिरिक्त नहीं बोलती. उन्हें टस से मस करना असंभव माना जाता है.

साभार- डी डब्ल्यू हिन्दी