ABP न्यूज़ : चैनल 1 ख़बर के एंगल 2-2! रूबिका लियाक़त ने अपने ही चैनल के उलट ख़बर बताई

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14 अप्रैल को मुंबई के बांद्रा स्टेशन के पास मज़दूरों की भारी भीड़ जमा होने की ख़बर छाई रही. मुंबई पुलिस ने ‘अफ़वाह’ फैलाने के आरोप में 11 लोगों को गिरफ़्तार किया. माना जा रहा है कि इसी अफ़वाह की वजह से लगभग 2,000 प्रवासी मज़दूर स्टेशन के पास जमा हुए. 11 गिरफ़्तार लोगों में, मराठी न्यूज़ चैनल ‘एबीपी माझा’ के रिपोर्टर राहुल कुलकर्णी भी शामिल थे. कुलकर्णी ने रेलवे के एक इंटर्नल डॉक्युमेंट के आधार पर दावा किया था कि प्रवासी मज़दूरों को विशेष ट्रेनों के ज़रिए उनके घर भेजा जाएगा. चैनल ने अपने रिपोर्टर का बचाव किया और कहा कि किसी पत्रकार को अरेस्ट करने से पहले तथ्यों और परिस्थितियों की पूरी जांच-पड़ताल होनी चाहिए. राहुल कुलकर्णी को मुंबई की एक कोर्ट से ज़मानत भी मिल गई. ट्विटर पर एबीपी न्यूज़ हैशटैग #AttackOnFreePress के साथ ट्रेंड कर रहा था.

एबीपी ग्रुप के हिंदी चैनल एबीपी न्यूज़ ने भी ये विजुअल्स दिखाए और प्रवासी मज़दूरों के स्टेशन के बाहर इकट्ठा होने पर सवाल उठाए. चैनल ने इस भीड़ को ‘साज़िश’ के तौर पर पेश किया और दिखाया कि इस घटना के पीछे धार्मिक भी हो सकता है.

नीचे पोस्ट किए गए वीडियो में, एंकर शोभना यादव कहती हैं, “प्रेम शुक्ला, आप जिस साज़िश की बात कर रहे हैं, एबीपी न्यूज़ उसपर सवाल उठा रहा है. क्या मस्जिद से लोगों को इकट्ठा होने के लिए उकसाया गया? बड़ा सवाल. क्या मुस्लिम नेताओं ने भाषण देकर लोगों को भड़काया और भीड़ को जमा होने दिया गया? क्या लोगों की इस भीड़ के लिए जामा मस्जिद ज़िम्मेदार है? हज़ारों की संख्या में लोग जामा मस्जिद के पास जमा हुए. क्या इस भीड़ को व्हॉट्सऐप मेसेज या फ़ोन कॉल के जरिए एक साथ बुलाया गया था? क्यों मुंबई पुलिस सोती रह गई? इंटेलिजेंस क्या कर रहा था?”

एबीपी न्यूज़ ने जो पांच सवाल खड़े किए, वो ये हैं:

  1. क्या मस्जिद से लोगों को इकट्ठा होने के लिए उकसाया गया?
  2. क्या मुस्लिम नेताओं के भाषण ने लोगों को इकट्ठा होने के लिए भड़काया?
  3. क्या लोगों की इस भीड़ के लिए जामा मस्जिद ज़िम्मेदार है?
  4. क्या इस भीड़ को व्हॉट्सऐप मेसेज या फ़ोन कॉल के जरिए एक साथ बुलाया गया था?
  5. क्या मुंबई पुलिस सो रही थी?

इस प्रसारण में सबसे ऊपर की पट्टी पर लिखा दिखता है, “क्या भीड़ जुटाने के लिए जामा मस्जिद जिम्मेदार?”

इसके बाद शोभना यादव मौके पर मौजूद चैनल के संवाददाता अजय दुबे से मुख़ातिब होती हैं, “अजय दुबे, एबीपी न्यूज़ बड़े सवाल उठा रहा है. आपकी जानकारी क्या कह रही है, क्या मस्जिद ने लोगों को वहां पर इकट्ठा होने के लिए उकसाया?”

रिपोर्टर इस सवाल को टालते हुए कहता है, “पुलिस इस चीज की जांच करेगी. लेकिन फिलहाल पुलिस ने लोगों को यहां से हटा दिया है.” हालांकि, दुबे ने ये भी कहा कि ये भरोसा करना मुश्किल है कि इतनी बड़ी भीड़ एक स्थान पर बिना किसी प्लानिंग के जमा हुई होगी. प्रसारण के दौरान चैनल ने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि भीड़ ‘मस्जिद’ के पास इकट्ठी हुई थी.

एबीपी न्यूज़ बनाम एबीपी एंकर रुबिका लियाक़त

उसी दिन, एबीपी न्यूज़ की पत्रकार रुबिका लियाक़त ने एबीपी न्यूज़ के फ़ेसबुक पेज से एक लाइव किया और इस अफ़वाह को दरकिनार कर दिया कि स्टेशन के पास मुसलमान इकट्ठा हुए थे. वो कहती हैं, “जो लोग ये दावा करने की कोशिश कर रहे हैं कि मुसलमान वहां पर जमा हुए थे, वो झूठे हैं. मैं स्पष्ट कर दूं कि ये लोग झूठे हैं जो कह रहे हैं कि मस्जिद से लोगों को जमा होने के लिए कहा गया और (लोगों ने सोचा) कि अब हमें जाना होगा और किस तरह हम काम कर पाएंगे. हमें रोटी कैसे मिलेगी, भोजन कहां से मिलेगा, ये सब झूठी बातें हैं. ये एक अफ़वाह है जो सर्कुलेट किया जा रहा है. मैं आपको ज़िम्मेदारी के साथ बता सकती हूं कि ये मसला जमात वाला या हिंदू-मुस्लिम का कतई नहीं है. ये उन मज़दूरों का, उन परेशान लोगों का मसला है, जिन्हें सचमुच नहीं पता था कि क्या करना है.” संबंधित हिस्सा नीचे पोस्ट किए गए वीडियो में 4:00 मिनट से देखा और सुना जा सकता है.

फ़ैक्ट-चेकिंग संस्थान ‘बूम लाइव’ से बातचीत में, मुंबई पुलिस ने लॉकडाउन के बीच प्रवासी मज़दूरों के इकट्ठा होने की घटना, में धार्मिक एंगल की बात से इंकार किया.

एबीपी न्यूज़ के ये दो वीडियो, दो ध्रुवों की तरह दिखते हैं – सांप्रदायिक मोड़ देकर मस्जिद के ख़िलाफ़ ‘बड़े सवाल’ उठाने से लेकर उनको अफ़वाह बताकर पूरी तरह ख़ारिज़ करने तक. जहां एबीपी माझा पर अफ़वाह का प्रसार करने के आरोपों की जांच के दायरे में है, एबीपी ग्रुप के हिंदी चैनल एबीपी न्यूज़ पर भी सांप्रदायिक रंग देने और बिना सबूत के अल्पसंख्यक समुदाय को घटना का दोषी बताए जाने के लिए कार्रवाई होनी चाहिए.

मार्च के मध्य में दिल्ली के निज़ामुद्दीन में हुई धार्मिक सभा से कोविड-19 के कई मामलों की पुष्टि के बाद से, भारत की मुख्यधारा की मीडिया ने भारत में कोरोना वायरस के संकट को सांप्रदायिक बनाने में महती भूमिक निभाई है. चूंकि निज़ामुद्दीन को कोरोना वायरस हॉटस्पॉट घोषित किया गया, चैनलों ने, भारत में कोरोना वायरस के मामले बढ़ने के लिए, न सिर्फ़ बेतहाशा मुसलमानों को निशाना बनाया बल्कि ग़लत सूचनाएं देकर माफ़ी भी मांगी.

इस मामले में, एक आधारहीन ‘कॉन्सपिरेसी थ्योरी’ चलाई गई और कोई भूमिका न होने के बावजूद मस्जिद पर सवाल उठाए गए. ये मुख्यधारा के एक टीवी न्यूज़ चैनल का बिल्कुल ही गैर-ज़िम्मेदाराना और अशोभनीय व्यवहार है.

साभार: altnews.in/hindi