2019 लोकसभा चुनाव: मुसलमानों के लिए क्या है खास मायने?

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भारत के हर चुनाव में यह सवाल पूछा जाता है कि मुसलमान इस बार किसे वोट देंगे. लेकिन कई मुसलमान विश्लेषकों का कहना है कि 2019 में चुनाव में सवाल यह है कि हिंदू बहुल भारत में अल्पसंख्यक मुसलमानों की क्या जगह होगी.

भारत के कुल 29 राज्यों में से सिर्फ जम्मू कश्मीर ही मुस्लिम बहुमत वाला राज्य है. बाकी सभी राज्यों में मुसलमान अल्पसंख्यक हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक 1.3 अरब की जनसंख्या में मुसलमानों की हिस्सेदारी 17.23 प्रतिशत है.

लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, केरल, असम, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे कई राज्यों में मुसलमानों की अच्छी खासी संख्या है और चुनावों में उनके वोट हार जीत तय करने में अहम भूमिका अदा करते हैं. दलित और पिछड़े वर्गों के साथ मिल कर उनके वोटों ने कई पार्टियों को सत्ता तक पहुंचाया है.

लेकिन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में आधुनिक इतिहास पढ़ाने वाले प्रोफेसर मोहम्मद सज्जाद कहते हैं कि सत्ताधारी बीजेपी की तरफ से उग्र हिंदुत्व और ध्रुवीकरण की राजनीति के जरिए मुसलमानों को राजनीतिक रूप से महत्वहीन बनाने की कोशिश हो रही है.

वह कहते हैं, “2014 के आम चुनाव के बाद कुछ ऐसा माहौल बना जिससे लगा कि मुस्लिम वोट को अप्रासांगिक कर दिया गया है. मुसलमानों के खिलाफ हिंदुओं को गोलबंद करने की कोशिश की गई. इसका असर यह हुआ जो पार्टियां खुद को सेक्युलर कहती थीं, उन्होंने भी मुसलमानों के मुद्दों पर बोलना बंद कर दिया.”

2014 में भारतीय जनता पार्टी ‘सबका साथ सबका विकास’ नारे के साथ चुनावी मैदान में उतरी थी. बीजेपी को अपने पक्के समर्थकों के अलावा बड़ी मात्रा में ऐसे लोगों का भी वोट मिला जो लगातार दस साल तक चली यूपीए सरकार से मायूस हो चुके थे और बदलाव चाहते थे, नौकरियां चाहते थे, महंगाई पर नियंत्रण चाहते थे और एक बेहतर जिंदगी चाहते थे.

साभार- डी डब्ल्यू हिन्दी