26 साल पुरानी कटुता को भुलाकर एक बार फिर से एक होने जा रहे यूपी के ये दो बड़े दल

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मिशन 2019 के लोकसभा चुनाव ने दो पुराने दुश्मनों को एक कर दिया है। सपा (SP) और बसपा (BSP) 26 साल पुरानी कटुता को भुलाकर एक बार फिर से एक होने जा रहे हैं। माना जा रहा है कि आज (शनिवार)  को लखनऊ में होने वाली प्रेसवार्ता में इनके गठबंधन का ऐलान हो सकता है। दोनों सियासी दलों की यह दोस्ती पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सियासी तस्वीर बदलने वाली होगी। इसकी सुगबुगाहट लंबे समय से चली आ रही थी।

इस दोस्ती को दोनों ही दलों के नेता समय की जरूरत मान रहे हैं। दोस्ती को लेकर उनके बीच कई दौर की वार्ताएं भी हो चुकी हैं। 26 साल बाद यह मौका एक बार फिर से आया है, जब यह दोनों दल दोस्त बनने जा रहे हैं। यह दोस्ती पहले भी दोनों के लिए ही संजीवनी बन चुकी है। 1993 में बसपा और सपा ने मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था, जिसमें सपा 264 सीटों पर लड़ी थी और 17.82 प्रतिशत मत पाकर 109 सीटों पर जीती थी। बसपा ने 163 सीटों पर चुनाव लड़ा और 11.11 प्रतिशत मत हासिल कर 67 सीटों पर जीत दर्ज कराई थी।

 

वर्ष 1991 में 30 सीट पाकर हाशिये पर पहुंची सपा को इस गठबंधन के बाद पांच  प्रतिशत अधिक मत मिले और 109 सीटों पर जीती। जून 1995 में हुए बहुचर्चित गेस्ट हाउस कांड के बाद दोनों की दोस्ती टूट गई और तभी से दोनों दल प्रदेश की सियासत में एक-दूसरे के सामने थे। लेकिन अब एक बार फिर से एक होने जा रहे हैं।

सपा और बसपा की दोस्ती में मुस्लिम वोट बैंक सबसे अहम फैक्टर
मायावती और अखिलेश की पार्टी के बीच हो रही दोस्ती के केंद्र में मुस्लिम वोट बैंक है। लोकसभा चुनाव के दौरान इस वोट बैंक में दोनों ही दल बिखराव नहीं चाहते। जिसे वह अपनी जीत की कुंजी मान रहे हैं। सपा और बसपा में 26 साल के लंबे समय बाद दोस्ती होने जा रही है। दोनों ही दलों की मुख्य ताकत मुस्लिम वोट बैंक को माना जाता है। मुस्लिम वोट बैंक जब भी जिस तरफ गया, दोनों में से उसी दल ने जीत हासिल की है। दोनों ही दलों द्वारा मुस्लिमों को साधने के लिए तमाम प्रयास किए जाते रहे हैं। उनका प्रयास है कि लोकसभा चुनाव में यह मुस्लिम वोट बैंक एकजुट रहे, जिसमें कोई बिखराव ना हो और उसके साथ ही उन्हें दलित, पिछड़ों और अति पिछड़ों का भी साथ मिले, जिससे वह भाजपा को हरा सकें।