विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि जहां अक्सर स्कूल को निशाना बनाया जा सकता है, वहां रहने वालों के ऊपर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ सकता है. साथ ही कम समय तक की गई काउंसलिंग भारी पड़ सकती है. मदीना याद करते हुए बताती हैं, “वह एक भयानक दिन था.
मुझे आज भी बुरे सपने आते हैं. मैं ध्यान केंद्रित नहीं कर सकती. परीक्षा के लिए तैयार होना काफी मुश्किल काम था.” उसे अपने स्कूल में गलियारे में गणित की परीक्षा देनी पड़ी थी क्योंकि कई कक्षाएं बर्बाद हो चुकी थी.
अमेरिका और तालिबान दावा करते हैं कि शांतिवार्ता में प्रगति हो रही है लेकिन यहां के लोगों के जीवन में नहीं के बराबर बदलाव हुआ है. हाल ही में हुए हमले इस बात को दर्शा रहे हैं कि बच्चे किस तरह से संघर्ष कर रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र के एक आंकड़े में पाया गया कि पिछले साल रिकॉर्ड स्तर पर बच्चों की मौत हुई. वर्ष 2018 में युद्ध की वजह से 3,804 आम लोग मारे गए जिनमें 927 बच्चे थे.
और 2019 के पहले 6 महीने में मारे गए आम लोगों में से एक-ति हाई बच्चों की संख्या थी. मदीना के स्कूल के प्रबंधक नियामतुल्लाह हमदर्द कहते हैं, “हमले के कुछ दिनों बाद बच्चों के चेहरे पर जख्म दिखते हैं. वे प्रत्येक मिनट रोने लगते थे.”
यूनिसेफ के अनुसार, 2017 के मुकाबले 2018 में अफगानिस्तान में स्कूलों पर हमलों की संख्या में तीन गुना की बढ़ोत्तरी हुई है. 2018 के अंत तक संघर्ष के कारण 1,000 से अधिक स्कूल बंद कर दिए गए. 5 लाख से ज्यादा बच्चे शिक्षा से वंचित हो गए.
पूर्वी अफगानिस्तान में नंगरहार प्रांत के अरिद डेह वाला जिलेमें सरकारी सुरक्षा बलों और इस्लामिक स्टेट समूह के बीच लड़ाई ने पपेन हाई स्कूल को मलबे में बदल दिया. अब बच्चे क्लास के लिए बाहर एक गलीचे पर बैठते हैं. उनमें से कुछ ने आईएस के लड़ाकों को स्थानीय लोगों के साथ देखा है.
स्कूल के निदेशक मुहम्मद वली कहते हैं, “रात में बच्चे जब सोने जाते हैं, उन्हें दाएश (इस्लामिक स्टेट का स्थानीय नाम) के सपने आते हैं. वे इनके अत्याचारों से ग्रस्त हैं. बच्चे नींद में चिल्लाते हैं, और जब वे यहां आते हैं तो वे बहुत तनाव में होते हैं.”
साभार- डी डब्ल्यू हिन्दी