नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभीजित बनर्जी ने नोटबंदी का विरोध किया था, उन्होंने एक बंगला टीवी कोर्ट दिए साक्षात में कहा था कि यह फैसला मुझे समझ नहीं आ रहा है
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जागरण डॉट कॉम के अनुसार, अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार पाने वाले भारतीय मूल के अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने मोदी सरकार द्वारा की गई नोटबंदी का विरोध किया था। उन्होंने VoxDev.org पर प्रकाशित अपने एक लेख में कहा था कि मैक्रोइकोनॉमिक नीतियों में प्रयोग विरला ही होता है। ऐसा ही एक अपवाद नोटबंदी था।
उन्होंने लिखा कि 500 और 1000 रुपये के नोटों की कुल हिस्सेदारी देश की नकदी में लगभग 86 फीसद थी। 500 और 2000 के नये नोट को जारी करने की प्रक्रिया कई कारणों से प्रभावित हुई।
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि तत्कालीन ATM मशीनों में 2000 के नोट फिट नहीं आ रहे थे। 23 दिसंबर 2016 यानी नोटबंदी के डेढ़ महीने बाद भी सर्कुलेशन के लिए जरूरी कुल राशि में भारी कमी थी।
बनर्जी ने कहा था कि नोटबंदी को लेकर शुरुआत में जिस नुकसान का अनुमान किया जा रहा था, वास्तव में यह उससे कहीं ज्यादा होगा। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की नम्रता काला के साथ संयुक्त तौर पर लिखे गए अपने लेख में उन्होंने नोटबंदी की जमकर आलोचना की थी।
संयुक्त रूप से लिखे लेख में उन्होंने कहा था कि इसका सबसे ज्यादा नुकसान असंगठित क्षेत्र को होगा जहां भारतीय श्रम क्षेत्र में 85 प्रतिशत या उससे ज्यादा लोगों को रोजगार मिला हुआ है।
उन्होंने अपने लेख में लिखा है कि नोटबंदी को एक आर्थिक नीति के तौर पर देखें तो कुछ अपवादों को छोड़कर विभिन्न अर्थशास्त्रियों का नजरिया निगेटिव है।
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सबसे पहली बात तो इससे तरलता की भारी कमी हुई है जिस कारण आर्थिक लेनदेन में जबरदस्त कमी आई क्योंकि लोगों के पास पर्याप्त पैसे नहीं थे।
इसका सबसे ज्यादा असर असंगठित क्षेत्र पर पड़ा जहां 85 फीसद से अधिक श्रमिक काम करते हैं क्योंकि पारंपरिक तौर पर लेनदेन के लिए नकदी का इस्तेमाल किया जाता है।
उन्होंने अपने लेख में लिखा है कि नोटबंदी के पीछे यह तर्क दिया जा रहा था कि इससे भ्रष्टाचार में कमी आएगी। दूसरी तरफ, 2000 रुपये का नोट लाया गया, इससे लोग अवैध रूप से खुद को बिना सामने लाए आसानी से भुगतान कर सकते हैं।
इस प्रकार, नोटबंदी उनलोगों के लिए एक पेनल्टी की तरह रही जिनके पास उस समय बड़ी मात्रा में नकदी थी। हालांकि, इससे भविष्य के भ्रष्टाचार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।